ऑनलाइन और ऑफलाइन में उलझी बच्चों की पढ़ाई कोरोना ने छीन ली बच्चों की किताबें

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र):

कोरोना का कहर दुनिया के विभिन्न देशों पर जारी है। 10 लाख से ज्यादा लोग इस वायरस की चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं। विश्व में 5 करोड़ से ज्यादा की आबादी इस महामारी की चपेट में आ चुकी है। अर्थ व्यवस्था, रोजगार, कृषि, शिक्षा सभी क्षेत्र बुरी तरह से इसके कारण प्रभावित हुए हैं। संय़ुक्त राष्ट्र के आंकलन के अनुसार समूचे दत्रिण एशिया में करीब 60 करोड़ बच्चे कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन से प्रभावित हुए हैं। गणतंत्र भारत ने महामारी के कारण देश के स्कूलों पर जो असर हुआ है उसके बारे में पड़ताल की है।

पहले समझते हैं कि भारत में मौजूदा स्थिति क्या है

जब कोरोना वायरस की पाबंदियां पहली बार मार्च में लागू की गईं तो उस वक्त भारत में ज़्यादातर जगहों पर नए अकादमिक सत्र की शुरुआत होने जा रही थी। तब से ही स्कूलों को बंद कर दिया गया है और बड़े स्तर पर अभी भी स्कूल बंद हैं।

भारत में, बड़े पैमाने पर कक्षाएं बंद ही हैं। ऑनलाइन या टीवी कार्यक्रमों के जरिए ही पढ़ाई चल रही है। हालांकि, सरकार का कहना है कि कक्षा 9 से लेकर 12 तक के बच्चे अपने माता-पिता की मंज़ूरी से 21 सितंबर के बाद स्वैच्छिक आधार पर स्कूल जा सकते हैं।

महानगरों में रिमोट लर्निंग में या तो बच्चों के लिए लाइव ऑनलाइन कक्षाएं होती हैंया फिर छात्रों को डिजिटल कंटेंट मुहैया कराया जाता है। इस कंटेंट को ऑफलाइन या ऑनलाइन कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

2019 के एक सरकारी सर्वे में ये बात सामने आई है कि भारत में केवल 24 फीसदी परिवारों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है।भारत के ग्रामीण इलाक़ों में यह आंकड़ा और कम हो जाता है। इन जगहों पर केवल 4 फीसदी परिवारों के पास ही इंटरनेट है।

सरकार ने भले ही छात्रों के अभिभावकों के विवेक पर ये जिम्मा छोड़ दिया हो कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें या नहीं भेजें लेकिन हालात वास्तव में निराशाजनक ही हैं।

सरकार ने बच्चों की पढ़ाई जारी रहे इसके लिए हर तरह से मदद का भरोसा दिलाया लेकिन बुनियादी सुविधाओँ के लिए संकट से जूझते देश के लिए ऑनलाइन शिक्षा किसी सपने के सच होने जैसी बात है।

ऑनलाइन शिक्षा सिर्फ कुछ के लिए

अब जबकि सिर्फ 24 फीसदी परिवारों तक ही इंटरनेट की सुविधा है और बिजली और नेट की कनेक्टिविटी और स्पीड एक अलग मसला तो ऑनलाइन क्लास भारत में कितनी सफल हैं इसका अंदाजा अच्छे से लगाया जा सकता है। फिर सवाल उठता है कि स्कूल इस तरह की शिक्षा के लिए कितने तैयार थे। अधिकतक स्कूलों में अव्वल तो ये सुविधा है ही नहीं और अगर है भी तो इसके लिए प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव रहा।

दूसरी बात, स्कूलों में बहुत से बच्चों की फीस ही नहीं जमा हुई तो शिक्षकों का वेतन भी एक समस्या बन गया। निजी स्कूलों में तो स्थिति ये है कि जहां 4 शिक्षक थे वहां 2 से या 1 से ही काम चल रहा है। ऐसे में कैसे संभव है कि सभी कक्षाएं ऑनलाइन हो पाएं।

तीसरी बात, भारत के अधिकतर स्कूल खासकर गांवों और कस्बों के स्कूल तो बुनियादी सुविधाओँ के अभाव में चल रहे हैं। वहां स्कूल भवन, शौचालय, बैठने के लिए फर्नीचर तक का अभाव है। गांवों के बहुत से स्कूलों में तो बिजली का कनेक्शन भी नहीं होता है। ऐसे में ऑनलाइन कक्षाएं यहां संभव ही नहीं।

केरल मॉडल से जगी उम्मीदें

देश में दूसरे राज्यों के मुकाबले केरल में स्थिति बेहतर रही है। केरल में पिछले कुछ दिनों से ऑनलाइन पढ़ाई के बीच इंटरनेट को बुनियादी अधिकार घोषित करने पर भी चर्चा चल रही है। केरल के लगभग 45 लाख छात्रों ने एक जून से अपनी वर्चुअल क्लास शुरू कर दी है। केरल ने कोरोना काल में बच्चों को पढ़ाने के लिए शानदार विकल्प तलाश लिया है, ‘फर्स्ट बेल’ नाम से केरल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजूकेशन ने विक्टर्स टीवी चैनल शुरू किया हैजिसके जरिए छात्रों की क्लास होगी। यह चैनल पूरे राज्य में इंटरनेट और डायरेक्ट-टू-होम केबल नेटवर्क पर मुफ्त में उपलब्ध होगा।

अगर इसी तरह के इंतजामों की बात बाकी राज्यों में की जाए तो कोई केरल जितना तैयार नहीं दिखता। इस समय देश में इंटरनेट और स्मार्टफोन की सुविधा का विस्तार और लैपटॉप या टैबलेट हर छात्र को देने की व्यवस्था पर विचार करने की जरूरत है। शिक्षकों को भी डिजिटल एजूकेशन के लिए तैयार करना होगा और उनकी ट्रेनिंग करानी होगी। डिजिटल एजूकेशन के लिए सिलेबस भी बदलना होगा और नए टीचिंग मैटेरियल तैयार करने होंगे।सरकार की नई शिक्षा नीति में भी ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर है। माना जाना चाहिए जल्दी ही हमें शिक्षा में ये बुनियादी बदलाव देखने को मिलेंगे।

Image credit: Google

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