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कर्नाटक हैल्थ प्रोमोशन ट्रस्ट (KHPT) ने युनाइटेड एजेंसी फॉर इंटरनैशनल डैवलपमेंट (USAID)] नैशनल ट्यूबरक्युलोसिस ऐलिमिनेशन प्रोग्राम (NTEP)] ग्लोबल कोलिशन ऑफ टी.बी. ऐडवोकेट्स (GCTA) और स्टॉप टी.बी. पार्टनरशिप के सहयोग से एक वैबिनार का आयोजन किया जिसमें भारत में संवहनीय भविष्य हेतु जेंटर परिवर्तनकारी टी.बी. प्रतिक्रिया की रचना, संभाल व तीव्रता पर बात की गई।
यह वैबिनार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्वसंध्या पर आयोजित किया गया। इसमें हुई चर्चा महिला दिवस की इस वर्ष की थीम के मुताबिक थी] जो है – जेंडर इक्वैलिटी टुडे फॉर अ सस्टेनेबल टूमॉरो। इस वैबिनार में नीति निर्माता] स्वास्थ्य ऐक्टिविस्ट व थिंक टैंक लीडर एकजुट हुए और उन्होंने जेंडर परिवर्तनकारी टी.बी. प्रतिक्रिया की जरूरत पर विचार विमर्श किया ताकी सभी स्तरों पर लोक & केन्द्रित अधिकार आधारित प्रतिक्रिया सुनिश्चित की जा सके।
सत्र का आरंभ यूएसऐड की निदेशक & स्वास्थ्य कार्यालय डॉ. संगीता पटेल के संबोधन से हुआ। पैनल में शामिल थे – डॉ. राजेन्द्र जोशी] डीडीजी] राष्ट्रीय तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम] स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय] भारत सरकार; डॉ. दलबीर सिंह] अध्यक्ष] ग्लोबल कोलिशन अगेंस्ट टी.बी.; डॉ. ऐमी पियाटेक] वरिष्ठ टी.बी. पार्टनरशिप] जिनेवा; सुश्री ब्लेसिना कुमार] सीईओ] ग्लोबल कोलिशन ऑफ टी.बी. ऐडवोकेट्स; डॉ. के.एस. सचदेवा] क्षेत्रीय निदेशक & द यूनियन साउथ ईस्ट एशिया एट इंटरनैशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरक्युलोसिस एंड लंग डिसीज़ (द यूनियन); डॉ. रेहाना बेगम] परियोजना निदेशक] ब्रेकिंग द बैरियर्स] केएचपीटी। इस वैबिनार की मेज़बानी केएचपीटी की ऐडवोकेसी लीड डॉ. सुकृति चौहान द्वारा की गई।
उद्घाटन भाषण में यूएसऐड/भारत की निदेशक & स्वास्थ्य कार्यालय डॉ. संगीता पटेल ने इस बात पर बल दिया कि यूएसऐड अपने सभी हस्तक्षेपों के लिए एक जेंडर लेंस अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, “यूनाइटेड स्टेट्स सरकार के लिए नैतिक व रणनीतिक दोनों पहलुओं पर महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों को आगे बढ़ाना अनिवार्य है। भारत में यूएसऐड और उसके स्थानीय साथी नागरिकों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत हैं जिससे की वे अपने समाज के विकास में पूरी तरह से भाग लें और उससे फायदा हासिल करें। यूएसऐड का विश्वास है की समाज व देश को बदलने के लिए लैंगिक समानता होना बेहद जरूरी है और इसी विश्वास के मुताबिक वह काम करता है। सभी कार्यक्रमों को तैयार करते हुए व उनके अमल में यूएसऐड व हमारे साथी लैंगिक समानता को प्राथमिकता देते हैं और इसमें टी.बी. प्रोग्राम भी शामिल हैं, हम टी.बी. संबंधी सेवाएं देते वक्त लैंगिक असमानताओं की पहचान और उन्हें सही करते हैं।”
ग्लोबल कोलिशन अगेंस्ट टी.बी. के अध्यक्ष डॉ. दलबीर सिंह ने कहा, “सांस्कृतिक मानदंडों और असमानता की वजह से महिलाओं और ट्रांसजेंडर लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच कम होती है। टी.बी. प्रतिक्रिया के विषय में लैंगिक असमानताओं को तवज्जो न देकर हम लाखों लोगों की जिंदगी को जोखिम में डाल रहे हैं। भारत और दुनिया से टी.बी. से लड़ाई व उसके उन्मूलन के लिए जेंडर परिवर्तनकारी नज़रिया इस वक्त की सख्त जरूरत है।”
डॉ. राजेन्द्र जोशी, उप महानिदेशक, राष्ट्रीय तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी), स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय] ने कहा, “हम टी.बी. मुक्त भारत लक्ष्य की दिशा में काम कर रहे हैं, इसलिए सबसे ज्यादा जोखिम झेल रहे हाशिए पर पड़े तबकों की आवाज़ का संज्ञान लेना बेहद जरूरी है। एनटीईपी अनेक स्टेकहोल्डरों और सहभागिता वाले दृष्टिकोण का उपयोग करता आ रहा है। हमारा काम महिलाओं व ट्रांसजेंडरों को एकजुट करता है और हस्तक्षेपों को समग्रतापूर्ण व प्रभावशाली बनाने के लिए उनकी आबादी का फीडबैक सुनिश्चित करता है।”
डॉ. लुसिका दितिउ, कार्यकारी निदेशक, स्टॉप टी.बी. पार्टनरशिप, जिनेवा ने कहा, “जो लोग अपनी लैंगिक पहचान के चलते हाशिए पर हैं (औरतों व ट्रांसजेंडर समेत) उन्हें रोजाना दुख व भेदभाव से गुजरना पड़ता है] और यही सामान्य चलन बन जाए हम ऐसा होने नहीं दे सकते। हम सब को एकजुट होना पड़ेगा तथा महिलाओं और ट्रांसजेंडर लोगों को सभी स्तरों पर सहयोग देना होगा। इलाज की बाधा और बदनामी की धारणा को हमें तोड़ना ही होगा। यही एकमात्र समाधान है।”
सुश्री ऐमी पियाटेक, वरिष्ठ टी.बी. तकनीकी सलाहकार, यूएसऐड/वाशिंगटन ने कहा, “साक्ष्य बताते हैं की पुरूषों को टी.बी. होने की ज्यादा संभावना होती है, यद्यपि वास्तविक जीवन के अनुभव दर्शाते हैं की महिलाओं व ट्रांसजेंडर समुदायों को असंगत सामाजिक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है। यदि हमें एक समग्र प्रतिक्रिया सुनिश्चित करनी हो जहां नकारात्मक सामाजिक अर्थों के संग बीमारी का उन्मूलन करना हो तो यह आवश्यक है की टी.बी. के विरूद्ध लड़ाई में शामिल सभी कर्ताओं के साथ काम किया जाए। यूएसऐड में हम जेंडर को अपने काम के केन्द्र में रखते हैं] संवहनीय ढांचों का निर्माण करते हैं] चैम्पियन स्वरों का विकास करते हैं और लैंगिक विश्लेषण का उपयोग करते हुए वित्त मुहैया कराते हैं।”
ग्लोबल कोलिशन ऑफ टी.बी. ऐडवोकेट्स की सीईओ सुश्री ब्लेसिना कुमार प्रभावित तबकों को अर्थपूर्ण तरीके से जोड़ने की जरूरत पर ध्यान दिलाते हुए कहती हैं, “टी.बी. सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने व उन्हें डिजाइन करने की कोशिशों में प्रभावित समुदायों से और ज्यादा महिलाओं व ट्रांसजेंडर लोगों को शामिल किए जाने की जरूरत है। प्रभावित तबके महज़ इलाज पाने वाले निष्क्रिय लोग नहीं हैं बल्कि वे टी.बी. के खात्मे में मूल्यवान सहभागी हैं। महिलाओं और ट्रांसजेंडर लोगों के लिए स्वास्थ्य हस्तक्षेप में टी.बी. रोकथाम] डायग्नोसिस व उपचार को प्रमुख घटक बनाया जाना चाहिए। LGBTQ+ कम्युनिटी] सैक्स वर्करों] ड्रग्स लेने वाली औरतों एवं अपंग स्त्रियों को भी इस दायरे में लिए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं लेने में अतिरिक्त लांछन व भेदभाव सहना पड़ता है।”
पैनल चर्चा का समापन करते हुए केएचपीटी में ब्रेकिंग द बैरियर्स की प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. रेहाना बेगम ने कहा, “प्रभावी टी.बी. प्रतिक्रिया के लिए मानव & दृष्टिकोण अहम है। टी.बी. के खिलाफ लड़ाई को समावेशी] रोगी & केन्द्रित व लोक & केन्द्रित बनाने के लिए केएचपीटी सामुदायिक ढांचों के साथ काम कर रहा है। हाल ही में] ब्रेकिंग द बैरियर्स टीम को जमीनी स्तर पर कार्य हेतु मार्गदर्शन के लिए केएचपीटी ने एक जेंडर ब्रीफ विकसित किया ताकी यह सुनिश्चित किया जा सके की हस्तक्षेप के स्तर पर और प्रशिक्षकों के बीच जेंडर के फर्क को रखा जाए] साथ ही सभी समूहों से एक समान प्रतिनिधित्व हो। हमारा अनुभव बताता है की जागरूक बनाने व स्वास्थ्य प्राप्त करने के व्यवहार के लिए समुदायों में बहुत संभावनाएं हैं। समुदायों ने जो जज़्बा दिखाया है वह वास्तव में बहुत कुछ सिखाने वाला अनुभव रहा है।”