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डासना जेल की अजब कहानी, तीन गुना से ज्यादा कैदी,140 को एचआईवी…!

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लखनऊ  (गणतंत्र भारत / एजेंसी समाचार ): उत्तर प्रदेश में जेलों की हालत कितनी खराब है इसकी बानगी है गाजियाबाद की डासना जेल। जेल की क्षमता 1700 कैदियों की है जबकि यहां इस समय 5500 से ज्यादा कैदी बंद हैं। ये चौंकाने वाली जानकारी तब सामने आई जब इन कैदियों में से 140 कैदियों के एचआईवी पीड़ित होने की खबर सार्वजनिक हुई। यही नहीं, यहां बंद कैंदियों में से 35 कैदियों को टीबी का मर्ज भी है।

समाचार एजेंसी की खबरों में डासना जेल के अधीक्षक के हवाले से बताया गया है कि, जेल में साल 2016 से ही औसतन 120 से 150 कैदी एचआईवी पीड़ित पाए जाते रहे है। यानी जेल के लिए ये कोई नई बात नहीं है। जेल अधीक्षक का ये बयान कई मायनों में अचंभे वाला है। एक ऐसी जेल जहां क्षमता से तीन गुना से ज्यादा कैदी बंद हों वहां इस तरह का संक्रमण कब विस्फोटक रूप ले ले कोई नहीं जानता।

सरकारी निर्देशों के अनुसार, जेल में बंद करने से पहले बंदियों की एचआईवी जांच कराई जाती है। गाजियाबाद जेल के बंदियों की डॉक्टरों द्वारा एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी सेंटर में जांच की जाती है। ये सेंटर एमएमजी जिला सरकारी अस्पताल में स्थित है।

जिला कारागार अधीक्षक आलोक कुमार ने बताया कि 2016 में राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी ने जेलों में एचआईवी जांच शिविर लगाए थे और उस समय गाजियाबाद में एचआईवी के 49  नए मरीज मिले थे। उन्होंने बताया कि, उसके बाद सरकार ने ये अनिवार्य कर दिया कि हर बंदी की सामान्य स्वास्थ्य के अलावा एचआईवी और टीबी की जांच की जाएगी। उन्होंने कहा कि,  इस जांच से जो बात सामने आई है, उससे घबराने या चिंता करने की कोई बात नहीं है। जब भी कोई कैदी जेल में आता है तो उसका एचआईवी टेस्ट कराया जाता है। ये एचआईवी पॉजिटिव कैदी आमतौर पर सीरिंज के माध्यम से ड्रग्स लेते हैं जो एचआईवी फैलने का मुख्य कारण है।

उन्होंने बताया कि, जेल में बंद करने से पहले हर संदिग्ध कैदी की एक किट द्वारा जांच की जाती है और यदि कैदी एचआईवी से ग्रस्त पाया जाता है तो उसे जेल में स्थित इंटेग्रेटेड काउंसलिंग एंड ट्रीटमेंट सेंटर (आईसीटीसी) में इलाज उपलब्ध कराया जाता है।

आपको बता दें कि, पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश की जेलों में एड्स के मामले बढे़ हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जुलाई में यूपी की जेलों में करीब 356 एड्स के मरीज थे। जुलाई में ही सहारनपुर की जेल में 23 कैदी एचआईवी पॉजिटिव बताए गए। इसके अलावा सितंबर में बाराबंकी जेल में 26 कैदी एड्स से ग्रस्‍त पाए गए थे।

जेल सुधार के लिए सक्रिय एक संगठन के अध्यक्ष राजेश कुमार के अनुसार, जेलों में बंद कैदियों में इस तरह के संक्रमण को हल्के में लिया जाना खतरनाक हो सकता है। भारत में जेलों के हालत पहले से काफी खराब है। वहां साफ-सफाई से लेकर स्वास्थ्य देखभाल जैसे विषय हाशिए पर रहते हैं। ऐसे में किसी भी तरह का संक्रमण वहां मौजूद कैदियों के अलावा वहां काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी घातक बन सकता है।

उन्होंने कहा कि, सरकार को ऐसे संक्रमित कैदियों को जेल के बाकी कैदियों से अलग किसी दूसरे स्थान पर रखना चाहिए जो जेल परिसर से बाहर हो और जहां भीड़भाड़ कम हो।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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