गाजियाबाद (गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी) : कुछ मिसालें ऐसी होती हैं जो रोजम्रर्रा के जीवन में ही कुछ ऐसा करते हैं जो खुद में नया तो होता ही है साथ ही वो दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनने का काम करता हैं। गाजियाबाद की एक शिक्षक डिंपल विज का काम भी कुछ इसी किस्म का है। 14 साल से उन्होंनें अपनी रसोई का जरा सा भी कचरा कूड़ेदान में नहीं फेंका बल्कि वे उससे जैविक खाद तैयार करती हैं।
उन्होंने अपने गार्डेन में रसोई के कचरे के निस्तारण के लिए एक पिट बना रखी है। रसोई से निकले कचरे को वे उसी में डाल देती हैं जो कुछ समय में जैविक खाद में तब्दील हो जाता है। उनका कहना है कि घर से निकलने वाला अधिकतर कचरा ऐसा होता है जो खाद बनाने के काम आ सकता है।
पेशे से शिक्षक डिंपल, गाजियाबाद के एमएमएच कॉलेज में अर्थशास्त्र की एसोशिएट प्रोफेसर हैं। दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने कभी भी इस काम के लिए कोई प्रशिक्षण नहीं लिया। उन्होंने इस जैविक खाद को बनाने का तरीका यू ट्यूब के जरिए सीखा और उसमें महारत हासिल की।
डिंपल ने अपने फन का इस्तेमाल खुद तो किया ही साथ ही उन्होंने 2000 से ज्यादा लोगों को जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण भी दिया। उनका कहना है कि जब कभी भी उन्हें किसी सेमिनार या कार्यशाला में बुलाया जाता है वे वहां अपनी खाद को ले जाती हैं और उसे वहां आए लोगों में बांट देती हैं। इसका मकसद उन लोगों में भी जैविक खाद के प्रति दिलचस्पी जगाना होता है। उनका कहना है कि किसी भी घर से निकलने वाला तकरीबन दो तिहाई कचरा ऐसा होता है जिससे जैविक खाद बनाई जा सकती है।
डिंपल ने पिछले कई वर्षों से अपने घर के गार्डेन से निकली सब्जियां और फल खाए हैं। उनका जोर मौसमी सब्जियों और फल को उगाने पर ही रहता है। वे रोजमर्रा किचेन में इस्तेमाल आने वाली चीजों जैसे टमाटर, प्याज, लहसुन आदि के लिए कभी बाहर का मुंह नहीं देखतीं।
डिंपल ने एक शिक्षक होने के व्यस्त रुटीन के बावजूद जैविक खाद बनाने के काम लिए समय निकाल कर दूसरे लोगों को भी प्रेरित किया है कि वे अपनी रसोई के कचरे में छिपे जैविक खाद को पहचानें और उसे कूड़े नें फेंक कर व्यर्थ न जाने दें।
डिंपल के दिमाग में ये विचार साल 2007 में तब आय़ा जब उन्होंने नया घर लिया। घर के आसपास कापी कचरा पड़ा रहता था और उन्हें ये देख कर काफी बुरा लगता था। उन्होंने उस कचरे के प्रबंधन के बारे में सोचना शुरू किया। उसी सोच की परिणति रसोई से निकले कचरे को जैविक खाद में बदल देने में हुई।
डिंपल की देखादेखी अब बहुत से दूसरे लोग भी इस काम में लग गए हैं और उन्होंने अपनी रसोई से निकले कचरे का इस्तेमाल जैविक खाद बनाने में करना शुरू कर दिया है।
डिंपल अब ठोस या सॉलिड वेस्ट के प्रबंधन की दिशा में काम रही हैं और इस विषय पर उनके कई शोधपत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं।
गणतंत्र भारत, डिंपल के इस अनूठे प्रयास की सराहना करता है और चाहता है कि समाज के दूसरे लोग भी डिंपल से सीख लें और भारतीय गणतंत्र को और अधिक पराक्रमी बनाने में अपना योगदान दें।
फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया