प्रेम कुमार (जनचौक.कॉम से साभार ) नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश में कोविड महामारी के दौरान हुई मौतें जितनी बताई गई है आंकड़ा उससे 43 गुणा से ज्यादा है। अखिलेश यादव के इस ट्वीट पर हंगामा बरप गया है। ये दावा आरटीआई से प्राप्त जानकारी के आधार पर किया गया है। यूपी के सिर्फ 24 जिलों से प्राप्त ये आंकड़े हैं और वो भी बीते वर्ष 1जुलाई से 31 मार्च के बीच के ये आंकड़े हैं। घोषित सरकारी आंकड़े और आरटीआई से प्राप्त आंकड़ों में 1 लाख 97 हजार का फर्क है। इस खुलासे ने उत्तर प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया है। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि ये मुद्दा सियासी बनेगा।
पहली वेव के 9 महीने में 1.97 लाख मौत
आर्टिकल 14 नामक वेबसाइट ने आरटीआई के हवाले से बताया है कि 1 जुलाई 2019 से 31 मार्च 2020 में यूपी के जिन 24 जिलों में 1 लाख 78 हजार मौतें हुई थी, उन्हीं जिलों में 2020 और 2021 के बीच की इसी अवधि में 3 लाख 75 हजार मौत हुई है। यानी समान अवधि में दो वर्षों के बीच मौत का अंतर 1 लाख 97 हजार है। इसी अवधि में इन 24 जिलों के लिए महामारी से मौत का आंकड़ा यूपी सरकार ने महज 4,537 बताया है। हिसाब लगाने पर ये पता चलता है कि अतिरिक्त मौत के ये आंकड़े बताए गए आंकड़े से 43.42 गुणा ज्यादा हैं।
यूपी में महामारी से 8 लाख से ज्यादा मौत का गणित
मौत के ये आंकड़े चौंकाने वाले भी हैं और भयावह भी। ऐसा इसलिए क्योंकि ये आंकड़े कोरोना की दूसरी वेव के नहीं हैं। अगर कोरोना के दूसरी वेव के आंकड़ों पर नज़र डालें तो कोविड19इंडिया.ओआरजी के मुताबिक 31 मार्च को यूपी में मौत का आंकड़ा 8,811 था जो 21 जून तक बढ़कर 22,224 हो गया। यानी 82 दिनों में 13,413 लोगों की मौत हुई है। ये वो दौर था जब गंगा में लाशें तैरती मिल रही थीं। गंगा तटों के किनारे लाशें दबी हुई मिल रही थीं। ऑक्सीजन की कमी, बेड के अभाव और दवाओं के बिना बड़ी तादाद में लोगों की मौत हो रही थी।
अगर ये माना जाए कि दूसरे वेव में भी पहले वेव की तरह ही आरटीआई के खुलासे के मुताबिक मौत का आंकड़ा सरकार की ओर से बताए गये आंकड़ों के मुकाबले 43.42 गुणा ही ज्यादा है तो 82 दिनों में 13,413 X 43.42 यानी 5 लाख 82 हजार 392 लोगों की मौत हो चुकी है।
आरटीआई के आधार पर कोरोना वेव के दोनों आंकड़ों को जोड़ें जो सरकारी आंकड़े से 43.42 गुणा ज्यादा हैं तो कुल योग 7,79,392 होता है। जाहिर है कि पहली वेव में मौत के आंकड़े सिर्फ 24 जिलों के हैं इसलिए कुल मौत का आंकड़ा निश्चित रूप से 8 लाख पार होगा। ये आंकड़ा देश में हुई मौत के कुल 3.9 लाख के दुगुने से ज्यादा है। सवाल ये है कि क्या उत्तर प्रदेश के सियासी दलों को इस स्थिति पर चुप रहना चाहिए?
कई राज्यों में सामने आ रहा है छिपे आंकड़ों का सच
बिहार में 9 गुणा ज्यादा मौत!- सिर्फ यूपी ही नहीं कई अन्य राज्यों में भी मौत के आंकड़े छिपाने की बातें सामने आई हैं लेकिन यूपी में जो आंकड़ा सामने आया है वो किसी भी राज्य में उजागर हुए मौत के आंकड़ों से बड़ा है। बिहार में भी ये खुलासा हो चुका है कि कोविड की महामारी के दौरान हुई मौत और बताए जा रहे आंकड़े में 80 हजार से ज्यादा का फर्क है। यहां सरकारी महकमे से प्राप्त जानकारी के आधार पर अखबारों ने जानकारी दी है कि 2019 में जनवरी से मई में जो मौत के आंकड़े थे और 2020 में इसी अवधि में जो आंकड़े मिले, उनमें 90 हजार का फर्क था। सरकार ने मौत का आंकड़ा 9 हजार से ज्यादा बताया। इस तरह यह अंतर 81 हजार का रहा। एक तरह से ये आंकड़े बिहार में आधिकारिक मौत के आंकड़े से 9 गुणा अधिक मौत होने की पुष्टि करते हैं।
गुजरात में सरकारी आंकड़ों से 15 गुणा ज्यादा मौत! – गुजरात में दिव्य भास्कर ने खबर छापी थी कि 1 मार्च से 10 मई के बीच 2021 में 1.23 लाख डेथ सर्टिफिकेट जारी किए गए। इसी अवधि में 2020 में 58 हजार डेथ सर्टिफिकेट जारी हुए थे। इस तरह मौत का अंतर स्पष्ट रूप से 65,085 पाया गया। जबकि, सरकार ने महामारी की वजह से सिर्फ 4,218 लोगों की मौत होने की बात कही। यानी गुजरात में कोविड से मौत का आंकड़ा बताए गये आंकड़े से 15.43 गुणा ज्यादा पाया गया।
मध्यप्रदेश में इस साल 1.7 लाख अतिरिक्त मौत! – मध्यप्रदेश में सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक 2018 और 2019 में मई के महीने में 31 हजार से ज्यादा मौत दर्ज की गई थी जो 2020 में 34 हजार हो गई। लेकिन, 2021 में ये आंकड़ा 1.6 लाख पहुंच गया। यानी आंकड़ों में पांच गुणा बढ़ोत्तरी हुई। 1 जनवरी से 31 मई के बीच मध्य प्रदेश में 3.3 लाख लोगों की मौत हुई है और यह 2018 और 2019 में हुई सामान्य मौत के मुकाबले 1.7 लाख ज्यादा है।
देश के कई राज्यों से आंकड़े छिपाए जाने की खबरें आ रही हैं और मीडिया में इसका खुलासा हो रहा है। इन खुलासों से जनता की बेचैनी बढ़ी है और इस पर जवाब भी सत्ताधारी दलों को देना होगा। कोरोना के कारण मरने वालों में सबसे ज्यादा विधायक, मंत्री, पूर्व मंत्री और पदाधिकारी खुद सत्ताधारी दल बीजेपी के रहे हैं। ऐसे में आंकड़े छिपाने की इस घटना से सबसे ज्यादा बेचैनी भी बीजेपी को होनी चाहिए। लेकिन क्या बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में इतना साहस है कि वे मौत के आंकड़े छिपाने के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करें? हालांकि यूपी के कई विधायकों और केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार तक ने कोरोना के दौरान स्थानीय लोगों के मुश्किल में होने की बात देश के सामने लाई थी। देखना ये है कि इस मुद्दे पर वे आवाज़ उठा पाते हैं या नहीं।
( ये आलेख जनचौक.डॉट काम से साभार लिया गया है। इसके लेखक वरिष्ठ पत्रकार प्रेम कुमार हैं )
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