Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरीठंडे बस्ते में नहीं जाएगा 'माननीयों' के खिलाफ केस...फटाफट होंगे फैसले ....

ठंडे बस्ते में नहीं जाएगा ‘माननीयों’ के खिलाफ केस…फटाफट होंगे फैसले ….

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : क्या जल्दी ही सांसदों और विधायकों के खिलाफ वर्षों से अदालतों में लंबित मामलों की सुनवाई रोजाना के आधार पर शुरू होने वाली है। खबरों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट एक एमिकस क्यूरी रिपोर्ट पर विचार कर रहा है, जिसमें सांसदों और विधायकों के लिए दिन-प्रतिदिन के आधार पर विशेष आपराधिक मुकदमों की सुनवाई करने की सिफारिश की गई है। इस समय, देश भर में जन प्रतिनिधियों के खिलाफ आदालतों में 5,097 मामले विचाराधीन हैं।

आपको बता दें कि, एमिकस क्यूरी का शाब्दिक अर्थ ‘न्याय मित्र’ होता है। ये किसी पक्ष का प्रतिनिधित्व नहीं करता लेकिन न्यायालय की मदद करता है। इसका मतलब ये हुआ कि केस में कोई पार्टी न होते हुए भी वो कानून के आधार पर न्यायालय को निर्णय लेने में मदद करता है।

अंग्रेजी अखबार द हिंदू ने इस सिलसिले में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि सांसदों और विधायकों ​के खिलाफ देश भर में कुल 5097 मामले लंबित हैं जिसमें से 40 फीसदी से अधिक 2,122 मामले मामले तो पांच साल से भी अधिक समय से लंबित हैं।

अदालत को सूचित किया गया कि,  ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (जुलाई 2022) की रिपोर्ट के अनुसार, 542 लोकसभा सदस्यों में से 236 (44 प्रतिशत), 226 राज्यसभा सदस्यों में से 71 (31 प्रतिशत) और 3,991 विधायकों में से 1,723 (43 प्रतिशत) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। एमिकस क्यूरी विजय़ हंसारिया ने कहा कि, ‘वर्तमान के साथ-साथ पूर्व सांसदों और राज्य विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की बड़ी संख्या’ एक गंभीर मुद्दा है।

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राज्य के उच्च न्यायालयों और प्रत्येक जिले के प्रधान सत्र न्यायाधीशों को न्यायिक अधिकारियों के बीच काम आवंटित करना चाहिए  ताकि इन मामलों को विशेष रूप से दिन-प्रतिदिन के आधार पर निपटाया जा सके।

यह भी सिफारिश की गई है कि ‘दुर्लभ और असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तथा दर्ज किए जाने वाले कारणों को छोड़कर इन मामलों में कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा। इस दृष्टि से राज्यों को कम से कम दो विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति करनी चाहिए।

यह सुझाव दिया गया कि, ‘अगर सरकारी वकील और / या अभियोजन पक्ष त्वरित सुनवाई में सहयोग करने में विफल रहता है  तो ट्रायल कोर्ट आदेश की एक प्रति राज्य के मुख्य सचिव को भेजेगा, जो आवश्यक उपचारात्मक उपाय करेंगे और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।

एमिकस क्यूरी ने कहा कि यदि अभियुक्तों ने मुकदमे में देरी करने की कोशिश की, तो उनकी जमानत रद्द कर दी जानी चाहिए। सिफारिशों में ये भी प्रस्ताव किया गया है कि ऐसे मामलों की सुनवाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिनकी सजा मृत्युदंड या फिर आजीवन कारावास हो।

प्रस्ताव में ये सिफारिश भी की गई कि, मौजूदा विधायकों से जुड़े मामलों को पूर्व विधायकों की तुलना में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में मामले की आगे सुनवाई जुवाई में होगी।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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