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हद दर्जे तक लचर थी अतीक की सुरक्षा…सुरक्षा मानकों से किया गया खिलवाड़…!

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : माफिया आतीक अहमद की पुलिस सुरक्षा के बीच हत्या ने कई सारे सवालों को पैदा किया है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या अतीक की हत्या किसी गहरी साजिश का नतीजा है ?  उसे मारने वाले एक शूटर की बीजेपी नेताओं के साथ तस्वीर और उसके फेसबुक प्रोफाइल से उसके संबंधों का नया आयाम सामने आ रहा है। अदालत में पुलिस का हत्यारों की रिमांड न मांगना और उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज देना भी गले उतरने वाली बात है नहीं, खासकर तब जबकि जांच के तमाम पहलू अभी बाकी हैं। नैनी जेल में शूटरों की जान को खतरा देखते हुए उन्हें प्रतापगढ़ जेल शिफ्ट कर दिया गया है।

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है और योगी सरकार में अतीक अहमद की हत्या समेत के मामले समेत जितने भी एनकाउंटर हुए सभी की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की गई है। प्रख्यात वकील कपिल सिब्बल ने भी अतीक अहमद की हत्या से जुड़े सात सवाल पूछे हैं जो सामान्य रूप से पुलिस सुरक्षा में कोताही से संबंधित हैं।

आपको बता दें कि, अतीक अहमद ने कई बार मीडिया से बातचीत में अपनी जान को खतरा बताया था और इस सिलसिले में उसने सुप्रीम कोर्ट में भी गुहार लगाई थी। इस आलेख में     गणतंत्र भारत ने ये जानने की कोशिश की है क्या हत्या के समय़ अतीक को दी गई पुलिस सुरक्षा में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीज़र यानी एसओपी या कहा जाए कि सुरक्षा के तयशुदा मानकों का पालन किया गया या नहीं ?

मेडिकल देर रात क्यों ?

अतीक अहमद की जब हत्या की गई उस वक्त उसे मेडिकल के लिए कॉल्विन मेडिकल कॉलेज लाया गया था। वक्त रात में 10 बजे के आसपास का था। इतनी रात को अतीक को मेडिकल के लिए ले जाया जाना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। पुलिस के अनुसार, अदालत ने 24 घंटे में एक बार मेडिकल कराने का आदेश दिया था इसलिए ऐसा करना पड़ा। लेकिन इतनी रात में उसे ले जाने की क्या वजह थी, क्या ये पहले नहीं कराया जाना चाहिए था। खासकर तब जब अभियुक्त एक दुर्दांत अपराधी है और उसकी जान को खतरा है?  अदालत से अनुरोध करके मेडिकल जहां उसे बंदी रखा गया था वहां भी कराया जा सकता था। लेकिन क्या ऐसी कोई अर्जी अदालत के सामने दी गई, नहीं।

पैदल फासला तय करना

अतीक और अशऱफ को जब मेडिकल जांच के लिए लाया गया तो उन्हें कुछ दूरी पर जीप से क्यों उतारा गया जबकि जीप को और करीब तक लाया जा सकता था। एसओपी की बात करें तो सुरक्षा को खतरे वाली स्थिति में जहां तक संभव हो सुरक्षित वाहन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए और पब्लिक एक्सपोजर से बचना चाहिए। इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। अतीक की हत्या जीप से उतर कर पैदल चलने के दौरान की गई।

मीडिया या लोगों से दूरी

अतीक की जान को खतरा था। हत्यारे मीडिया कर्मी बन कर ही आए। निर्धारित मानकों की बात की जाए तो अतीक तक मीडिया को एक्सेस देना गलत था। किसी अपराधी तक मीडिया को बातचीत करने और बाइट लेने के लिए पहुंच देना ही गलत था और ये एसओपी का घोर उल्लंघन है।

एक हथकड़ी से दो अपराधियों को बांधना

रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी यशोवर्धन आजाद के अनुसार, एसओपी के तहत दो अपराधियों को एक ही हथकड़ी से नहीं बांधा जा सकता। अगर हथकड़ी लगाना जरूरी हो तो अलग-अलग हथकड़ी लगनी चाहिए। अतीक अहमद के मामले में उसे और अशरफ को एक ही हथकड़ी से बांधा गया था।

बुलेट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं ?

यशोवर्धन आजाद का कहना है कि, ऐसे मामलों में एसओपी ये है कि सुरक्षा में लगा दस्ता खुद भी बुलेट प्रूफ जैकेट पहनता है और कैदी को भी सार्वजनिक स्थानों पर ले जाते समय पहनने को कहा जाता है। यहां ऐसा कतई नहीं था। सुरक्षा दस्ते को छोड़िए, यहां तो अतीक को भी किसी तरह का कोई सुरक्षा जैकेट नहीं मुहय्या कराया गया था।

वर्चुवल हियरिंग क्यों नहीं ?

अतीक अहमद को सुनवाई के लिए अहमदाबाद के साबरमती जेल से प्रयागराज लाना और फिर सुनवाई के लिए अदालत में फिजिकली पेश करना, क्या जरूरी था ? यूपी के पूर्व डीजीपी विभूति नारायण राय के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के तहत वर्चुवल सुनवाई का विकल्प दिया जा सकता था। अतीक अहमद ने अपनी सुरक्षा के मामले को खुद अदालत के समक्ष रखा था। प्रयागराज में सुनवाई के लिए ले जाए जाते समय उसे धक्का मुक्की और गाली-गलौच झेलना पड़ा था। ऐसे में बार-बार उसे अदालत में पेशी और मेडिकल के लिए जेल से बाहर निकालना उसकी जान को जोखिम में डालने जैसा था और वो उसी का शिकार भी हुआ।

यशोवर्धन आजाद के अनुसार अतीक अहमद और अशरफ की जिस तरह से पुलिस सुरक्षा में रहते हुए हत्या की गई वो हाई लेवल का प्रोफेशनल इनकॉंपिटेंस है। अपराधी ताबड़तोड़ गोलियां बरसाते हैं और पुलिस की तरफ से एक भी गोली नहीं चलती। दलील ये कि पत्रकारों को गोली लग सकती थी। वे कहते हैं कि, ऐसे मामलों में जवाबदेही तय होनी चाहिए और दरोगा-सिपाही तक बात नहीं बल्कि उच्च अधिकारियों को कटघऱे में खडा़ किए जाने की जरूरत है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया       

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