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बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का आधे से ज्यादा पैसा सिर्फ ‘भोंपू’ बनने पर खर्च

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए एजेंसियां और शोध डेस्क) : क्या आपको पता है कि नरेंद्र मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के लिए अब तक आवंटित आधे से अधिक पैसा सिर्फ प्रचार पर खर्च कर दिया गया। यही नहीं, किसी भी राज्य ने इस मद में दी गई निधि का प्रभावी और सही इस्तेमाल नहीं किया। चंडीगढ़ और त्रिपुरा ने इस मद में मिले पैसे का इस्तेमाल ही नहीं किया जबकि बिहार जैसे पिछड़े राज्य में आवंटित राशि का सिर्फ 5.58 प्रतिशत ही इस्तेमाल किया गया।

ये जानकारी सरकार के दस्तावेजों से मिली है और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्य़सभा में एक प्रशन के जवाब में दी है। उन्होंने बताया कि बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ योजना के तहत साल 2014-2015 से 2020-2021 तक कुल 683.05 करोड़ रुपए खर्च किए गए  जिनमें से 401.04 करोड़ रुपए यानी 58 प्रतिशत राशि प्रचार पर खर्च की गई है। उन्होंने बताया कि, इस योजना का मकसद घटते बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) तथा पूरे जीवन चक्र में लड़कियों और महिलाओं के सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दों का समाधान करना है। उन्होंने कहा कि, वित्त वर्ष 2014-2015 से वित्त वर्ष 2020-2021 तक 683.05 करोड़ रुपए के कुल व्यय में से मीडिया एडेवोकेसी कैंपेन (प्रचार अभियान) पर 401.04 करोड़ रुपए का व्यय हुआ जो कुल व्यय का 58 प्रतिशत है।

स्मृति ईरानी ने बताया कि, सामुदायिक भागीदारी, जन्म के समय लिंग के चयन पर रोक और बालिकाओं की शिक्षा और विकास में मदद के लिए सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से बेटियों के अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए सभी स्तरों पर इस योजना के तहत लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस मामले में देश के कुछ जिलों में स्थितियां काफी खराब पाई गई और वहां महिला अपराधों की तादाद ज्यादा पाई गई। वहां हालात की समीक्षा के लिए प्रशासन और जनप्रतिनिधि के साथ लेते हुए मंत्रिस्तरीय बैठकों का आयोजन भी किया गया।

स्मृति ईरानी ने कहा कि, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ सिर्फ एक योजना ही नहीं है बल्कि ये जागरूकता से जुड़ा एक अभियान भी है। उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में जागरूकता फैलाने पर बल देने के लिए और बेटियों को महत्व देने की दिशा में समाज की सोच में परिवर्तन लाने के लिए मीडिया और ‘एडवोकेसी’ पर काफी जोर दिया गया। उन्होंने बताया कि, पिछले दो वर्षों में केंद्रीय स्तर पर ‘मीडिया एडवोकेसी’ अभियान पर खर्च में काफी कमी आई है और अब लोगों की सोच बदलने के लिए स्वभाव परिवर्तन संपर्क अभियन चलाने पर जोर दिया जा रहा है।

लोकसभा में संसदीय समिति की रिपोर्ट

गौरतलब है कि, पिछले साल दिसंबर में महिला सशक्तिकरण से संबंधित संसदीय समिति ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ योजना के तहत 80 प्रतिशत धनराशि सिर्फ और सिर्फ विज्ञापनों पर खर्च कर दी गई है।

राज्यों का निराशाजनक प्रदर्शन

महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि इस मामले में गठित संसदीय समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि, इस योजना के शुरू होने के बाद से 2019-2020 तक इसे कुल 848 करोड़ रुपए दिए गए। इस दौरान राज्यों को 622.48 करोड़ रुपए की धनराशि जारी की गई, लेकिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस आवंटित राशि का सिर्फ 25.13 प्रतिशत यानी 156.46 करोड़ ही खर्च किए।

संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, समिति को ये देखकर अत्यधिक निराशा हुई है कि किसी भी राज्य ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ निधियों को प्रभावी ढंग से उपयोग करने में सराहनीय प्रदर्शन नहीं किया है। चंडीगढ़ एवं त्रिपुरा का खर्च शून्य रहा जबकि बिहार ने आवंटित राशि का महज 5.58 प्रतिशत ही उपयोग किया।

आपको बता दें कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी 2015 में बेटी बचाओ योजना शुरू की थी और ये योजना प्रधानमंत्री की कई मह्तवाकंक्षी योजनाओं में से एक थी।  योजना का  उद्देश्य गर्भपात और गिरते बाल लिंग अनुपात जैसी समस्या से निपटना था। इस समय इस योजना को देश के 405 जिलों में लागू किया गया है।

फोटो सौजन्य़- सोशल मीडिया

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