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देश में IAS अफसरों की भारी कमी, जानिए, सरकार की क्या है तैयारी….

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : सरकार ने देश में आईएएस अफसरों के विकल्प के रूप में दूसरी केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों को नियुक्त करने की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार की कोशिश जल्द से जल्द इन अफसरों को विभिन्न मंत्रालयों में तैनात करने की है। इन अफसरों को प्रशिक्षण देने के लिए योजना तैयार कर ली गई है। देश में इस समय आईएएस अफसरों की भारी कमी है और सरकार के सामने इनके विकल्प के रूप में योग्य़ अफसरों की तैनाती एक बड़ी चुनौती है।

गणतंत्र भारत को मिली जानकारी के अनुसार, सरकार ने इस कमी से निपटने के लिए दूसरी  केंद्रीय सेवाओं से गैर-आईएएस अधिकारियों को मंत्रालयों में शामिल करना शुरू किया है। नरेंद्र मोदी सरकार ने गैर-आईएएस अधिकारियों को संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप निदेशकों के पद पर प्रोन्नत करने के लिए एक प्रशिक्षण योजना तैयार की है। इस योजना को आईएएस अफसरों के लिए निर्धारित प्रधानमंत्री की ‘मिशन कर्मयोगी’ योजना के एक हिस्से के तौर पर तैयार किया गया है जिसे कर्मयोगी भारत नाम दिया गया है।

कर्मयोगी भारत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अभिषेक सिंह हैं। उन्होंने बताया कि, कर्मयोगी भारत के तहत उन अधिकारियों के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल लाया जा रहा है जो आईएएस कैडर से नहीं हैं, लेकिन अब उन्हें संयुक्त सचिव, निदेशक या उप-निदेशक के रूप में नियुक्त किया जा रहा है। पहला बैच लगभग 40 अधिकारियों के साथ शुरू हुआ है जो विभिन्न केंद्रीय सेवाओं से हैं और भारत सरकार के मंत्रालयों और विभागों में नियुक्त किए गए हैं। सिंह ने कहा कि, प्रशिक्षण मॉड्यूल में प्रशासनिक संरचना में कार्य प्रक्रियाएं शामिल हैं। ये वर्कलोड के प्रबंधन, फाइलों पर नोट्स लिखने, नीतियों का मसौदा तैयार करने और सचिवालय से संबंधित दूसरे कार्यों के बारे में है।

मिली जानकारी के अनुसार, ये नियुक्तियां फिलहाल रेलवे, डाक, वन, राजस्व और रक्षा विभाग में की गई हैं। कर्मयोगी भारत में प्रशिक्षण के बाद इन गैर-आईएएस अधिकारियों को भी मंत्रालयों में आईएएस अधिकारियों के लिए रिजर्व पदों पर तैनाती दी जाएगी। केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा, आयुष, आर्थिक मामले और श्रम मंत्रालयों में दूसरी केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों को पहले ही तैनाती देनी शुरू कर दी है।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की 2021 की रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, ऑल इंडिया सर्विस (एआईएस) के नियमों के अनुसार, आईएएस अधिकारियों की प्रदत्त शक्ति का 22 प्रतिशत, कुल 6,709 अधिकारियों को केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्त किया जाना है जबकि मौजूदा वक्त में कुल स्वीकृत अधिकारियों में से केवल 6 प्रतिशत को ही केंद्र में प्रतिनियुक्त किया गया है। यानी कुल स्वीकृत तैनाती के सिर्फ 30 से 35 प्रतिशत अधिकारी ही प्रतिनियुक्ति पर केंद्र सरकार में तैनात हैं।

कार्मिक मंत्रालय संभाल रहे राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में जानकारी दी है कि, सिविल सेवा परीक्षा 2022 से 2030 की अवधि में हर साल सिविल सेवा के माध्यम से आईएएस अफसरों के सीधे प्रवेश की सिफारिश का काम देखने के लिए एक समिति गठित की गई है। समिति का काम देश में आईएएस अफसरों की जरूरत को देखते हुए उनकी संख्या का निर्धारण करना है ताकि उसी के हिसाब से भर्ती की जा सके। उन्होंने संसद को बताया कि, 22 केंद्रीय सेवाएं हैं और केंद्र सरकार अपने पास उपलब्ध कैडर अधिकारियों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने की कोशिश कर रही हैं।

आपको बता दें कि, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा पिछले एक महीने 17 नवंबर से 14 दिसंबर के बीच की गई 73 नियुक्तियों में से केवल 33 आईएएस अधिकारियों की थीं जबकि 55 प्रतिशत से अधिक नियुक्तियां गैर-आईएएस अधिकारियों की थीं।

केंद्र सरकार में सचिव के पद से सेवानिवृत्त एक पूर्व आईएएस अफसर ने बताया कि, केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालय इस समय आईएएस अफसरों की कमी से जूझ रहे हैं। केंद्र सरकार की कोशिश आईएएस की जगह लिटरल इंट्री के जरिए अफसरों की नियुक्ति से पूरा करने की थी लेकिन इन अफसरों की नियुक्ति संयुक्त सचिव स्तर तक ही हो सकती है और ऊपर से इनको नौकरशाही की कार्यशैली से परिचित कराने के लिए प्रशिक्षण की बेहद जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि, लेटरल इंट्री के जरिए भर्ती हुए अफसरों में भी इन सेवाओं को लेकर उत्साह में कमी देखी जा रही है। ऐसा देखा जा रहा है कि, अफसर अपने कॉंट्रेक्ट को रिन्यू कराने में दिलचस्पी कम रख रहे हैं और वे इन सेवाओं से वापस अपनी पेशेवर दुनिया में लौटना चाह रहे हैं। सरकार के लिए सबसे बड़ी सिरदर्दी की वजह यही है।

प्रशासनिक सुधार आयोग से जुड़े एक पूर्व सदस्य इस समस्या के लिए केंद्र सरकार की अस्पष्ट नीति को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि, प्रधानमंत्री ने संसद में नौकरशाही को लेकर जिस तरह के विचार रखे और उसके बाद लेटरल इंट्री का फलसफा सामने आया। ऐसा लगा कि शायद पेशेवरों की तैनाती को बढ़ावा दिया जाएगा। विचार बुरा नहीं था लेकिन ये नहीं सोचा गया कि सरकारी कार्यशैली उसके लिए किस हद तक तैयार है। निजी क्षेत्र की अपनी कार्यशैली होती है। वहां फाइलें महीनों नहीं घूमतीं। पेशेवर सरकारी क्षेत्र में पैसे के लिए नहीं आते पैसे तो वे अथाह कमाते हैं वे भी मेहनत के। सरकार को उनके हुनर का फायदा उठाना चाहिए। लेकिन शायद वो इसमें विफल रही है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया         

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