Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरी'प्रथमेशों' के दर्द की अंतहीन कहानियां...और एक विचित्र सरकारी अभियान...!

‘प्रथमेशों’ के दर्द की अंतहीन कहानियां…और एक विचित्र सरकारी अभियान…!

spot_img

कोटा / नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : कोटा में कई साल गुजारने वाले प्रथमेश (माता पिता के आग्रह पर नाम बदला गया) की कहानी कई उतार-चढ़ावों के साथ अंत में हर संजीदा इंसान को एक अंतहीन दर्द दे गई। प्रथमेश बिहार के सासाराम के रहने वाले थे। डॉक्टर बनना चाहते थे। जीतोड़ मेहनत की, चार साल कोटा में एक प्रतिष्ठित कोचिंग सेंटर से पढ़ाई की लेकिन सरकारी कॉलेज में दाखिले के लिए सफल नहीं हो पाए। मां-बाप की हैसियत प्राइवेट कॉलेज में पैसा देकर पढ़ाने की थी नहीं लिहाजा प्रथमेश के साथ पूरे परिवार के सपने बिखर गए।

प्रथमेश अपने घर सासाराम लौट गए लेकिन कोटा की असफलता ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने गांव में पंखे से लटक कर जान देने की कोशिश की लेकिन उसमें भी असफल रहे। पंखा उखड़ गया और वे नीचे आ गिरे। मरे तो नहीं लेकिन उनकी रीढ़ की हड्डी में ऐसी चोट लगी कि शरीर ही अपंग हो गया। मां-बाप का सहारा बनने का ख्वाब रखने वाले वाले प्रथमेश आज खुद मां-बाप के सहारे पर ही निर्भर हो गए।

ये कहानी सिर्फ एक प्रथमेश की नहीं है। कई प्रथमेश हैं। कोई जीवन से हार बैठा तो कोई जीवन को ही हारा हुआ समझ बैठा। राजस्थान के कोटा में ऐसी अनगिनत कहानियां बिखरी हुई हैं। कुछ के सपने साकार हुए तो कुछ जीवन भर का दर्द देकर जुदा हो गए। आश्चर्य की बात ये है कि कोटा में छात्रों से जुड़ी इन दुखांत कथाओं में पंखों यानी सीलिंग फैन की बहुत बड़ी भूमिका रही है। अधिकांश मामलों में असफल छात्रों की दुखभरी कहानी का अंत इन सीलिंग फैन्स के साथ खत्म होता है।

सीलिंग फैन्स को लेकर अभियान

राजस्थान सरकार ने सीलिंग फैन्स को लेकर ही एक अभियान की शुरुआत की है। कोटा जिले के डीएम ने एक आदेश जारी करके कोटा के सभी हॉस्टल्स और पीजी संचालकों को अपने कमरों में ऐसे पंखे लगाने का आदेश दिया है, जिनमें स्प्रिंग लगी हो, ताकि कोई छात्र पंखे से लटककर आत्महत्या न कर सके। ये आदेश हाल में ही महावीर नगर में एक छात्र के कथित तौर पर आत्महत्या करने के मामले के बाद सामने आया है। हालांकि बिहार के रहने वाले इस छात्र के परिजनों का कहना है कि उसने आत्महत्या नहीं की है। उसकी हत्या की गई है। कोटा में इस साल अब तक 22 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं।

हालांकि, कोटा के डीएम के आदेश को शिक्षा और सामाजिक मामलों के जानकार हास्यास्पद बता रहे हैं। उनका कहना है कि अगर कोई तय कर ले तो जान पंखे से लटककर ही नहीं, और भी कई तरीकों से दी जा सकती है। बेलगाम इंटरनेट के जमाने में नेट पर ही आत्महत्या के ढेरों तरीके बताए जाते हैं और सरकारों का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। उनका ये भी कहना है कि कोटा में जहां बहुत से छात्र हॉस्टल्स और पीजी में रहते हैं, वहीं ऐसे छात्रों की भी बहुत बड़ी तादाद है जो इनसे बाहर किराए के मकानों में रहते हैं। इन्हें कौन बचाएगा।

मुख्यमंत्री ने कमेटी बनाई

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक कमेटी बनाकर इन कोचिंग संस्थानों की जांच कराने का फैसला किया है। यह कमेटी यहां पढ़ने वाले बच्चों की सामाजिक, पारिवारिक स्थिति की भी पड़ताल करेगी और मानसिक स्वास्थ्य और काउंसलिंग आदि के बारे में जरूरी सुझाव देगी।

सवाल बच्चों पर दबाव का

मनोचिकित्सकों का मानना है कि हाल के सालों में जिस तरह से प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, माता-पिता की उम्मीदें परवान चढ़ी हैं, उससे बच्चों पर दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है। वे किसी अच्छे संस्थान में प्रवेश पाने के लिए कंपीटीशन को पास करना अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लेते हैं। इसमें कामयाब न रहने पर कई अपना जीवन तक समाप्त कर लेते हैं। उनका कहना है कि इस समस्या का हल पंखे बदलना नहीं है, बल्कि समाज की सोच बदलना है। बच्चों को कामयाबी का मतलब समझाना होगा और बताना होगा कि एक परीक्षा को पास कर लेने या न कर पाने से न सब कुछ मिल जाता है और न सब कुछ खत्म हो जाता है। इसके लिए छात्रों और पैरंट्स की काउंसिलिंग की जरूरत है।

कोटा में कोचिंग ले रहे कई छात्रों का कहना है कि हर पैरंट्स का सपना होता है कि उसका बच्चा किसी अच्छे कोर्स में दाखिला पाए। लेकिन उनको अपने बच्चे की क्षमता को भी ध्यान में रखना होगा। उस पर जोर जबरदस्ती से कोई पढ़ाई न थोपी जाए। जिस क्षेत्र में बच्चे की रुचि हो, उसे उसमें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। छात्रों का कहना है कि कई बार कई छात्र भी अपनी क्षमता को परखे बिना JEE और NEET को पास करना अपना लक्ष्य बना लेते हैं और फिर बाद में कुंठित होते हैं। ये छात्र यह भी कहते हैं कि कोचिंग के दौरान परिवार का सपोर्ट भी खास मायने रखता है। ऐसे में पैरंट्स को चाहिए कि वे पढ़ाई के दौरान लगातार बच्चे के संपर्क में रहें और उसका हौसला बढ़ाते रहें।

कोटा इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए देश का एक बड़ा कोचिंग हब बन गया है। हर साल देश के विभिन्न हिस्सों से बच्चे यहां कोचिंग के लिए आते हैं। ज्यादातर बच्चे मध्यवर्गीय या निम्न मध्यवर्ग के होते हैं। कई परिवार तो अपनी जमीन बेचकर या गिरवी रखकर अपने बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं। यहां अभी करीब ढाई लाख बच्चे JEE और NEET की परीक्षा के लिए कोचिंग ले रहे हैं। सभी बच्चों का अरमान होता है कि वे इन परीक्षाओं में निकलें, लेकिन इसमें नाकाम रहने और पढ़ाई के दबाव के कारण कई बच्चे अपनी जान तक दे देते हैं।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

Print Friendly, PDF & Email
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments