Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरी‘द होप’ के सवाल आज भी कायम...चेन्नै की छात्रा के सुसाइड नोट...

‘द होप’ के सवाल आज भी कायम…चेन्नै की छात्रा के सुसाइड नोट में यक्ष प्रश्न !

spot_img

नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : कई साल पहले फ्रांस में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म सम्मेलन में एक फिल्म पुरस्कृत हुई थी, द होप। फिल्म अपने कथानक के लिए खासी चर्चित हुई थी। इस फिल्म में मां और उसकी गर्भस्थ कन्या के बीच अद्भुद संवाद था। अजन्मी बच्ची अपनी मां से सवाल कर रही होती है कि उसे ऐसी दुनिया में क्यों जन्म लेना चाहिए जहां किसी लड़की के सामने हर कदम पर एक नई चुनौती खड़ी होती है। चुनौती परिवार से, चुनौती समाज से, चुनौती खुद महिलाओं से। हर किसी से उसे जंग लड़नी है।  

फिल्म का जिक्र सिर्फ संदर्भ के लिए था। आज भारत के तमाम अखबारों में एक फुल पेज का विज्ञापन छपा है। उत्तर प्रदेश में मिशन शक्ति का। चुनावी महीने हैं तो विज्ञापन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की फोटो के साथ है। महिला सशक्तिकण की तमाम योजनाओं का जिक्र है। अखबारों में एक और खबर का जिक्र है जो शायद सभी खबरों और ऐसे चुनावी दावों वाले विज्ञापनों से कही ज्यादा महत्वपूर्ण है। ये खबर ऐसे विज्ञापनों पर सवाल खड़े करती है। खबर चेन्नै की उस बच्ची से संबंधित है जो समाज की घटिया और कुत्सित मानसिकता के कारण आत्महत्या कर लेती है।

ये बच्ची कक्षा 11 की छात्रा थी। खुदकुशी से पहले उसने एक नोट लिखा जिसमें उसने इसकी वजह यौन उत्पीड़न को बताया और इंसाफ की मांग की। सुसाइड नोट मे उसने जो कुछ लिखा वो इस समाज, देश और सरकारों के मुंह पर करारा तमाचा है जो इस देश मे महिला सशक्तितरण और उनके हालात में बदलाव का दावा करते हैं। इस लड़की ने लिखा कि एक लड़की मां के गर्भ और कब्र में ही सुरक्षित है। स्कूल सुरक्षित नहीं हैं और टीचरों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। उसने लिखा कि, मानसिक प्रताड़ना के कारण वो न तो पढ़ पा रही थी, न ही सो पा रही थी। नोट के अंत में उसने लिखा कि हर माता-पिता को अपने बच्चों और बेटों को लड़कियों का सम्मान करना सिखाना चाहिए। यौन उत्पीड़न बंद हो, मुझे इंसाफ मिले। उसने अपने सुसाइड नोट में तीन आरोपियों की तरफ भी इशारा किया है जिसमें रिश्तेदार, शिक्षक और सभी के शामिल होने की बात कही है।  

छात्रा का ये नोट अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। ये उन तमाम दावों पर सवाल खड़े करता है जो महिला सशक्तिकरण से संबंधित हैं। ये उस सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रश्न करता है जो संस्कारी और सांस्कृतिक संमृद्धि की बात करती है। ये नोट उन शिक्षकों से भी सवाल पूछता है जो भावी पीढ़ी के मार्गदर्शक हैं।

समाजविज्ञानी प्रोफेसर राधारमण के अनुसार, दुनिय़ा में मान्यताएं बदली हैं या नहीं ये चर्चा का विषय हो सकता है लेकिन जहां तक भारतीय समाज की बात है वहां समाज में महिलाओं के हालात सुधरने के दावे सिर्फ दावे भर हैं। उन्होंने कहा कि, उत्तर प्रदेश में मिशन शक्ति शुरू हुआ। महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण जैसे वादे और नारे समाने आए। लेकिन हाथरस जैसे कांड क्या बंद हो गए। पता नहीं कितनी और घटनाएं हुई और हो रही हैं। वे कहते हैं कि सरकारें तो सत्ता की राजनीति में तमाम झूठे- सच्चे वादे करती रहती है, लेकिन समाज का क्या।

प्रोफेसर राधारमण मानते हैं कि, कोई भी घटना होती है तो कुछ दिनों तक हाय तोबा मचेगा फिर वही ढाक के तीन पात। चेन्नै की बच्ची ने जाते जाते समाज के सामने एक यक्ष प्रश्न प्रस्तुत कर दिया है। महिला को देवी मत बनाओं उसे महिला ही रहने दो। पाखंड की जरूरत नहीं। समाज तो उसे जीने भी नहीं देना चाहता।

एक अन्य समाजविज्ञानी प्रोफेसर पी कुमार, सवाल उठाते हैं कि, पूरे देश में नेश्नल क्राइम रिकॉर्ड ब्यरों के आंकड़ों पर जाएं तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश वे राज्य हैं जहां महिलाओं से संबंधित अपराध सबसे ज्यादा हैं। आंकड़े को सिर्फ दर्ज मामलों की बात करते हैं। बहुत से क्या, अधिकतर मामलों में सामाजिक दबाव और बदनामी के डर से ऐसे मामले पुलिस तक पहुंचते ही नहीं। पुलिस भी पहली कोशिश मामले को दबाने की ही करती है।

प्रोफेसर कुमार के अनुसार, ये सच है कि, समाज चाहे कितनी जातियों, वर्गों और संस्कृतियों में बंटा हो लेकिन दुनिया अभी भी मोटे तौर पर सिर्फ पुरुषों और महिलाओं के बीच ही बंटी है। होप फिल्म की अजन्मी बच्ची के सवाल आज भी ज्यों का त्यों कायम हैं। वास्तव में महिलाओं के सामने संघर्ष की अंतहीन चुनौतियां हैं।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया             

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments