नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : चीन की नजर भारत की जमीन पर तो एक अर्से से गड़ी हुई है ही, अब वो हमारी जड़ी-बूटियों को भी अपनी बताने की कोशिशों में जुटा हुआ है। इसके लिए वो भारत-चीन सीमा से लगते हुए हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों को अपना बताने और उनका पेटेंट कराने का प्रयास कर रहा है। इस मकसद के लिए वह प्लांट्स के नाम भी बदल दे रहा है। इस कवायद का उद्देश्य ये है कि अगर इन प्लांट्स पर चीन का कब्जा हो जाता है तो भारत या कोई और देश इनका इस्तेमाल नहीं कर सकता है। इससे चीन या उसकी कंपनियों को इस तरह की जड़ी-बूटियों से बनी हुई दवाओं, कॉस्मेटिक्स या अन्य उत्पादों की बिक्री से भारी मुनाफा होगा। गौरतलब है कि भारत-चीन सीमा पर कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं जो दोनों देशों पाई जाती है। इसकी वजह इस इलाके की भौगोलिक समानता है।
वैसे, चीन के साथ ही कई अन्य देशों की भी नजर हमारी परंपरागत जड़ी-बूटियों और अन्य मेडिसिनल प्लांट्स पर अरसे से लगी हुई है। इसी के तहत किसी देश की कोई कंपनी तुलसी, नीम, हल्दी, जामुन और इनसे बनी दवाओं और कॉस्मेटिक्स का पेटेंट कराने का प्रयास करती है तो कोई ब्राह्मी और अश्वगंधा पर कब्जा जमाने की साजिश करती है। हकीकत ये है कि हमारे देश में हजारों मेडिसिनल प्लांट्स से दवाएं और कॉस्मेटिक्स आदि बनाने का काम सदियों से हो रहा है। हमारे देश में आयुर्वेद, सिद्ध, सोवा रिग्पा और यूनानी की समृद्ध परंपरा है।
चीन के साथ ही और देशों की इस तरह की कोशिशों को नाकाम करने के लिए औद्योगिक एवं वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद काफी समय से काम कर रही है। इसकी जम्मू स्थित इकाई चीन से लगी भारतीय सीमा में पाए जाने वाली जड़ी-बूटियों का डेटा काफी समय से तैयार कर रही है। इसके साथ ही परिषद की ही एक और इकाई ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी ने भी भारतीय औषधीय पौधों के परंपरागत इस्तेमाल के लिए डिजिटल डेटा और संबंधित जानकारी एकत्र की है। इससे किसी भी देश को पता चल सकता है कि भारत में किसी प्लांट का कब से और क्या उपयोग हो रहा है। इसके साथ ही परिषद की ही हैदराबाद इकाई ने पौधों के डीएनए को गाय के दूध की मदद से शुद्ध रूप से अलग करने की एक नायाब तकनीक का विकास किया है।
इस तकनीक का फायदा ये होगा कि अगर चीन हमारी किसी वनस्पति पर दावा करता है या उससे बने किसी उत्पाद को पेटेंट कराता है, तो हम प्लांट के डीएनए के आधार पर उसके दावे को चुनौती दे सकते हैं। हमारे पास प्लांट्स का डीएनए मौजूद होने पर चीन या किसी और देश के लिए उसे या उससे बने उत्पाद को पेटेंट करना पाना संभव नहीं होगा। उसे बताया जा सकता है कि ये पौधा भारत की जमीन पर भी होता है।
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