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सिविल सेवा, बदलाव की हिमायत पर, इतना हंगामा है क्यों बरपा ?

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र):

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में सिविल सेवाओं को लेकर जिस तरह के रुख का इज़हार किया उस पर नौकरशाही से लेकर मीडिया तक में हलचल मच गई है। सोशल मीडिया के मंचों पर रिटायर्ड सिविल सेवकों में इस सवाल पर तगडी बहस चल पड़ी है। इस बहस में बड़ी बहस प्रतिबद्ध नौकरशाही ( कमिटेड ब्यूरोक्रेसी) और चारक नौकरशाही ( लॉयल ब्यूरोक्रेसी) के सवाल पर हो रही है। इसके समानांतर इन सेवाओँ में लेटरल इंट्री भी बहस का मुद्दा बना हुआ है।

सरकार की तरफ से केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव और निदेशक के पदों पर सीधी भर्ती के लिए 30 पदों का विज्ञापन प्रकाशित किया गया। विज्ञापित पदों में से 3 संयुक्त सचिव पद के लिए हैं जबकि 27 पद निदेशकों के हैं। इन पदों पर नियुक्ति 3 से लेकर 5 वर्षों की संविदा के आधार पर होनी है। इन नियुक्तियों में आरक्षण के प्रावधान लागू नहीं हैं। पिछले साल भी, लिटेरल इंट्री के जरिए 9 पदों पर भर्ती की गई थी जिसमें चुनी गई काकोली घोष ने सेवा को ज्वाइन ही नहीं किया जबकि अरुण गोयल ने बाद में पद से इस्तीफा देकर वापस निजी क्षेत्र में काम शुरू कर दिया।         

भारत में बहुतों का मानना है कि पिछले दशकों में सिविल सेवा की दशा और दिशा पर बहुत असर पड़ा है और उसकी चमक फीकी पड़ी है। ये भी माना जा रहा है कि देश में नौकरशाही की प्रतिबद्धता और साख सवालों के घेरे में आ गई है। प्रशासनिक सुधार आयोग और नीति आयोग की कमेटी ने भी इन मसलों को लेकर सरकार को भेजी अपनी सिफारिशों में इन मुद्दों को उठाया है।  

इसमें कोई दो राय नहीं कि, समय के साथ सिविल सेवा में जिस तरह के बदलाव की अपेक्षा थी वो नहीं की गई और इसी कारण से बदलती परिस्थितियों के साथ इस सेवा की प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे। आजादी के तुरंत बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अखिल भारतीय सेवाओं को खत्म करना चाहते थे लेकिन तत्कालील गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने इन सेवाओं को बरकरार रखने की जोरदार वकालत की और ये सेवाएं बनी रहीं।

नीति आयोग की संस्तुतियां

नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल से ही सरकार ने सिविल सेवाओं में सुधार के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया। सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने साल 2018 में अपनी रिपोर्ट में इस विषय को बहुत गंभीरता से लिया। THE STRATEGY FOR NEW INDIA @ 75  नाम से सौंपी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 तक नए भारत के विकास के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए सिविल सेवा में भर्ती, प्रशिक्षण और उनके कामकाज की समीक्षा के लिए व्यापक सुधार की जरूरत है। सरकार ने भी मिशन कर्मयोगी कार्यक्रम के तहत सिविल सेवकों के ऐसे प्रशिक्षण पर बल दिया जिससे उनमें रचनाधार्मिता का विकास होने के साथ ही वे दूरदर्शी, प्रगतिशील, ऊर्जा से भरपूर और बेहतर पेशेवर बन सकें।

प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें

दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस संदर्भ में कई सिफारिशें कीं। साल 2005 में गठित इस आयोग ने अपनी सिफारिशें 2009 में सरकार को सौंपी। प्रशासन से जुड़े विभिन्न आयामों पर इसने करीब 15 रिपोर्टें सरकार को सौंपी और 1514 संस्तुतियां कीं जिसमें से 1183 संस्तुतियों को सरकार ने स्वीकार कर लिया और विभिन्न मंत्रालयों को इन पर अमल के लिए भेज दिया। नीति आयोग के अनुसार, बहुत सी संस्तुतियों पर अभी भी अमल नहीं किया गय़ा है।  

प्रभावी सिविल सेवा की राह में चुनौतियां

इस रिपोर्ट में प्रभावी, पारदर्शी और जवाबदेह सिविल सेवा की राह में कई तरह की चुनौतियों का जिक्र किया गया है। इनमें ओहदे और कौशल के बीच असमानता का सबसे पहले जिक्र है जिसमें मौजूदा भर्ती प्रक्रिया में विशेषज्ञता के अभाव का उल्लेख किया गया है। इसी तरह से सिविल सेवाओं में विभिन्न तरह के विशेषज्ञों की जरूरत का जिक्र भी रिपोर्ट में है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि, हर पांच साल में इस बात की समीक्षा की जानी चाहिए कि किस तरह के लोकसेवककों की जरूरत है और उसी के अनुरूप भर्ती होनी चाहिए।

पूर्व सिविल सेवक और कंसल्टिंग फर्म के संस्थापक प्रबीर झा के अनुसार, नौकरशाही में कौन इस तरह के बदलाव लाएगा जबकि इस बदलाव की जिम्मेदारी खुद उन्हीं लोगों के हाथ में है जिन्हें बदला जाना है। वे सुझाव देते हैं कि सबसे पहले तो अंकों के आधार पर सेवाओं का आवंटन नहीं होना चाहिए। शीर्ष रैंकिंग वाले उम्मीदवार आमतौर पर आईएएस, आईएफएस या आईपीएस जैसी सेवाओं में जाने का विकल्प चुनते हैं लेकिन कई बार उनके अंदर इस सेवाओं के लिए अपेक्षित कौशल नहीं होता। प्रशिक्षण के दौरान ऐसे बहुत से तरीके हो सकते हैं जिनसे उम्मीदवार के कौशल को आंका जा सकता है और उसी के अनुरूप उसे सेवा चुनने का मौका दिया जाना चाहिए।

दूसरी समस्या, सिविल सेवक की स्थायी नौकरी और खुद ब खुद होने वाला प्रमोशन है। बेहतरीन और साहसी अफसर आज की जरूरत हैं चाहे वे अलोकप्रिय ही क्यों ना हों। लेकिन सुरक्षित नौकरी ने इन सेवाओँ मे कहीं ना कहीं अक्षम और भ्रष्ट किस्म के अफसरों को बढ़ावा दिया है। उनका कहना है कि, सिविल सेवकों के प्रमोशन में हर स्तर पर उनके कामकाज की ठोस समीक्षा होनी चाहिए उसके बाद ही उन्हें प्रमोशन दिया जाना चाहिए।

उन्होंने ये सुझाव भी दिया कि, लोकतांत्रिक व्यवस्था में सिविल सेवकों को राजनेताओं के साथ मिलकर काम करना होता है। इसके बुरे नतीजे देखे जा रहे हैं। इससे बचने के लिए सिविल सेवाकों के करियर मसलों को देखने के लिए सिविल सेवा बोर्ड होना चाहिए। उन्होंने  सुझाव दिया कि शीर्ष पदों पर बैठे लोकसेवकों की कार्यप्रणाली कहीं ज्य़ादा पारदर्शी और जवाबदेह होनी चाहिए।

लिटेरल इंट्री

लिटेरल इंटट्री के सवाल पर विशेषज्ञों की राय़ अलग-अलग है लेकिन नीति आयोग की रिपोर्ट में साफ है कि आज प्रासंगिकता विशेषज्ञ सेवाओं की है। तमाम विभाग ऐसे हैं जो कोई विशेषज्ञ या पेशेवर ही संभाल सकता है। रिपोर्ट के अनुसार आज स्पेशलिस्ट अफसर और जनरलिस्ट अफसर में फर्क करने और उनमें संतुलन बनाने का वक्त है। मौजूदा तंत्र ऐसे अफसर तैयार करता है जो सिर्फ सामान्य प्रशासन के लिए ही उपयुक्त हैं और ज्यादातर सेवाओँ के लिए वे अप्रासंगिक हो चुके हैं।   

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया

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