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गुजरात की लड़ाई में AAP कहां, कांग्रेस को हल्के में लेना कितना उचित ?

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जयपुर, 15 अक्टूबर (गणतंत्र भारत के लिए अहमदाबाद से लौटकर कैलाश शर्मा की ग्राउंड रिपोर्ट) : गुजरात में विधानसभा चुनाव मुहाने पर खड़ा है। पक्ष-विपक्ष सबके अपने-अपने दावे हैं। कई तरह के ओपिनियन पोल करवाए जा रहे हैं। अधिकतर पोल सर्वे बीजेपी की जीत का दावा कर रहे हैं। लेकिन गुजरात की ग्राउंड रिपोर्ट का आंकलन किया जाए तो इनमें से अधितकर सर्वे प्रायोजित और फर्जी किस्म के हैं जिन्हें मीडिया में हवा बनाने के लिए कराया गया है। गणतंत्र भारत ने राज्य के चुनावी हालात का जाय़जा लेने के लिए गुजरात के विभिन्न इलाकों में जाकर जनता का मन टटोलने की कोशिश की।

तीन तथ्य एकदम साफ हैं। पहला, राज्य में बीजेपी पिछले 27 वर्षों से शासन कर रही है। उसके खिलाफ एक एंटी इकंबेंसी है। दूसरा, बीजेपी से नाराजगी क्य़ा वोटों में तब्दील हो पाएगी? तीसरा, आम आदमी पार्टी इन चुनावों में राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकती है लेकिन वो गांधीनगर में राज्य की सत्ता पर काबिज होने की लड़ाई में है ऐसा तो फिलहाल नहीं होने जा रहा है।

बीजेपी के खिलाफ एंटी इंकंबेंसी

गुजरात में बीजेपी को सत्ता संभाले ढाई दशक से ज्यादा समय बीत चुका है। इस दौरान राज्य ने भयंकर दंगों को झेला, नरेंद्र मोदी ने इस समयावधि में से अधिकतर वक्त तक राज्य़ की कमान संभाली। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात मॉडल को सुशासन की मिसाल के रूप में पेश किया गया। आज गुजरात में बीजेपी नहीं नरेंद्र मोदी ही सत्ता का चेहरा हैं। उनके दिल्ली जाने के बाद राज्य में कई मुख्यमंत्री बदले लेकिन कोई भी माइनस मोदी न तो बीजेपी की और न ही खुद की जमीन तैयार कर पाया।

सवाल ये है कि, राज्य़ में पिछले आठ सालों से मोदी तो हैं नहीं ऐसे में बीजेपी की स्थिति क्या है ?  लंबे समय तक सत्ता में रहने का अपना लाभ है, तो नकसान भी है। इस बार मतदाता बीजेपी का विकल्प चाहता है। लेकिन इस तलाश को भुना पाने में कांग्रेस या थोड़ा बहुत आम आदमी पार्टी किस हद सफल रहेगी ये जरूर देखने वाली बात होगी।

गुजरात में कांग्रेस के प्रभारी डॉ. रघु शर्मा ने पार्टी के पुराने जनाधार को वापस खींचने के लिए कड़ी मेहनत की है। पार्टी का आंकलन है कि थोड़ी और मेहनत और पार्टी आलाकमान की दृढ़  इच्छाशक्ति से नैया पार हो सकती है और कांग्रेस 100 से अधिक सीटें जीतने की स्थिति में आ सकती है। ये संवाददात जब राज्य के दौरे पर था तो लोगों से बातचीत में भी इसी तरह का संकेत मिला। लेकिन साथ में ये बात भी निकल कर सामने आई कि पार्टी की  अंदरूनी लड़ाई इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा है और आलाकमान अगर इस मामले में सख्ती के साथ संतुलन साध ले कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो सकती है।

शायद, इस सच का आभास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी है, तभी उन्होंने आणंद के नजदीक आयोजित एक जनसभा में कह भी दिया कि कांग्रेस की रणनीति ने ग्रामीण इलाकों में मतदाताओं तक पहुंच बनाई है, इस स्थिति में बीजेपी को आगे करने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को गतिशील होना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ये चिंता स्वाभाविक है। बीजेपी 27 साल से गुजरात की सत्ता में है। ऐसे में बीजेपी के प्रति राज्य में एक बड़ी एंटी इंकंबेंसी बनी हुई है। दूसरी बड़ी वजह, बीजेपी के लिए जो मुश्किल पैदा कर रही है वो है उसके मूल कार्यकर्ताओं का व्यथित होना। उनका कहना है कि, सिस्टम में उनकी चलती नहीं है और रही सही कसर को बिगाड़ने का काम पार्टी की सोशल मीडिया टीम करती है। उसकी ट्रोलिंग से पार्टी के खिलाफ ही माहौल तैयार हो रहा है। राज्य की जनता अब सच और झूठ के फर्क को आसानी से समझ रही है।

कांग्रेस या आम आदमी पार्टी ?

राज्य में कांग्रेस का पुराना जनाधार है। गांव-गांव और घर-घर में पार्टी के लोग मौजूद हैं। उन्हें बस चार्ज करने की जरूरत है। जनता भी बीजेपी के विकल्प के रूप में कांग्रेस की तरफ आज भी देखती है। मौजूदा माहौल में चुनावी लिहाज से आम आदमी पार्टी सौराष्ट्र के क्षेत्र में थोडा बहुत बेहतर करने की स्थिति में है। राज्य में उसकी स्थिति ऐसी कतई नहीं है कि वो गांधीनगर की कुर्सी पर काबिज हो सकती है।

दिल्ली में बैठे कांग्रेस के कई रणनीतिकारों की माने तो पार्टी के पास गुजरात चुनावों को लेकर एक रोडमेप तैयार है और भीतरी तौर पर गुजरात में काम हो भी रहा है लेकिन चुनावों की घोषणा के साथ उसकी रणनीति और प्रभावी होती जाएगी। पार्टी मानती है कि गांधी नगर की कुर्सी के लिए लड़ाई तीनतरफा नहीं बल्कि दोतरफा होने वाली है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया  

 

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