नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र): राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिद्धू और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टी.एस सिंहदेव। सभी जगह पार्टी एक, नेता दो और इनके बीच आंकड़ा छत्तीस। कांग्रेस पार्टी की इस आपसी सिर फुटव्वल ने पहले से ही कमजोर पार्टी की चूले हिला दी हैं। पार्टी में नेतृत्व को लेकर दुविधा बनी हुई है। राहुल गांधी न तो कमान संभालने को तैयार हैं और न ही कमान छोड़ने को। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और सुष्मिता देव पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं और ऐसे ही हालात रहे तो बहुत से और लोग पार्टी से किनारा करने को तैयार हैं।
पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़
पंजाब में कुछ महीनों के बाद चुनाव हैं। कैप्टन और सिद्धू के बीच लड़ाई ने पार्टी में खेमेबंदी को सतह पर ला दिया है। कांग्रेस आलाकमान और राज्य में पार्टी प्रभारी हरीश रावत की तमाम कोशिशों के बाद भी राज्य में आए दिन नए–नए मसले खड़े हो रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार जंयंती के अनुसार, कांग्रेस आलाकमान ने नवजोत सिद्धू को राज्य में पार्टी अध्यक्ष बना कर रणनीतिक भूल की है। सिद्धू का विवादों से पुराना नाता है। वे जिस पार्टी में भी रहे वहां उन्होंने उसे नुकसान पहुंचाया। चुनाव के एन वक्त पार्टी हाईकमान की ये पहल उसे बहुत नुकसान पहुंचाने वाली है।
राजस्थान के हालात कुछ अलग हैं। अशोक गहलोत राज्य में जनाधार वाले नेता है। उनके दूसरे दलों से भी अच्छे संबंध हैं। वे पार्टी और सरकार को चलाना जानते हैं। सचिन पायलट युवा और मेहनती हैं लेकिन उनकी वो स्वीकार्यता नहीं जो गहलोत की है। जयपुर में वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा मानते हैं कि गहलोत और पायलट के बीच खींचतान पार्टी के हक में ठीक नहीं लेकिन मौजूदा हालात में गहलोत को छेड़ना पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। सचिन पायलट का पार्टी विधायकों से वो संबंध नहीं जो गहलोत का है। हां, सचिन पायलट अगर बीजेपी के सहारे कुछ आजमाना चाहें तो बात अलग है।
छत्तीसगढ़ की तो कहानी ही अलग है। राज्य में रमन सिंह के लंबे कार्यकाल के बाद कांग्रेस भारी बहुमत से सत्ता में आई। भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने। टी.एस सिंहदेव पहले दिन से ही असंतुष्ट रहे। बघेल ने राज्य में ठीकठाक काम किया है और उनकी जड़े मजबूत हैं लेकिन उनकी सरकार को अपनी ही पार्टी के असंतुष्ट खेमे से जो मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं उससे राज्य में कांग्रेस को ही नुकसान हो रहा है। जयंती के अनुसार, बघेल की मुश्किलें इसलिए भी ज्यादा बढ़ गई हैं क्योंकि टीएस सिंहदेव रजवाड़े हैं और उनके ज्योतिरादित्य सिंधिया से अच्छे संबंध हैं। बघेल के खिलाफ असंतोष को भड़काने में ये जुगलबंदी भी अपना काम कर रही है।
पार्टी अलाकमान का कमजोर चेहरा
कांग्रेस में पार्टी नेतृत्व को लेकर मंथन पिछले काफी समय से चल रहा है। ये असमंजस गांधी परिवार की ढुलमुल नीति के कारण और गहरा गया है। कांग्रेस के नेतृत्व संकट पर सवाल उठाने वाला जी -23 गुट भी समय-समय पर मुखऱ होता है लेकिन पार्टी में कुछ होता हुआ दिखता नहीं। अध्यक्ष कौन होगा, कैसे पार्टी को आगे ले जाना है ये सब सवाल गौण हो चुके हैं। जयंती के अनुसार, कांग्रेस की दिक्कत ये है कि, गांधी परिवार न तो आगे बढ़ रहा है और न ही वो अपने हाथ से कमान को निकलने देना चाहता है। इस समय जिस तरह के हालात देश में है वो विपक्षी दलों के लिए बहुत मुफीद हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या विपक्ष उसके लिए तैयार है। जयंती के अनुसार, कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी। आपसी झगड़े से कांग्रेस ही नहीं पूरे विपक्ष को नुकसान हो रहा है। इसे देखते हुए ही कई राजनीतिक दलों ने कांग्रेस से दूरी बना ली है।
इसके बावजूद जयंती मानती हैं कि, विपक्ष में कांग्रेस ही वो धुरी है जिसके इर्द गिर्द संयुक्त विपक्ष का तानाबाना बुना जा सकता है। कांग्रेस इसके लिए खुद को कितना तैयार कर पाती है, ये देखने वाली बात होगी।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया