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यूपी में प्रियंका का एकला चलो रे ! नई जमीन की कांग्रेसी तलाश या कुछ और…

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए लेखराज) :  हालंकि राजनीति में जो होता है वो दिखाई नहीं देता और जो दिखता है वो होता नहीं। लेकिन, फिर भी उत्तर प्रदेश के सियासी मैदान में प्रियंका गांधी ने साफ कर दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव कांग्रेस अपने दम पर अकेले लड़ेगी।

बुलंदशहर में कांग्रेस प्रतिज्ञा सम्मेलन- लक्ष्य 2022 कार्यक्रम में कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश में पार्टी प्रभारी प्रियंका गांधी ने कहा कि, मुझसे कई लोगों ने कहा कुछ भी करिए, इस बार गठबंधन मत करिए। मैं आप लोगों को आश्वासन देना चाहती हूं हम सारी सीटों पर लड़ेंगे, अपने दम पर लड़ेंगे।

इससे पहले, शनिवार को प्रिंयका गांधी बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती के घर उनकी मां के निधन पर संवेदना जताने पहुंची थीं। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव से एक फ्लाइट में प्रियंका की मुलाकात के भी सियासी मायने तलाशे जा रहे थे। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ भी कांग्रेस की गुपचुप तालमेल की कोशिशो की खबरें भी आईं। लेकिन प्रियंकी गांधी की इस घोषणा से नए सिरे से सियासी- गुणा भाग शुरू हो गया है।  

गठबंधन के असफल प्रयोग

राजनीतिक गठबंधन को लेकर कांग्रेस को कभी भी अपेक्षित नतीजे नहीं मिले और उसे कड़ुवे इतिहास का सामना करना पड़ा है। हाल-फिलहाल देखा जाए तो, 2017 में कांग्रेस ने यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था लेकिन वो प्रयोग बुरी तरह से फ्लॉप रहा। कांग्रेस ने बिहार में पिछला विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर लड़ा और कांग्रेस यहां भी फिसड्डी साबित हुई। तेजस्वी यादव की सरकार नहीं बन पाने का ठीकरा कांग्रेस के सिर ही फूटा।  पश्चिम बंगला में वाम मोर्चे के साथ कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा और वो बुरी तरह से फेल रही।

असम में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एआईयूडीएफ  के साथ गठबंधन किय़ा। कांग्रेस के नेतृत्व में 10 पार्टियों के महाजोत (महागठबंधन) का ऐलान हुआ लेकिन इस गठबंधन को मात्र 50 सीटें मिलीं। इसमें से कांग्रेस महज 29 सीटें ही जीत पाई।

बात सिर्फ कांग्रेस की नहीं है जिन दलों के साथ कांग्रेस ने गठबंधन किया वे भी अपनी पराजय के लिए कांग्रेस को ही दोष देते हैं। समाजवादी पार्टी हो या आरजेडी सभी को इस बात का मलाल रहा कि कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन काम का नहीं रहा। ये कयास भी लगाए जा रहे हैं कि गठबंधन की पृष्ठभूमि को देखते हुए कोई भी दल आज कांग्रेस से हाथ मिलाने को तैयार ही नहीं है और कांग्रेस को भी इस बात का अंदाजा है।     

उत्तर प्रदेश में 1989 के बाद लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, कांग्रेस लगातार अपना जनाधार खोती चली गई। 1989 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास 94 सीटें थीं जो 1991 में घटकर 46 रह गईं। 1993 में 28 तो 1996 में कांग्रेस को 33 सीटें मिलीं। 2002 में 25,  2007 में 22 सीट और 2012 में 28 सीट मिलीं। 2017 में यूपी में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया। इस चुनाव में 298 सीटों पर समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार उतारे तो 105 सीटों पर कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारे। कांग्रेस को सिर्फ 7 सीटों पर विजय हासिल हुई। समाजवादी पार्टी को भी भारी नुकसान हुआ और उसकी जीत के खाते में सिर्फ 47 सीटें आ पाईं।    

कांग्रेस को नई जमीन की तलाश

यूपी में कांग्रेस के साथ इस समय कई तरह की चुनौतियां है। पहला, अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ना और अपनी राजनीतिक अहमियत को हासिल कर पाना। दूसरा, 2024 के लोकसभा चुनाव की राजनीतिक जमीन को तैयार करना और तीसरा अपने लिए एक अलग वोटबैंक तैयार कर पाना। प्रियंका गांधी ने काग्रेस के तरफ से विधानसभा चुनावो के लिए 40 प्रतिशत महिला आरक्षण का पासा फेंक कर संकेत दे दिया है कि कांग्रेस किस तरह से महिला वोटरों को साधने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस की ये भी कोशिश होगी कि वो अपने पारंपरिक वोटबैंक को फिर से अपनी तरफ खींच पाए। गठबंधन के प्रयोग कांग्रेस के वोटशेयर को कम ही करते रहे। 20217 में कांग्रेस का वोटशेयर सिर्फ 6.2 प्रतिशत रहा जबकि 2012 में कांग्रेस को 11.5 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।    


फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया

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