नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान जताया था कि कोरोना महामारी का 2022 में अंत हो जाएगा। लेकिन क्या सचमुच में ऐसा होने वाला है ? नहीं, कोरोना, डेल्टा, ओमिक्रॉन, डेल्ट्रॉन और कोरोफ्लू पता नहीं इस कड़ी में कितने वायरस आ चुके है या और आने वाले हैं ? विशेषज्ञ इस बारे में ठोस रूप से कुछ भी कह पाने से बच रहे हैं। लेकिन एक बात तो एकदम साफ है कि इस महामारी ने दुनिया की कई फार्मा कंपनियों की पौ बारह कर दी है और वे आपदा में अवसर तलाशते हुए अथाह पैसा कमाने में लगी हैं। वे नहीं चाहती कि दुनिया से कोविड-19 महामारी का कभी अंत हो। ये कंपनियां इस हद तक दुस्साहसी हो चुकी हैं कि वे सरकारों को अपनी शर्तों पर झुकाने और ब्लैकमेल करने लगी है।
महामारी के ताजे संस्करण की बात करें तो इस वक्त कोरोना का नया वैरियंट ओमिक्रॉन चर्चा में है। दुनिया के करीब 125 देश ओमिक्रॉन की जद में आ चुके हैं। दक्षिण अफ्रीका से शुरू हुआ ओमिक्रॉन इस समय यूरोप और अमेरिका में छाया हुआ है। सरकारें, स्वास्थ्यकर्मी और वैज्ञानिक इस नए वैरियंट को लेकर बेहद चिंतित हैं और इससे कैसे बचा जाए इसकी जुगत लगाने में जुटे हैं। लेकिन दूसरी तरफ फार्मा कंपनियां हैं जो इस आपदा में अवसर को कैसे इनकैश करना है इसे बखूबी समझ रही हैं और उसी दिशा में काम कर रही हैं।
आंकड़ों का सच
दुनिया में कोविड महामारी से निपटने के लिए वैक्सीन तैयार करने वाली दो बड़ी फार्मा कंपनियां हैं मॉडर्ना और फाइज़र। मॉडर्ना 2020 तक घाटे में चलने वाली कंपनी थी। कोरोना की वैक्सीन क्या बनाई इस साल 2021 में इस कंपनी को 7 अरब डॉलर का मुनाफा हुआ। ये मुनाफा बढ़ता ही चला जा रहा है।
फाइजर 2020 तक 8 अरब डॉलर के फायदे वाली कंपनी थी। 2021 में तीसरे क्वाटर तक उसे 19 अरब डॉलर का मुनाफा हो चुका था। अमेरिकी कानूनविद बर्नी सांडर्स ने एक साक्षात्कार में बताया है कि, कोरोना महामारी से निपटने के उपायों में निवेश करने वाले 8 प्रमुख निवेशकों को 10 अरब डॉलर का मुनाफा हुआ है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दोराय नहीं कि कोरोना संकट के दौरान महामारी से निपटने के उपायों से जुड़ी कंपनियो में से अधिकतर ने इसे मुनाफे के धंधे में तब्दील कर लिया है और वे अपनी समाजिक जिम्मेदारी से भाग रही है।
कितना खर्च, कितनी मांग
वुहान वायरस से निपटने के लिए बनाई जाने वाली वैक्सीन को तैयार करने पर फाइज़र को एक डॉलर का खर्च आता है। लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि ब्रिटिश सरकार उसे प्रति शॉट 30 डॉलर अदा करती है। मॉडर्ना भी प्रति शॉट 30 से 50 डॉलर तक लेती है जो उसकी लागत से 15 गुना ज्यादा है।
कंपनियां दावा करती है कि उन्हें वैक्सीन को विकसित करने में ढेरों पैसा शोध और अन्य जरूरतों पर व्यय करना पड़ता है इसलिए सिर्फ लागत को देखना गलत है। लेकिन उनकी ये दलील भी गले उतरने वाली नहीं है। कोविड महामारी से मुकाबले के लिए मॉडर्ना को शोध और विकास के लिए अमेरिकी सरकार से 2.5 अरब डॉलर की सहायता उपलब्ध कराई गई थी। इसी तरह से फाइजर को भी भी दुनिया के विभिन्न देशों से शोध और विकास के मद में सहायता उपलब्ध कराई गई।
इन कंपनियों को भी ये भलीभांति पता है कि महामारी का अधिक से अधिक फायदा कैसे उठाया जा सकता है। इसीलिए वे अपनी वैक्सीन की कीमत को अलग-अलग देशों में अलग-अलग कीमत पर बेचती हैं। जहां उनका दबाव ज्यादा काम कर गया वहां कीमत अधिक और जहां कम वहां कीमत घट जाती है।
भारत जैसे देश में विकसित वैक्सीन कोवैक्सीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता हासिल करने में इन कंपनियों ने खूब रोड़ा अटकाया और काफी विलंब के बाद कोवैक्सीन को भारत से बाहर मान्यता मिल पाई।
कैसे-कैसे करार
मॉडर्ना ने वैक्सीन विकसित करने के लिए अमेरिकी सरकार की संस्था एनआईएच का हाथ थामा लेकिन, पेटेंट, क्रेडिट और न्यायिक क्षेत्राधिकार को लेकर उसने इस तरह की शर्तों को निर्धारित किया जिससे वो अपना दबावव बनाए रखने में हमेशा सक्षम रहे।
इसी तरह से फाइजर ने ब्रिटिश सरकार के साथ सीक्रेसी क्लॉज के साथ समझौता किया है। इसके तहत, विवाद की स्थिति में गोपनीयता की शर्तो के साथ उसका समाधान तलाशा जाएगा और सार्वजनिक रूप से उस विवाद पर चर्चा नहीं होगी।
करार की आड़ में धंधा जोरों पर
इन वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने कोविड महामारी के दौरान अपने उत्पाद की कीमत पर जम कर खेल खेला है। फाइजर ने अपनी वैक्सीन की कीमत एक चौथाई ज्यादा बढा दी है। यानी 100 रुपए की चीज़ अब 125 रुपए की हो गई है। इसी तरह से मॉडर्ना ने 10 प्रतिशत तक अपनी वैक्सीन की कीमत बढ़ा दी है। फाइजर ने ऐसे संकेत भी दिए हैं कि आने वाले समय में उसके एक शॉट की कीमत 175 डॉलर तक जा सकती है।
बर्नी सांडर्स के अनुसार, वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने तमाम सरकारों को अपनी शर्तों पर का करने को मजबूर कर दिया है और सरकारें उनकी बंधक की तरह से काम करने को बाध्य हैं।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया