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महामारी का असर : छात्रों के लिए सरकारी स्कूलों में पढ़ना मजबूरी बनी

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : कोविड महामारी से बदहाल अर्थव्यवस्था ने बच्चों की शिक्षा पर बहुत ही बुरा असर डाला है। शिक्षा पर हुए नवीनतम सर्वे के आंकड़े चौकाने वाले तो हैं ही साथ ही चिताजनक भी हैं। शिक्षा की स्थिति पर जारी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 के मुकाबले 2021 में सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या 65.8 प्रतिशत से बढ़ कर 70.3 प्रतिशत हो गई है। सरकारी स्कूलों में दाखिले का ये प्रतिशत साल 2010 में हुआ करता था।

इसी तरह से निजी स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्रों का प्रतिशत 2021 में घटकर 24.4 प्रतिशत रह गया जो पिछले वर्ष यानी 2020 में 28.8 प्रतिशत था। एक चौंकाने वाला तथ्य था छात्रों में ट्यूशन के प्रति बढ़ता झुकाव। साल 2020 में जहां 32 प्रतिशत छात्र ट्यूशन पढ़ा करते थे वहीं साल 2021 में ये प्रतिशत बढ़ कर 39 हो गया।

एनुअल स्टेटऑफ एजूकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) एक फोन सर्वे पर आधारित है। सितंबर- अक्टूबर के महीने में 25 राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों के 581 जिलों में 5 से 16 वर्ष के आयु वर्ग के 75234 बच्चों के बारे में मिली जानकारी के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट तैय़ार करने का काम गैर सरकारी संस्था प्रथम ने किया।

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट के अनुसार, एएसईआर केंद्र की निदेशक विल्मा वाधवा ने रिपोर्ट जारी करते हुआ बताया कि, वर्ष 2020 तक सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या कमोवेश एक जैसी बनी हुई थी लेकिन पिछली सितंबर में इसमें अचानक ही 5 प्रतिशत की बड़ी बढ़ोतरी देखी गई। इसके कई कारण हो सकते हैं, मसलन, महामरी के दौरान परिवारों को आर्थिक दिक्कतो के कारण बच्चो का दाखिला सरकारी स्कूलों में कराना पड़ा हो या कई निजी स्कूल बंद हो गए हों या फिर प्रवासी लोगों को अपने गांवों को लौटना पड़ा हो।

एक और खास बात जो सामने आई वो ये थी कि इस तरह का रुझान तेलंगाना को छोड़ कर दक्षिण के राज्यों के अलावा उत्तर भारत के बड़े राज्यों मे ज्यादा देखने को मिला। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में सरकारी स्कूलों में दाखिले का प्रतिशत 13 था जबकि दक्षिण में केरल में ये 12 प्रतिशत तक बढ़ गया।

रिपोर्ट में एक बात और गौर करने वाली थी वो ये कि, उत्तर पूर्व के नगालैंड और मणिपुर जैसे राज्यों के अलावा ओडिशा, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों में दाखिले की दर में कमी देखने को मिली और निजी स्कूलों में दाखिले में बढ़त दिखाई दी।  

ट्यूशन पर निर्भऱता बढ़ी

रिपोर्ट में एक और खास  बात जो देखने को मिली वो थी, छात्रों में प्राइवेट ट्यूशन पर लगतार बढ़ती निर्भरता। रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में जहां 26 प्रतिशत से कुछ ज्यादा छात्र ट्यूशन पढ़ते थे वहीं 2020 में ये प्रतिशत बढ़ कर 32.5 हो गया। 2021 में इसमें तेजी से उछाल आया और ट्यूशन पर निर्भर छात्रों का प्रतिशत बढ़कर 39 से ज्यादा हो गय़ा। ध्यान देने की बात ये रही कि ट्यूशन पर निर्भरता में बढ़ोतरी आमतौर पर बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यो में ज्यादा देखी गई जहां पहले से ही ट्यूशन पर निर्भरता ज्यादा देखी जा रही थी।

स्मार्ट फोन तक पहुंच नहीं

खासकर ऐसे समय में जब स्कूलों में कक्षाएं ऑनलाइन हो रही थी, डिजिटल डिवाइस तक पहुंच के मामलों में रिपोर्ट में थोड़ा विरोधाभासी रुझान देखने को मिलता है। साल 2018 से 2021 के बीच ग्रामीण भारत में स्मार्ट फोन की पहुंच 36.5 प्रतिशत से बढ़कर 67.6 प्रतिशत तक हो गई। इसके बावजूद 26 प्रतिशत से ज्यादा छात्रों का कहना था कि उनके घरों में स्मार्ट होने होने के बावजूद उनको उसके इस्तेमाल की इजाजत नहीं थी।  

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया     

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