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धन्यवाद मोदी जी…अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के लिए…!

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए  सुहासिनी ): अमेरिका से बहुत ही चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। कोविड टीकाकरण के अभियान के बाद कैंसर के मामलों में करीब 1000 गुना बढ़ोतरी देखी गई है। ये आंकड़े तो तब हैं जब अमेरिका और यूरोप में लगाई जाने वाली कोविड वैक्सीनें भारत के मुकाबले बेहतर और ज्यादा सुरक्षित मानी जा रही थीं। भारत में भी पिछले दिनों में ठंड बढ़ने के साथ रोजाना अचानक स्वस्थ और जवान लोगों की मौत की खबरें आ रही हैं। हालांकि सीधे तौर पर तो नहीं कहा जा सकता कि इन मौतों के लिए कोविड की वैक्सीन ही जिम्मेदार है लेकिन एक आशंका जरूर है। सरकार से इन मौतों की वजह की पड़ताल करने की बात भी कही गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सरकार की दलीलों ने जाहिर कर दिया कि वो अपनी जवाबदेही से बचना चाहती है।

सरकार की क्या थी दलील ?

सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा कि कोविड टीकाकरण के अभियान में सरकार बीच में नहीं है। वैक्सीन सरकार की नहीं थी। उसे निजी उद्यम ने विकसित किया था। सरकार ने वैक्सीन लगवाने का विकल्प लोगों की इच्छा पर छोड रखा था यानी आप चाहें तो वैक्सीन लगवाएं और चाहें न लगवाएं। इसमें सरकार की जिम्मेदारी कहां बनती है। एक तरह से सरकार सीधे- सीधे इस मामले से हाथ झाड़ लेना चाहती है।

सरकार जवाबदेह है

लेकिन क्या कह देने भर से सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच सकती है? सरकार की इन दलीलों के बाद विवाद ने तूल पकड़ लिया। सोशल मीडिया पर सरकार की जवाबदेही किस तरह से बनती है इसे लेकर तरह- तरह के तर्क दिए जा रहे हैं। सबसे बड़ा तर्क तो यही है कि, सरकार की तरफ से कोविड वैक्सीन को 100 प्रतिशत सुरक्षित बताया गया था। कोविड वैक्सीनेशन के प्रमाणपत्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो होना अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि सरकार की तरफ से इस वैक्सीनेशन को प्रमाणित किया गया है। इसके अलावा पेट्रोल पंपों से लेकर सभी महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थानों पर धन्यवाद मोदी जी के होर्डिंग लगाए गए जो जनता को कोविड वैक्सीनेशन के लिए धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए लगाए गए थे। सरकार इस बात का जमकर श्रेय लूटने में जुटी थी कि उसके प्रयासों से देश में कोविड वैक्सीनेशन ने करोड़ों का आंकड़ा पार कर लिया और ये लगातार बढ़ता जा रहा है। टीकाकरण अभियान और कोविड प्रबंधन को लेकर सरकार ने अपनी पीठ ठोंकने का कोई मौका बाकी नहीं छोड़ा। इसे भी काफी प्रतारित किया गया कि कोविड को लेकर भारत सरकार के प्रयासों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहना की गई है। कोविड के दौर और उसके बाद कई विधानसभाओं के चुनाव में कोविड के कथित तौर पर सफल प्रबंधन को चुनावी मुद्दा भी बनाया गया। यही नहीं, यात्रा करने, दफ्तरों में प्रवेश करने और यहां तक कि राशन लेने के लिए भी वैक्सीनेशन को अनिवार्य घोषित कर दिया गया। यानी वैक्सीन नहीं लगवाया तो आप न तो यात्रा कर सकते थे और न ही राशन की दुकानों से मुफ्त राशन ले सकते थे। ये एक तरह से लोगों को वैक्सीनेशन के लिए बाध्य करने का अप्रत्ययक्ष तरीका था।

क्या इन सारे तथ्यों से सरकार इनकार कर सकती है ?

कोविड के मसले पर सरकार पहले भी पल्ला झड़ती रही है

आपको याद होगा कि कोविड महामारी से हुई मौतों को लेकर भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में हास्यास्पद दलीलें दी थीं। सरकार ने कहा था देश में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं हुई है। बवाल बढ़ा तो सफाई दी गई कि उसे राज्य सरकारों से इस तरह के कोई आंकड़े नहीं दिए गए हैं। तब ये सवाल उठा था कि क्या सरकार ने राज्य सरकारो से ऐसी कोई जानकारी मांगी थीं। बात को गोलमोल करके खत्म कर दिया गया। गंगा में उतराते शवों को लेकर भी सरकार झूठ बोलती रही। अमेरिकी सरकार ने भी भारत नें कोविड से हुई मौतों पर सरकारी आंकड़ों की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठाए थे।

बेशर्मी की हद

चुनाव के दौरान वोटरों को रिझाने के लिए कोविड के नाम पर जमकर राशन-पानी और दूसरी चीजें मुफ्त बांटने वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में साफ-साफ कह दिया कि कोविड से जिन लोगों की मौत हुई है उनके परिजनों को सहायता के रूप में चार लाख रुपए देने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं।

समाजविज्ञानी पी कुमार कहते हैं कि, भारत एक कल्याणकारी राज्य है। विपदा के समय जनता विशेषकर वंचित वर्ग सरकार की तरफ सहायता के लिए उम्मीदों से देखता है। सरकार का फर्ज है कि वो हर संभव सहायता के लिए कदम उठाए। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सरकार की तरफ से मदद कम ढिंढोरा ज्यादा पीटा गया। सरकार सारे संसाधनों का इस्तेमाल चुनावी फायदे के लिए करती रही। सरकार की अपनी जिम्मेदारियों से हाथ झाड़ने की आदत सी पड़ गई है।

जांच में हर्ज क्या है ?

विशेषज्ञों का कहना है कि, कोविड की बीमारी और टीकाकरण के लोगों को कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है। हृदय़ संबंधी रोग, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ लेबल और खून में थक्के जमने संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं। प्रतिरोधी क्षमता पर भी खासा आसर पड़ा है। उनका कहना है कि, अगर इस तरह की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें सामने आ रही हैं तो सरकार को अचानक हुई मौतों को संदर्भ बनाते हुए तमाम शंकाओं को देखते हुए जांच कराने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती है। ये उसकी ही जिम्मेदारी है।

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया                 

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