Homeइन फोकसआलेखजानिए, क्यों जरूरी है लोकसभा की सदस्य संख्या बढ़ाने के लिए सार्वजनिक...

जानिए, क्यों जरूरी है लोकसभा की सदस्य संख्या बढ़ाने के लिए सार्वजनिक चर्चा

spot_img

नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए सुधा रामाचंद्रन): क्या केंद्र सरकार लोकसभा की सदस्य संख्या बढ़ाने की तैयारी में है ? पिछले कुछ दिनों से मीडिया और राजनीतिक हलके में लगातार चर्चा है कि केंद्र सरकार गुपचुप तरीके से लोकसभा की सदस्य संख्या को बढाने की तैयारी कर रही है। अकेले उत्तर प्रदेश से लोकसभा के सांसदों की संख्या 238 करने का प्रस्ताव किया जा रहा है।

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इस बारे में एक ट्वीट किया है जिसमें उन्होंने बीजेपी के अपने सहयोगी सांसदों के हवाले से बताया है कि केंद्र सरकार 2024 के संसदीय चुनावों से पहले लोकसभा की सदस्य संख्या को 1000 या उससे भी अधिक करने जा रही है। मनीष तिवारी ने कहा है कि ये एक बहुत ही गंभीर और संजीदा मसला है और इस पर बिना पर्याप्त विचार- विमर्श किए इस तरह से कदम उठाने से विवाद खड़ा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मसले पर कोई भी कदम उठाने से पहले इस पर सार्वजनिक चर्चा होनी चाहिए।

एक और कांग्रेसी सांसद कार्ति चिदंबरम ने भी इस बारे में ट्वीट कर कुछ आंशकाएं जताई हैं। कार्ति चिदंबरम ने कहा है कि अगर सरकार की इस पहल का आधार जनसंख्या है तो उत्तर प्रदेश जैसे भारी जनसंख्या वाले राज्य और दक्षिण भारत के कम जनसंख्या वाले राज्यों के सांसदों की संख्या में भारी अंतर हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इसे दक्षिण के राज्य कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे।

मौजूदा वक्त में लोकसभा में 543 और राज्यसभा में 245 सदस्य हैं। संसद के नए भवन  का निर्माण तमाम विवादों के बीच जारी है और इसमें 888 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की जा रही है। दोनों सदनों के संयुक्त सत्र में ये क्षमता 1200 से ज्यादा तक बढ़ाई जा सकेगी।

सदस्य संख्या बढ़ाने के पीछे क्या है दलील ?

भारतीय संविधान ने लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 तय की थी । 1950 में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 थी जो अब बढ़कर 543 लोकसभा सदस्यों तक पहुंच चुकी है। मौजूदा समय में कुछ लोकसभा संसदीय क्षेत्र ऐसे हैं जहां की जनसंख्या 16 से 18 लाख  के बीच तक पहुंच चुकी है। सरकार का कहना है कि ऐसे में जरूरी हो जाता है कि लोकसभा क्षेत्रों का फिर से परिसीमन किया जाए और उसके अनुरूप लोकसभा के सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए। अभी परिसीमन के लिए 2011 के जनसंख्या आंकड़ों को आधार बनाया जा रहा है।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने भी समय-समय पर मीडिया से बातचीत में ये संकेत दिए हैं कि लोकसभा के सदस्यों की संख्या बदलती जरूरतों और परस्थितियों के अनुरूप होनी चाहिए। उनके अनुसार मौजूदा लोकसभा कक्ष में 543 सदस्य भी बमुश्किल बैठ पाते हैं और कुछ सदस्य तो खंबों के पीछे बैठते हैं और वे हाउस में सीधे अध्यक्ष के आसन को देख नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में बढ़ी हुई सदस्य़ संख्या के साथ नया भवन भी जरूरी हो जाता है।

पेंच कहां है ?

संविधान ने भारत की जनसंख्या को आधार मानते हुए लोकसभा के सदस्यों की संख्या निर्धारित की थी। समय के साथ उत्तर भारत के राज्यों में तेजी के साथ जनसंख्या बढ़ी जबकि दक्षिण भारत के राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर के मुकाबले बहुत कम रही। उत्तर प्रदेश में अकेले 85 लोकसभा सीटें हुआ करती थीं जो उत्तराखंड के बनने के बाद 80 रह गईं। अब नई लोकसभा में 238 लोकसभा सीटें अकेले उत्तर प्रदेश की हो सकती हैं क्योंकि उसकी जनसंख्या 24 करोड़ के आसपास पहुंच गई है। भारतीय लोकतंत्र में जहां सांसदों का संख्या बल ही दिल्ली की गद्दी पर दावेदारी का पैमाना है वहां उत्तर प्रदेश ही एक तरह से दिल्ली की सत्ता का निर्धारक बन जाएगा। ऐसा कुछ हद तक अभी भी है। लेकिन ये स्थिति एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक हो सकती है। दक्षिण भारत के राज्यों को इस पर आपत्ति हो सकती है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि इस पहल पर आगे बढ़ने से पहले इस पर गंभीर सार्वजनिक चर्चा की जाए।

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया  

Print Friendly, PDF & Email
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments