Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरीक्या सिर्फ ‘प्रचारवीर’ है केजरीवाल की सरकार? दावे तो भरमार, लेकिन.....!

क्या सिर्फ ‘प्रचारवीर’ है केजरीवाल की सरकार? दावे तो भरमार, लेकिन…..!

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नई दिल्ली 21 सितंबर (गणतंत्र भारत के लिए चंद्रभूषण तिवारी ) : अरविंद केजरीवाल सरकार दिल्ली के शिक्षा मॉडल को लेकर लगातार अपनी पीठ ठोंकती रही है। अखबारों और टीवी चैनलों पर खूब प्रचार किया जाता रहा है। दिल्ली सरकार का दावा है कि दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में आप सरकार ने क्रांतिकारी बदलाव किए है और उसे विश्व स्तरीय मानकों के अनुरूप खड़ा कर दिया है। दिल्ली के स्कूलों की तस्वीरें भी अखबारों और टेलीविजन पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और शिक्षा मंत्रालय संभालने वाले उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ देखी जा सकती हैं। पिछले दिनों अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था की तारीफ में पहले पन्ने पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की।

दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था और स्कूलों की स्थिति को लेकर दिल्ली सरकार ने दावे तो बहुत सारे किए गए हैं लेकिन उन दावों की हकीकत क्या है गणतंत्र भारत ने इसकी पड़तताल करने की कोशिश की। इस पड़ताल में स्कूलों की वास्तविक स्थिति के अलावा सर्वे और आरटीआई से मिली जानकारी को आधार बनाया गया है और ये समझने की कोशिश की है कि इन दावों में वास्तव में दम है या ये सिर्फ कागजी और विज्ञापनों में दिखाई देते हैं।

दिल्ली सरकार के दावे

  • दिल्ली सरकार ने एक बड़ी पहल करते हुए प्रदेश के कुल बजट का लगभग एक चौथाई हिस्सा शिक्षा के क्षेत्र में खर्च करने का निर्णय लिया। दावा किया गया कि, इसका अधिकतर हिस्सा स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर के सुधार में लगाया गया। स्कूलों के भवनों का निर्माण किया गया। कक्षाओं में अच्छे फर्नीचर, स्मार्ट बोर्ड आदि लगाए गए। 2 प्रतिशत स्कूलों में कंप्यूटर की सुविधा दी गई। स्टाफ रूम, ऑडिटोरियम, पुस्तकालय, प्रयोगशाला व खेलकूद की सुविधाएं विकसित की गई।
  • आप सरकार ने शिक्षण के स्तर में सुधार के लिए अपने अध्यापकों को उच्च स्तरीय प्रशिक्षण प्रदान कराया। उन्हें प्रशिक्षण के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, आईआईएम अहमदाबाद, नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ एजूकेशन सिंगापुर भेजा।
  • सरकार ने अध्यापकों व छात्रों के अभिभावकों के बीच संवाद बढ़ाने के लिए नियमित रूप से पैरेंट्स-टीचर्स मीटिंग (पीटीएम) का आयोजन सुनिश्चित किया।
  • स्कूलों के पाठय़क्रमों में भी बदलाव किया गया। हैप्पीनेस करिकुलम व बिजनेस ब्लास्टर्स नामक प्रोग्राम शुरू किया गया। सरकार ने अंग्रेजी बोलने में बच्चे प्रवीण बन सकें इसके लिएए स्पोकेन इंगलिश क्लासेज़ शुरू कीं।
  • सरकार के प्रयासों से 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों के उत्तीर्ण होने की दर बढ़ी। वर्ष 2016 में 9, वर्ष 2017 में 88.2, वर्ष 2018 में 90.6, वर्ष 2019 में 94.24 और वर्ष 2020 में 97.8 प्रतिशत विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए।
  • सरकार ने 25 नए स्कूलों व आठ हजार कक्षाओं का निर्माण कराया। द्वारका के राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय को देश में सर्वश्रेष्ठ सरकारी विद्यालय होने का गौरव हासिल हुआ।

दावों की हकीकत

स्टेट ऑफ पब्लिक (स्कूल) एजुकेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना पूर्व तक वर्ष 2013 से स्कूलों की नामांकन दर में साल दर साल गिरावट आती रही। हालांकि कोरोना के दौरान सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा, लेकिन इसका कारण इन स्कूलों की शिक्षा-व्यवस्था के प्रति आकषर्ण नहीं, बल्कि अभिभावकों की आर्थिक बदहाली रही। खस्ताहाल आर्थिक दशा के कारण लोगों ने निजी स्कूलों से हटाकर अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में कराया। सरकार अपनी पीठ ठोंकती रही कि सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता की वजह से लोग अपने बच्चों का दाखिला यहां करा रहे हैं।

  • शिक्षा व्यवस्था की बदहाली का एक नमूना राज्य सरकार की वेबसाइट ‘एडुडेल’ पर भी उपलब्ध है। साइट के डेटा के अनुसार वर्ष 2017-18 में नौवीं कक्षा के 55 प्रतिशत विद्यार्थी दसवीं कक्षा में नहीं गए। इसी साल 95 प्रतिशत विद्यार्थी ही दसवीं कक्षा उत्तीर्ण हो सके।
  • आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक वर्तमान में दिल्ली के स्कूलों में मात्र 57 प्रतिशत ही नियमित शिक्षक हैं। 45503 शिक्षकों के पद खाली हैं। बगैर नियमित शिक्षकों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना करना भी बेमानी है। इसी प्रकार अधिकतर स्कूलों में प्रधानाचार्य या हेडमास्टर भी नहीं हैं। वर्ष 2020-21 में कुल 2027 स्कूलों में से मात्र 203 स्कूल में ही प्रधानाचार्य या हेडमास्टर थे।
  • सरकार दावा करती है कि छात्रों में वैज्ञानिक चेतना के विकास के लिए प्रयास किया जा रहा है। लेकिन विडंबना है कि दिल्ली के दो-तिहाई से अधिक सरकारी स्कूलों में विज्ञान पढ़ने की सुविधा ही नहीं है। राजधानी के 1029 सरकारी स्कूलों में से मात्र 301 स्कूलों में ही साइंस की पढ़ाई होती है। साइंस की पढ़ाई से वंचित विद्यार्थी आज की डिजिटल दुनिया में कहां ठहरेंगे इसका अंदाज़ लगा पाना मुश्किल है।
  • वर्ष 2015 में जब अरविंद केजरीवाल की सरकार बनी थी तो राजधानी में 500 नए स्कूल खोलने का वादा किया गया। लेकिन आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक इस साल मई तक मात्र 63 नए स्कूल खोले गए और इस दौरान 16 स्कूल बंद भी हुए।
  • इस साल सरकारी स्कूलों का दसवीं कक्षा का परीक्षा परिणाम राष्ट्रीय औसत से भी कम रहा। दसवीं कक्षा में राष्ट्रीय स्तर पर 94.4 प्रतिशत विद्यार्थियों के उत्तीर्ण होने की तुलना में दिल्ली में मात्र 81.6 प्रतिशत विद्यार्थी ही परीक्षा पास कर पाए।
  • सरकार नए स्कूल भवनों के निर्माण व पुराने भवनों की मरम्मत का दावा तो करती है, लेकिन पिछले माह 27 अगस्त को नांगलोई के एक स्कूल में हुए हादसे ने सरकार के दावों की पोल खोलकर रख दी। स्कूल में पढ़ाई के दौरान एक छात्रा के ऊपर सीलिंग फैन गिर गया। इससे वो गंभीर रूप से घायल हो गई। छात्रा के मुताबिक कमरे में छत से पानी भी टपक रहा था। प्लास्टर उखड़ने से फैन गिर पड़ा। इसी प्रकार अन्य स्कूलों से भी विभिन्न माध्यमों से शिकायतें आती रहती हैं और सरकार कुछ चुनिंदा स्कूलों की फोटो मीडिया में दिखाकर वाहवाही लूटती रहती है।
  • सरकारी स्कूलों का ड्राप रेट भी बहुत अधिक है। प्रजा फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013-14 में नौवीं कक्षा में प्रवेश लेने वाले 219377 विद्यार्थी 12वीं कक्षा में नहीं पहुंच पाए। इसी प्रकार वर्ष 2015 से 2016-17 में 26 प्रतिशत बच्चे 12वीं कक्षा में नहीं पहुंचे। 2015 से 2016-17 में 43 प्रतिशत बच्चे नौवीं से दसवीं कक्षा में नहीं पहुंचे। विद्यार्थियों को फेल नहीं करने के कारण नौवीं कक्षा तक तो वे पहुंच जाते हैं, लेकिन पढ़ाई में बुनियादी रूप से कमजोर होने के कारण उनमें से अधिकतर विद्यार्थी आगे नहीं बढ़ पाते और शिक्षा ग्रहण से वंचित हो जाते हैं।
  • वर्ष 2016-19 में नौवीं कक्षा में उत्तीर्ण न होने और दोबारा एडमीशन न होने के कारण राजधानी के सरकारी स्कूलों के 42 प्रतिशत विद्यार्थियों ने स्कूल छोड़ दिया।
  • नेशनल अचीवमेंट सर्वे के मुताबिक राजधानी के कक्षा तीन व पांच के विद्यार्थियों में गणित, पर्यावरण विज्ञान व भाषा की समझ देश के दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों की तुलना में कमजोर है। सरकारी स्कूलों के बच्चों के सीखने व समझने की दृष्टि से प्रदेश देश में सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में 32 वें स्थान पर है।
  • सरकार ने बजट में शिक्षा का हिस्सा तो बढ़ा दिया, लेकिन आरटीआई से प्राप्त जानकारी के मुताबिक आवंटित बजट का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। अरविंद केजरीवाल की सरकार आने के पहले राजधानी में शिक्षा के लिए आवंटित कुल बजट का लगभग 90 प्रतिशत इस्तेमाल होता था, लेकिन आप की सरकार आने के बाद अब ये लगभग आधा हो गया है। जब पैसे का इस्तेमाल ही नहीं होगा तो संसाधनों व शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक परिवर्तन की बात तो दूर की कौड़ी होगी।

क्या ये प्रचारवीर सरकार है ?

ऐसा नहीं है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए कोई प्रयास नहीं किए हैं। लेकिन हकीकत ये है कि काम कम बातें ज्यादा हुई हैं। मीडिया में प्रचार अभियान चलाने पर जितना जोर दिया गया उसका कुछ फीसदी भी काम कर लिया जाता तो शाय़द स्थिति और बेहतर हो पाती। इसे इस तरह से समझा जा सकता है। दिल्ली हायर एजुकेशन व स्किल डेवलपमेंट गारंटी स्कीम के तहत मात्र दो विद्यार्थियों को लगभग 20 लाख रुपए लोन दिया गया लेकिन इस स्कीम के प्रचार पर सरकार ने 19 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। ये तो सिर्फ एक उदाहरण है, कमोवेश यही हाल सरकार की दूसरी स्कीमों व योजनाओं का भी है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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