नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : दिवाली के आसपास दिल्ली में हर साल जहरीली हवा का आतंक छा जाता है। लोगों के लिए सांस लेना दूभर हो जाता है और अस्पताल सांस और दिल के मरीजों से पट जाते हैं। कई लोगों की जान भी चली जाती है। एक वैज्ञानिक अध्य़यन में ये बात समाने आई है कि दिल्ली में रहने वाले हर व्यक्ति की औसत आयु में वायु प्रदूषण के कारण 10 साल की कमी हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की खऱाब आबोहवा को लेकर दाखिल की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और प्रशासनिक अमले को जमकर लताड़ लगाई।
सुप्रीम कोर्ट में कल यानी बुधवार को फिर सुनवाई होगी और उसने सरकार से एक ठोस रणनीति के साथ तैयार होकर अदालत में हाजिर होने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने दिल्ली के वायु प्रदूषण पर विचार के लिए एक आपात बैठक बुलाई। दिल्ली सरकार ने भी हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए कई कदम उठाने की घोषणा की। दिल्ली सरकार ने अदालत में कहा कि वो जरूरत हुई तो ल़ॉकडाउन लगाने को भी तैयार है। लेकिन साथ ही दिल्ली सरकार ने ये भी कहा कि दिल्ली में लॉकडाउन का फायदा तब तक नहीं होगा जब तक कि पडोसी राज्यों उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भी ऐसे कदम नहीं उठाए जाते।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त लहजा
दिल्ली में प्रदूषण की समस्या पर सुप्रीम कोर्ट बेहद सख्त है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्याय़मूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। पीठ ने दिल्ली की बदहाल स्थिति के लिए केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों को जमकर लताड़ा। अदालत ने दिल्ली में प्रदूषण के लिए तीन मुख्य वजहें बताईं, वाहनों से प्रदूषण, निर्माण कार्य से होने वाला प्रदूषण और उद्योगों से होने वाला प्रदूषण। अदालत ने इस मौसम में किसानों द्वारा पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को बहुत कम हद तक जिम्मेदार ठहराया।
अदालत ने कहा कि केंद्र और दिल्ली सरकार इस मामले में बेहद लापरवाह साबित हुई हैं। प्रदूषण के लिए कभी किसानों पर ठीकरा फोड़ देना तो कभी पटाखों के कारण प्रदूषण बता कर पल्ला झाड़ लेने जैसे काम वे करती रही हैं। अदालत ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण पर सरकारें इश्तेहारों में तस्वीरें तो खूब छपवाती हैं लेकिन वे प्रदूषण निय़ंत्रण को लेकर कम गंभीर दिखाई देती है।
प्रदूषण की असली वजह
सरकारी और गैर सरकारी लगभग सभी एजेंसियों ने दिल्ली में प्रदूषण की सबसे वड़ी वजह वाहनों के निकलने वाले धुएं को बताया है। दिल्ली की हवा में घुलने वाले जहर की लगभग 50 फीसदी वजह गाड़ियों से निकलने वाला धुआं है। बताया जाता है कि मुंबई, चेन्नई और कोलकाता के सभी वाहनों को जोड़ दिया जाए तो भी दिल्ली में उससे ज्यादा वाहन सड़कों पर होते हैं। इसके अलावा दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शहरों से रोजाना दिल्ली में आने वालों की एक बड़ी फ्लोटिंग पॉपुलेशन भी है।
दूसरी वजह, दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों जैसे नोएडा, गुरुग्राम और फऱीदाबाद जैसी जगहों पर भारी तादाद में होने वाला निर्माण कार्य है। इन इलाकों में लाखों की संख्या में रिहायशी और व्यावसायिक भवनों के निर्माण हो रहे हैं और वे धूल से होने वाले प्रदूषण की बड़ी वजह है।
तीसरी वजह, औद्योगिक प्रदूषण है। दिल्ली, नोएडा, फऱीदाबाद और गाजियाबाद में बडे पैमाने पर औद्योगिक इकाइयां काम कर रही हैं और उनकी वजह से हमेशा ही प्रदूषण की समस्या बनी रहती है।
प्रदूषण की एक और बड़ी वजह दिल्ली और आसपास के इलाकों मे जनसंख्या घनत्व का बहुत अधिक होना है। दिल्ली की आबादी खुद दो करोड़ पार कर गई है साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की जनसंख्या भी जोड़ लें तो तकरीबन ये आबादी बढ़कर 4 से 5 करोड़ तक पहुंच जाती है।
क्या प्रदूषण पर सचमुच गंभीर हैं सरकारें
दिल्ली में पिछले करीब दो दशकों से प्रदूषण की समस्या काफी गंभीर बनी हुई है। दिवाली के आसपास और भारी मौसम में प्रदूषण और विकराल रूप ले लेता है। विभिन्न सरकारों ने दिल्ली में प्रदूषण को देखते हुए सीएनजी के इस्तेमाल, ऑड-इवेन, औद्योगिक इकाइयों को दिल्ली से बाहर शिफ्ट करने, इलेक्ट्रिक व्हीकल, वाहनों की उम्र की मियाद तय करने जैसे कदम उठाए। लेकिन दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या को देखते हुए ये सारे कदम नाकाफी और अस्थायी किस्म के रहे।
जरूरत दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र के लिए प्रदूषण नियंत्रण की दृष्टि से एक समग्र नीति बनाने की है। इस काम में दिल्ली के अलावा, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकारों को भी साथ लेना होगा। नए उद्योगों को दिल्ली एनसीआर से बाहर स्थापित किया जाए, वाहनों की संख्या को सीमित करना और निर्माण गतिविधियों को रेगुलेट करने की जरूरत है।
समाज विज्ञानी प्रोफेसर पी. कुमार के अनुसार, पराली जलाने की समस्या को दूर करने के लिए सरकारी स्तर पर कोशिश की जानी चाहिए। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार की एक पहल का हवाला दिया जिसमें गांवों को स्वच्छ रखने और प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सरकारी स्तर पर गोबर खऱीद की जाती है। इस गोबर से बायोगैस बनती है और किसानों को गोबर का पैसा मिलता है। इसके चलते, किसान खुद गोबर को इधर-उधर फेकने या उपले बनाने के बजाए उसे सरकार को देते हैं और उससे पैले लेते हैं। गांवों में इससे सफाई भी अच्छी रहती है। प्रोफेसर कुमार के अनुसार, पराली को खेतों में ही निपटाने के लिए सरकार बायो डीकंपोजर जैसे रसायनों को सीधे खेतों में छिड़कवा सकती है। इससे खेत में खाद का कांम भी हो जाएगा और साथ ही दिल्ली में पराली के धुएं से होने वाला प्रदूषण भी नहीं होगा।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया