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बीजेपी के ब्राह्मणत्व का ‘जितिन कार्ड‘ ! समझिए, वाकई पास या फेल ?

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लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र):  उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हलचल काफी तेज है। ये हलचल सिर्फ सत्तारूढ़ बीजेपी तक सीमित नहीं है बल्कि कांग्रेस और बीएसपी में भी हो रही है। राज्य विधानसभा के लिए चुनाव कुछ महीनों दूर हैं और योगी आदित्य नाथ की सरकार के कामकाज को लेकर उनकी खुद की पार्टी से लेकर विपक्ष तक के तेवर गरम हैं। ऐसे में राज्य के सियासी माहौल में जितिन प्रसाद का कांग्रेस छोड़ना भी तरह-तरह की चर्चाओं का विषय बन गया। जितिन बीजपी में गए और जिस तरह से पार्टी में उन्हें शामिल किया गया इसने पहले ही दिन उनके राजनीतिक कद और अहमियत दोनों को नाप दिया। कहा ये जा रहा है कि बीजेपी से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण बीजेपी से नाराज है और उसकी भऱपाई के लिए बीजेपी एक ब्राह्मण चेहरे को प्रोजेक्ट करना चाहती है ताकि वो राज्य में कथित तौर पर अपनी ब्राह्मण विरोधी छवि से निजात पा सके। जितिन प्रसाद शाहजहांपुर से आते हैं और उनके पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के बड़े नेताओँ नें शामिल थे। जितिन को एक तरह से अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने का मौका मिला और वे यूपीए सरकार में मंत्री से लेकर कई राज्यों में पार्टी के प्रभारी बनाए गए।

जितिन प्रसाद को बीजेपी में लाने के पीछे की दलील

जितिन प्रसाद को बीजेपी में शामिल कराने के पीछे दो खास दलीलें थी और दोनों ही दलीलों में राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ केंद्र में थे। कहा जा रहा है कि योगी आदित्य नाथ की कार्यशैली से राज्य के ब्राह्मण बीजेपी से नाराज है और जितिन जैसे ब्राह्मण चेहरे के जरिए पार्टी इस वर्ग की नाराजगी दूर करना चाहती है।

योगी आदित्य नाथ और बीजेपी के शीर्ष नेताओँ के बीच अनबन की खबरें हैं। आरोप है कि य़ोगी आदित्य नाथ प्रधानमंत्री की भी नहीं सुन रहे हैं। ए.के. शर्मा को राजनीति में हाशिए पर ढकेल कर योगी ने ऐसा संदेश भी दिया है। राज्य में नौकरशाही बेलगाम है और पार्टी विधायकों तक की नहीं सुनी जा रही। ऐसे में जितिन प्रसाद को पार्टी में लाकर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व योगी को ये संदेश देना चाह रहा है कि सब कुछ उन्ही की नहीं चलेगी और उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि वे पार्टी से ऊपर नहीं हैं।

क्या जितिन वाकई बन पाएंगे ब्राह्मण चेहरा

उत्तर प्रदेश की राजनीति को बूझने वाले लोग जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में कमलापति त्रिपाठी के अलावा किसी भी पार्टी में कोई भी नेता नहीं रहा जो राज्य में ब्राह्मणों की नुमाइंदगी कर पाया हो। गोविन्द बल्लभ पंत से लेकर हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे लेकिन उनकी पहचान ब्राह्मण नेता या चेहरे के रूप में कभी नहीं रही। जितेंद्र प्रसाद शाहजहांपुर के अलावा बरेली, लखीमपुर खीरी और पीलीभीत जैसी जगहों पर थोड़ा बहुत प्रभाव जरूर रखते थे लेकिन उससे ज्यादा कुछ नहीं।

जहां तक जितिन प्रसाद की बात है तो इन्हें पिता की राजनीति विरासत में मिली है। काग्रेस के तमाम नेताओँ की तरह ये भी कोई जनाधार वाले नेता रहे हों ऐसी तो बिल्कुल भी बात नहीं है।

साल 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद 2014 लोकसभा चुनाव में जितिन को लखीमपुर खीरी की धौरहरा सीट पर करारी हार मिली। स्थित ये थी कि उस वक्त वे चुनाव में बीजेपी और बीएसपी के बाद तीसरे पायदान पर रहे। कमोवेश 2019 में भी यही हाल रहा। धौरहरा सीट पर जितिन को 1.62 लाख वोट मिले थे, लेकिन हार गए। 2017 विधानसभा चुनाव में ऐसा ही हुआ। जितिन प्रसाद ब्राह्मण बहुल क्षेत्र तिलहर से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन चुनाव हार गए।

जितिन प्रसाद को कांग्रेस के पार्टी संगठन में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई लेकिन वे वहां भी असफल साबित हुए। कांग्रेस ने हाल में ही उन्हें पश्चिम बंगाल का चुनाव प्रभारी बनाया पर इनके प्रभारी रहते ही राज्य के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया। 44 सीटों से कांग्रेस जीरो पर आ गई। हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में शाहजहांपुर के खुटार में वार्ड-एक से जितिन की भाभी राधिका प्रसाद खड़ी थीं, लेकिन उन्हें बीजेपी प्रत्याशी पूजा मिश्रा ने हरा दिया।

बीजेपी खुद पसोपेश में

उत्तर प्रदेश में बीजेपी में खुद उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, रीता बहुगुणा जोशी और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा जैसे ब्राह्मण नेता पहले से मौजूद हैं। उन्हें ब्राह्मण नेता किसी दूसरी पार्टी से खोजना पड़े ये दलील गले से नही उतरती। सियासत की समझ रखने वाले जितिन को जिस तरह से बीजेपी में शामिल किया गया इसको भी एक राजनीतिक संकेत के रूप में देखते हैं। जितिन को बीजेपी में शामिल कराने के लिए ना तो पार्टी अध्यक्ष जे.पी नड्डा थे और ना ही गृह मंत्री अमित शाह। उन्हें पार्टी में शामिल कराने आए रेल मंत्री पीयूष गोयल। योगी आदित्य नाथ समेत उत्तर प्रदेश के किसी भी बीजेपी नेता ने उनका फौरी तौर पर स्वागत भी किया हो, ऐसा नहीं था। इससे और कुछ हो ना हो जितिन प्रसाद को बीजेपी खुद कितनी अहमियत दे रही है इसका पता तो जरूर चलता है।

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया

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