नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए विक्रम कपूर):
ट्रेन, बाजार, अस्पताल, ट्रैफिक, बच्चों के लिए एडमिशन फॉर्म हो या फिर नौकरी के लिए परीक्षा, इन सभी में एक चीज कॉमन है और वो है भीड़। जनसंख्या विस्फोट ही भीड़ है।जिस गति से आबादी बढ़ रही है उससे 2025 तक या शायद इससे पहले ही चीन को पछाड़ कर भारत दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। अत्यधिक जनसंख्या का बोझ संसाधनों की कमी पैदा कर रहा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी सेवाओं के लाभार्थी बनने के लिए दो बच्चों की नीति से संबंधित ड्राफ्ट बिल प्रस्तुत किया है। असम ने भी आक्रामक उपायों की वकालत की है। इसके बाद से देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ गई है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि की स्थिति
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2021-2031 के बीच भारत की जनसंख्या में 1.09 के गुणक से वृद्धि होगी। 2060 के बाद से भारत की जनसंख्या में गिरावट आनी शुरू हो जाएगी तथा प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर जाएगी।
जनसंख्या नियंत्रण से जुड़े मुद्दे
ऐसा नहीं है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण ही आर्थिक स्थिति खराब होती है। जनसंख्या नियंत्रण से अर्थव्यवस्था के विकास के लिए काम करने वाले पर्याप्त लोग नहीं होंगे। इससे गैर-औद्योगीकरण को बढ़ावा मिलेगा। गिरती आबादी के कारण मांग में कमी आएगी।
चीनी मॉडल: चीन ने 1980 के दशक में जनसंख्या नियंत्रण हेतु एक बच्चे के मानदंड को लागू किया। लेकिन वृद्ध लोगों की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ चीन ने एक बच्चे की नीति को छोड़ दिया।
भारत में जनसंख्या नियंत्रण की जटिलताएं
धार्मिक कारक: भारत में व्याप्त धार्मिक ध्रुवीकरण जनसंख्या नियंत्रण को अधिक जटिल बनाता है।
गरीबी: कुल प्रजनन दर (टीएफआर) गरीबों में अधिक है।
बेटे की चाह: लड़के को वरीयता देना उच्च प्रजनन दर का एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
जनसांख्यिकीय लाभांश पर ध्यान देना जरूरी
भारत को बढ़ती जनसंख्या के बारे में चिंता करने के बजाय अपने जनसांख्यिकीय लाभांश (युवा जनसंख्या यदि अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाली है तो वह जनसांख्यिकीय लाभांश कहलाती है) के दोहन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठाया जा सकता है।2021 में भारत की जनसंख्या का 53.।6% हिस्सा 29 वर्ष से कम आयु का है।
लेकिन ध्यान देने योग्य बात ये है कि भारत में आर्थिक वृद्धि दर के मुकाबले जनसंख्या वृद्धि दर कहीं ज्यादा है। ऐसे में जनसंख्या पर सकारात्मक नियंत्रण जरूरी है। ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस ने प्रिंसपल ऑफ पॉपुलेशन में कहा है कि जनसंख्या दोगुनी रफ्तार (1,2,4,8) से बढ़ती है, जबकि संसाधनों में सामान्य गति (1,2,3,4) से ही वृद्धि होती है।
निष्कर्ष
भारत में जहाँ मृत्यु दर में गिरावट आ रही है और अगले दो से तीन दशकों में प्रजनन दर में गिरावट आएगी। इससे जनसंख्या वृद्धि में कटौती की गुंजाइश बनती है। जनसंख्या विस्फोट पर सकारात्मक अंकुश लगाने के लिए महिलाओं को शिक्षित करना जरूरी है। महिलाओं की शिक्षा प्रजनन दर के साथ-साथ पहले बच्चे के जन्म के समय मां की उम्र दोनों के मामले में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(विक्रम कपूर ,पॉलिसी रिसर्च के कार्य से जुड़े हैं। लेख में वर्णित विचार निजी हैं)
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