नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : एक साल से ज्यादा हो गया है, जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने अफसरों को 2025 तक राज्य से ड्रग्स का काला कारोबार खत्म करने का निर्देश दिया था। इस निर्देश के बाद कुछ समय तक तो राज्य की पुलिस ने नशे के कारोबारियों की तेजी से धरपकड़ की, लेकिन अब ये मुहिम ढीली पड़ने लगी है। नतीजतन राज्य में एक बार फिर नशे की तस्करी तेज होने की खबरें मिल रही हैं। सूत्रों का कहना है कि अब पुलिस महज रस्म अदायगी के लिए कभी-कभार ड्रग्स तस्करों पर कार्रवाई कर नशे के सामान की बरामदगी कर लेती है।
सूत्रों का कहना है कि फिलहाल राज्य की पुलिस जिस तरह से काम कर रही है, उसे देखते हुए 2025 तक राज्य से नशे का कारोबार खत्म हो पाएगा, ऐसा लगता नहीं है। उनका ये भी कहना है कि 2025 तक का समय बहुत ज्यादा है, तब तक न जाने कितने और युवा ड्रग्स की चपेट में आ जाएंगे।
सूत्रों का मानना है कि अगर राज्य की पुलिस चाहे तो ड्रग सप्लाई के स्रोत को चंद दिनों में ही खत्म कर सकती है। उसके छिटपुट अभियानों से बात बनने वाली नहीं है। अभी हाल के सालों तक राज्य में नशे के लिए शराब और भांग-गांजे आदि का सेवन किया जाता था और इनको ज्यादा खतरनाक नहीं माना जाता था। लेकिन अब पंजाब और देश के कुछ अन्य राज्यों की तरह ही उत्तराखंड में स्मैक और सिंथेटिक ड्रग्स का कारोबार करने वालों का जाल फैल गया है। इस जाल को खत्म करने और ड्रग सप्लाई की जड़ को खत्म करने में राज्य सारा पूरा सिस्टम फेल हो रहा है।
नशे का ये जाल राज्य के देहरादून, हल्द्वानी, नैनीताल, मसूरी जैसे शहरों तक ही नहीं फैला है, बल्कि मुनस्यारी, गोपेश्वर, जोशीमठ, जौलजीवी जैसे दूरदराज के तकरीबन हर इलाके में फैल गया है। इस काले कारोबार में राज्य से बाहर के लोग तो शामिल हैं ही, राज्य में रह रहे लोग भी बड़ी संख्या में ये काम कर रहे हैं। इस कारण राज्य की युवा पीढ़ी और स्कूली बच्चे तक तेजी से नशे की चपेट में आकर बर्बाद हो रहे हैं और ड्रग्स के पैसे जुटाने के लिए अपराध के रास्ते पर भी बढ़ रहे हैं। राज्य में अब लड़के ही नहीं, लड़कियां तक बड़ी तादाद में स्मैक की चपेट में आ गई हैं। पलायन, बेरोजगारी, बर्बाद होती खेती, बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी वाले राज्य में ये स्थिति आने वाले दिनों में बहुत घातक साबित होने वाली है। राज्य के अक्षम, अदूरदर्शी नेताओं ने हालात को और बदतर बना दिया है।
सूत्रों का कहना है कि कुमाऊं मंडल में नेपाल, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, पंजाब होते हुए बरेली से ड्रग्स की सप्लाई हो रही है तो गढ़वाल में पंजाब, पोंटा साहिब से होते हुए ड्रग्स देहरादून पहुंच रही हैं और वहां से पूरे मंडल में। राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि ड्रग तस्करों के सफाये के लिए हर जिले में एक खास एसटीएफ बनानी होगी, जो कि सिर्फ यही काम करे। ऐसा करके ही इस समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है। वे ये भी बताते हैं कि हल्द्वानी में कुछ साल पहले तक महज एक नशा मुक्ति केंद्र था। अब यहां ऐसे सात केंद्र हो गए हैं।
यही हाल देहरादून का है, जो कि राज्य की राजधानी है। जानकारों का कहना है कि शराब और भांग के नशे से तो आसानी से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन जो स्मैक का लती हो गया, उसे इसके जाल से निकालना बहुत मुश्किल हो जाता है।
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