नई दिल्ली, 02 अगस्त (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क): भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन काम करने वाले आर्थिक मामलों के विभाग ने स्पष्ट किया है कि चुनावी बॉंड की बिक्री 10,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की हो चुकी है। ये जानकारी विभाग की तरफ से नवीनतम आंकड़ों के आधार पर दी गई है।
ऑनलाइन पोर्टल ‘द वायर’ ने इस बारे में आज एक रिपोर्ट छापी है जिसमें ये जानकारी एक आरटीआई के हवाले से सामने आई है। इस आरटीआई को कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) ने दाखिल किया था और इस बारे में जानकारी मांगी थी। उनके अनुसार, एक जुलाई से 10 जुलाई के बीच बॉन्ड की बिक्री के 21 चरण के दौरान बॉंड की बिक्री ने 10,000 करोड़ रुपए का माइलस्टोन पार कर लिया।
आर्थिक मामलों के विभाग से बत्रा को जो जवाब मिला है उसके मुताबिक इन बॉंडों का बिक्री और रिडेंप्शन एसबीआई की 29 अधिकृत शाखाओं में हुआ। अब तक, सभी 21 चरणों को एक साथ देखें तो कुल 10,246 करोड़ रुपए की कीमत के चुनावी बॉंड बिक चुके हैं।
इन बॉंडों की बिक्री 1,000 रुपए,10,000 रुपए, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपए के मूल्यवर्ग में होती है। जनवरी 2018 में योजना को अधिसूचित किए जाने के बाद से कुल 18779 चुनावी बॉंड बेचे गए हैं।
चुनावी बॉंड योजना को वित्त विधेयक 2017 के साथ पेश किया गया था और जनवरी 2018 में इसे अधिसूचित किया गया। ये योजना राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदे लेने की अनुमति देती है। जानकारी के अनुसार, इसमें ली गई अधिकांश धनराशि सत्तारूढ़ दल बीजेपी ने हासिल की है। चुनाव आयोग ने सबसे पहले इस योजना को लेकर आपत्ति जताई थी उसके बाद कई राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन लगातार इसे पारदर्शी बनाने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के सामने इस बारे में कई याचिकाएं 2018 से सुनवाई के लिए लंबित पड़ी हैं। सुप्रीम कोर्ट दो बार इस योजना पर अंतरिम लोक लगाने से इनकार कर चुका है। अंतरिम रोक की मांग एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की तरफ से दायर याचिका में की की गई थी। एक और निजी संगठन कॉमन कॉज़ ने भी इस योजना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है।
इसी वर्ष अप्रैल में, मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने इस मामले पर जल्द सुनवाई का आश्वासन दिया था लेकिन सुनवाई लगातार टल रही है।
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