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चुनाव हो गए, पेट्रोल-डीजल के दाम अब पड़ेंगे जेब पर भारी

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए न्यूज़ डेस्क) :  अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में जबरदस्त उछाल देखा जा रहा है। यूक्रेन संकट और ईरान के तेल के वैश्विक बाज़ार में आने में हो रही देरी के कारण कच्चे तेल की क़ीमत रिकॉर्ड तोड़ रही है। एक और वजह, अमेरिका और यूरोप के देशों द्वारा रूस से गैस और तेल के आयात पर प्रतिबंध भी है। रूस से दुनिया के देशो को 8 फीसदी गैस की आपूर्ति की जाती है जबकि यूरोपीयय देशों को 35 प्रतिशत तक गैस की आपूर्ति रूस से ही होती है।

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 130 डॉलर प्रति बैरल के पार जा रही है। तय है कि भारत पर इसका असर देखने को मिलेगा। अभी तक देश में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे थे और तेल की कीमतों पर लगाम लगा हुआ था। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कीमत में बढ़ोतरी 5 रुपए से लेकर 10 रुपए तक हो सकती है। फिलहाल, तेल कंपनियां 12 रुपए प्रति लीटर नुकसान झेल रही है।

ऐसी खबरें भी आई हैं कि रूस ने भारत को कच्चे तेल की कीमंतों में 25 से 27 प्रतिशत के बीच छूट देने की पेशकश की है। बाजार के विशेषज्ञ भारत को इस पेशकश का फायदा उठाते हुए कच्चे तेल के भंडारण की सलाह दे रहे हैं। भारत सरकार भी तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर खासी चिंतित है और उसकी कोशिश है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार का कम से कम असर भारत के तेल बाजार पर पड़े।    

टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस बारे में एक रिपोर्ट छापी है जिसमें बताया गया है कि सरकार  गहराई से इस मामले पर विचार- विमर्श कर रही है। अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, संभव है कि कुछ तेल बेचने वाली सरकारी कंपनियों को 5- 6 रुपए कीमत बढ़ाने की छूट दे दी जाए।  इससे खुदरा विक्रेताओं को अभी तक हो रहे नुकसान की भरपाई करने में कुछ हद तक मदद मिल सकेगी।

रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल सरकार तेल की कीमत पर काबू रखने के लिए उस पर लगने वाले टैक्स में कोई कटौती करने पर विचार नहीं कर रही है। अगर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लंबे समय़ तक हालात खराब रहे तो सरकार ने अपने पास ये विकल्प सुरक्षित रखा है कि वो तेल पर टैक्स को घटा कर कीमतों को कम कर सके।

चुनाव के चक्कर में नहीं बढ़े थे तेल के दाम

आपको बता दें कि, पेट्रोल-डीजल के दामों में पिछली 4 नवंबर से कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। उस समय भी केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने टैक्स में कटौती करते हुए उपभोक्ताओं राहत दी थी। उस वक़्त अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल के दाम 83 डॉलर प्रति बैरल थे। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तेल की कीमतों को मसला बनने से रोकने के लिए चुनावों को दौरान तेल कंपनियों ने कीमतें नहीं बढ़ाई। अब चुनाव खत्म हो चुके हैं और फिलहाल तेल की कीमत बढ़ने से सरकार को भी कोई सियासी नुकसान नहीं होने वाला है।

फोटो सौजन्य—सोशल मीडिया

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