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नमस्ते ! भारत में स्वागत है एंबेसेडर रिक गारसेटी …..

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के दो साल से ज्यादा समय बीतने के बाद आखिरकार भारत को नया अमेरिकी राजदूत मिल ही गया। रिक गारेसेटी को बाइडेन प्रशासन ने काफी मशक्कत के बाद भारत में राजदूत नियुक्त करने में सफलता पाई है। गारसेटी भारत पहुंच गए हैं और वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपने परिपत्र पेश करने के बाद अपने दायित्व को आधिकारिक रूप से संभाल लेंगे।

गारसेटी की नियुक्ति के भारत के लिए बहुत खास मायने हैं और अमेरिकी प्रशासन और राष्ट्रपति जो बाइडेन से उनकी निकटता भारत- अमेरिका संबंधों में नई इबारत लिख सकती है। ये नियुक्ति इस मामले में भी खास है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा की भी योजना बन रही है।

नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने रिक गारसेटी बारे में जानकारी देते हुए एक ट्वीट किया है जिसमें लिखा गया है कि, ‘नमस्ते, मनोनीत राजदूत रिक गारसेटी। हम अतुल्य भारत में आपका स्वागत करते हुए बहुत उत्साहित हैं। आपके साथ मिलकर काम करते हुए हम अपने दोनों महान देशों के संबंधों को और मजबूती देंगे।’

कौन हैं रिक गारसेटी ?

अमेरिकी दूतावास की वेबसाइट पर गारसेटी का परिचय देते हुए लिखा गया है कि, रिक गारसेटी एक समर्पित लोकसेवक, शिक्षाविद और राजनयिक हैं। 15 मार्च 2023 को भारत में अमेरिका के 25 वें राजदूत के रूप में उनकी नियुक्त को मंजूरी दी गई। उन्होंने लॉस एंजिलिस सिटी काउंसिल के सदस्य के रूप में 12 साल बिताए हैं जिसमें से वे 6 साल सिटी काउंसिल के अध्यक्ष रहे। 2013 में गारसेटी को लॉस एंजिलिस के 42 वें मेयर के रूप में चुना गया और वे इस पद पर 2017 में दोबारा नियुक्त हुए। इस पद पर पहुंचने वाले वे लॉस एंजिलिस के इतिहास में सबसे कम उम्र के मेयर थे।

गारसेटी कई वर्षों कर अमेरिकी नौसेना से भी जुड़े रहे। उन्होंने कोलंबिया युनिवर्सिटी से हिंदी और भारतीय संस्कृति एवं इतिहास का अध्ययन किया है और उन्होंने कोलंबिया युनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स से मास्टर्स की डिग्री ली है। उन्हें राष्ट्रपति बाइडेन का बहुत विश्वसनीय माना जाता है। यही वजह है कि राष्ट्रपति बाइडेन ने कार्यभार संभालने के बाद उन्हें भारत का राजदूत नियुक्त कर दिया था लेकिन उनकी नियुक्त को कांग्रेस से मंजूरी नहीं मिल पा रही थी।

पांच साल पहले तक उन्हें अमेरिकी राजनीति में डेमोक्रेटिक पार्टी के चमकते सितारे के रूप में देखा जाता था लेकिन राजनीतिक आरोपों के चलते उन्होंने बहुत से उतार-चढ़ाव झेले। उनके एक सहयोगी पर एक सेक्स स्कैंडल में संलिप्त होने का आरोप लगा और गारसेटी पर उसे बचाने का। बस यहीं से गारसेटी के राजनीतिक सफर में कई तरह के व्यवधानों का दौर शुरू हुआ। बहरहाल, राष्ट्रपति बाइडेन उनकी नियुक्ति पर अमेरिकी कांग्रेस से मुहर लगवाने में सफल रहे और अब गारसेटी भारत-अमेरिका संबंधों की नई शक्तिगाथा को लिखने के लिए नई दिल्ली पहुंच गए हैं।

भारत के लिए रिक गारसेटी क्यों हैं  बहुत खास ?

पिछले दो साल से भारत में किसी अमेरिकी राजदूत की नियुक्ति नही हुई थी। ट्रंप प्रशासन ने कैनेथ जेस्टर को भारत में 2017 में राजदूत नियुक्त किया था जो जनवरी 2020 तक भारत में रहे। उनके बाद से दो साल से ज्यादा वक्त से इस पद पर कोई नियुक्ति नहीं हुई थी। अमेरिका में जो बाइडेन ने राष्ट्रपति बनने के बाद ही रिक गारसेटी को भारत का राजदूत बनाना चाहा लेकिन राजनीतिक विवादों के कारण कांग्रेस से उनकी नियुक्ति को मंजूरी नहीं मिल पाई। दूसरे प्रयास में कांग्रेस से उनकी नियुक्ति को मंजूरी मिली।

दिलचस्प बात ये है कि, अमेरिकी राजनीति में गारसेटी की भारतीय मामलों में हमेशा से गहरी दिलचस्पी रही। उन्होंने राष्ट्रपति चुनावों के दौरान जो बाइडेन के लिए भारतीय मूल के वोटरों को प्रभावित करने की पुरजोर कोशिश की थी और इसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे थे। ये भारत के प्रति उनकी गहरी दिलचस्पी का ही नतीजा है कि उन्होंने हिंदी और भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया। इसी वजह से वे भारत के राजदूत के रूप में राष्ट्रपति बाइडेन की पहली पसंद रहे।

चुनौतियां भी कम नहीं ?

राजदूत के रूप में रिक गारसेटी की नियुक्ति भारत में ऐसे समय हुई है जब भारत में मानवाधिकारों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठाए जा रहे हैं। गारसेटी खुद मानवाधिकारों को लेकर बहुत संवेदनशील छवि के राजनयिक माने जाते हैं। उनके कई बयान ऐसे रहे हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर प्रशन्चिन्ह लगाते हैं। अब जबकि वे खुद भारत में अमेरिका के राजदूत हैं तो उनके लिए ऐसे सवालों के बीच दोनों देशों के संबधों को सश्कत करना किसी चुनौती से कम नहीं।

एशिया- प्रशांत क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति और उसमें भारत की भूमिका को लेकर भी चुनौतियां कम नहीं हैं। एक बड़ा व्यावसायिक साझेदार होने के कारण अमेरिका हमेशा से इस क्षेत्र में भारत के व्यापारिक हितों का पैरोकार रहा है लेकिन हालिया समय में इस क्षेत्र में चीन की अति सक्रियता भारत समेत अमेरिका के लिए भी कम बड़ी चुनौती नहीं है।

इन सबसे बड़़ी चुनौती एंबेसेडर गारसेटी के लिए ये होगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच सहज संबंधों के लिए जमीन तैयार करना। प्रधानमंत्री मोदी, अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अपने मजबूत अपने रिश्तों को लेकर काफी चर्चित रहे। इन रिश्तों की चुभन डेमोक्रेटिक पार्टी को भी महसूस हुई। एंबेसेडर गारसेटी इस तल्खी को किस हद तक दूर कर पाते हैं ये उनकी शायद सबसे बड़ी चुनौती होगी।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया      

 

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