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एग्जिट पोल के अनुमानों के पीछे कहीं सट्टा बाजार का खेल तो नहीं ?

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लखनऊ (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) : उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के लिए विभिन्न सर्वे एजेंसियों की तरफ से किए गए सर्वे और एग्जिट पोल्स क्या सट्टा बाजार का खेल है ? चुनावी गुणा-भाग की आड़ में सटोरिए हमेशा से अपना खेल खेलते रहे हैं लेकिन वे हमेशा सही रहे हों ऐसा भी नहीं है।

उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय़ यूट्यूब चैनल 4 पीएम ने इस बारे में एक रिपोर्ट की है जिसमें कुछ दिलचस्प जानकारियां साझा की गई हैं। चैनल के अनुसार, एग्जिट पोल्स और सट्टा बाजार का बड़ा तगड़ा गठजोड़ है। अधिकतर एग्जिट पोल्स सट्टा बाजार के भाव से प्रभावित होकर अपना अनुमान लगाते हैं। चैनल के अमुसार, इस समय उत्तर प्रदेश में सटोरिए बीजेपी को नंबर एक और समाजवादी पार्टी को नंबर दो की हैसियत में देख रहे हैं। सट्टा बाजार में भारतीय जनता पार्टी के लिए 10,000 रुपयों पर 13000 रुपए जबकि समाजवादी पार्टी के लिए 3200 रुपए पर 10000 रुपए का भाव लग रहा है। सट्टा बाजार की माने तो उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन जाएगी लेकिन उसकी सीटें पिछली बार से काफी कम होंगी।

सट्टा बाजार का ये खेल सिर्फ उत्तर प्रदेश तक ही सीमित है, ऐसा नहीं नहीं है। उत्तराखंड, पंजाब और गोवा के लिए भी बाजार में भाव-ताव जारी है। दिलचस्प तथ्य ये है उत्तराखंड में सट्टा बाजार बीजेपी और कांग्रेस के लिए बराबर का दांव खेल रहा है। पंजाब में सट्टा बाजार ने आम आदमी पार्टी को नंबर एक पार्टी माना है जबकि कांग्रेस पार्टी को दूसरे नंबर पर रखा है। सट्टा बाजार में अकाली दल और कैंप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस को लेकर कोई उत्साह नहीं है।

गोवा में त्रिशंकु विधानसभा के आसार बताए जा रहे हैं लेकिन सट्टा बाजार मे इसकी चर्चा पहले से थी। यूपी के बाद सट्टे का सबसे जब्रदस्त खेल गोवा में ही चल रहा है। यहां मुख्यमंत्री कौन बनेगा, कौन पार्टी किसके साथ जाएगी और कौन सबसे बड़ी पार्टी बनने जा रही है, इन सारे कयासों पर सट्टा बाजार का अपना एक नजरिया है।

दिलचस्प तथ्य ये है कि, सट्टा बाजार के तमाम रुजानों का असर एग्जिट पोल्स के नतीजों में भी झलक रहा है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के एग्जिट पोल के नतीजों को लेते हैं। यहां अधिकतर पोल बीजेपी को सरकार बनाने के लिए बहुमत दे रहे हैं। चाणक्या को छोड़ दें तो कोई भी पोल बीजेपी को स्वीपिंग मोड में नहीं दिखा रहा है। सट्टा बाजार भी समाजवादी पार्टी को 33 रुपए पर 100 रुपए का भाव दे रहा है लेकिन बीजेपी के लिए 100 रुपए पर 30 रुपए का फायदा दे रहा है। यानी बीजेपी की जीत पर सट्टा बाजार को ज्यादा इत्मीनान है।   

क्यों उठ रहे हैं एग्जिट पोल पर सवाल ?   

विभिन्न सर्वे एजेंसियों और टीवी चैनलों ने पांचों राज्यों की विधानसभाओं के लिए एग्जिट पोल के अपने-अपने अनुमान पेश किए। सभी एग्जिट पोल में पंजाब के अलावा बाकी चार राज्यों में अन्य दलों के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी की बढ़त दिखाई गई है। इन चारों राज्यों के एग्जिट पोल्स में विभिन्न दलों को मिलने वाली सीटों के अनुमान तो अलग-अलग हैं ही, साथ ही वे अनुमान उन प्रदेशों के राजनीतिक माहौल से भी मेल नहीं खाते हैं। यही वजह है कि विभिन्न दलों के नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों ने भी एग्जिट पोल्स के अनुमानों को खारिज किया है।

दरअसल, हमारे देश के चुनावों में जितने बड़े पैमाने पर सट्टा होता है और टेलीविजन मीडिया का जिस तरह का लालची चरित्र विकसित हो चुका है, उसके चलते एग्जिट पोल्स की पूरी कवायद सट्टा बाजार के नियामकों और टीवी मीडिया इंडस्ट्री के एक संयुक्त कारोबारी उपक्रम से ज्यादा कुछ नहीं है। कभी-कभी सत्तारुढ़ दल भी इस उपक्रम में भागीदार बन जाते है। भारत में एग्जिट पोल हमेशा ही तुक्केबाजी और टीवी चैनलों के लिए एक कारोबारी इवेंट होता है। ये कभी भी विश्वसनीय साबित नहीं हुए हैं और इन पर संदेह करने की ठोस वजहें मौजूद हैं।

एग्जिट पोल के सबसे सटीक अनुमान सिर्फ 1984 के आम चुनाव में ही रहे। अन्यथा लगभग हमेशा ही वास्तविक नतीजे एग्जिट पोल के अनुमानों से हटकर ही रहे हैं। 2004 के आम चुनाव में लगभग सभी एग्जिट पोल्स के नतीजों में इंडिया शाइनिंग की धूम थी और  अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में एनडीए सरकार की फिर से ताजपोशी की गूंज थी लेकिन वास्तविक नतीजे बिल्कुल उलट रहे। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की सरकार बनी। डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। 2009 के आम चुनाव में भी सभी एग्जिट पोल्स के नतीजों में यूपीए और लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई वाले एनडीए के बीच कांटे की टक्कर बताते हुए दोनों को ही बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर दिखाया गया था। लेकिन असल नतीजों में यूपीए को बहुमत से थोड़ी सी कम यानी 262 सीटें मिलीं जबकि एनडीए को महज 159 सीटें ही हासिल हुईं।

2014 और 2019 के आम चुनावों के एग्जिट पोल्स के अनुमानों में एनडीए के सत्ता में आने का अनुमान तो जताया गया था लेकिन किसी ने भी इन चुनावों में कांग्रेस की शर्मनाक हार का अनुमान नहीं लगाया था। इन चुनावों में कांग्रेस को 44 और 52 सीटें ही मिल हासिल हो सकीं।

पिछले एक दशक को दौरान हुए विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल्स के अनुमान भी अधिकतर गलत साबित हुए। पश्चिम बंगाल में 2011 के विधानसभा चुनाव में किसी भी एग्जिट पोल में वामपंथी मोर्चे की पराजय और तृणमूल कांग्रेस के भारी बहुमत से सत्ता में आने का अनुमान नहीं जताया था लेकिन इन चुनावों में वामपंथी मोर्चे को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा। 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में भी सिर्फ एक एजेंसी ने अपने एग्जिट पोल में तृणमूल कांग्रेस की सत्ता में वापसी का अनुमान जताया था, बाकी सभी एग्जिट पोल में या तो तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर बताई गई थी या बीजेपी के सत्ता में आने की संभावना जताई गई थी। नतीजे आए तो अनुमान गलत साबित हुए।  

इसी तरह की कहानी उत्तर प्रदेश में 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में भी दोहराई  गई। 2007 में सभी एग्जिट पोल्स राज्य में त्रिशंकु विधानसभा के आसार जता रहे थे लेकिन सरकार पूर्ण बहुमत के साथ बीएसपी की बनी। 2012 में ठीक ऐसी ही कहानी समाजवादी पार्टी के साथ हुई। 2014 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में तो गजब ही हो गया। इस चुनाव में सभी एग्जिट पोल्स बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान जता रहे थे लेकिन बीजेपी को 70 सीटों मे से सिर्फ तीन सीटें मिली और आम आदमी पार्टी की सरकार बनी 67 सीटों के साथ। पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनावों में एग्जिट पोल्स में आम आदमी पार्टी को 80 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था जबकि उसे मिली सिंर्फ 20 सीटें।

विदेश मे भी फेल रहे हैं एग्जिट पोल्स

एग्जिट पोल्स के नतीजे सिर्फ भारत में मुंह की खाते हों ऐसा नहीं है। 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव को लीजिए। सारे ओपिनियन और एग्जिट पोल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन की बढ़त दिखा रहे थे लेकिन चुनाव नतीजों में जीत रिपब्लिकन पार्टी के डोनॉल्ड ट्रंप की हुई। इसी तरह से तीन साल पहले हुए आस्ट्रेलिया के चुनावों में  विपक्षी लिबरल-नेशनल गठबंधन को बहुमत के करीब और सत्ता में आता हुआ दिखाया गया था लेकिन चुनाव नतीजे बिल्कुल उलट रहे। अमेरिका में सट्टा बाजार राष्ट्रपति पद की चुनावी प्रक्रिया की शुरुवात के साथ ही लगातार अनुमानों को प्रभावित करता है और उसी के हिसाब से समय-समय पर पार्टी और उम्मीदवार पर सट्टे का भाव भी बदलता रहता है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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