नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : शिवालिक और मध्य हिमालयी राज्यों में किसानों के लिए खेती-बाड़ी अब बड़ी समस्या बन रही है। पलायन के कारण कामगार न मिल पाने के साथ ही इन राज्यों में खेती पर कई तरह से मार पड़ रही है। यहां कृषि जहां मुख्य रूप से बारिश पर निर्भर है, वहीं जंगली और आवारा पशु इन इलाकों की खेती पर बड़ा संकट बनकर उभरे हैं। क्लाइमेट चेंज भी फसलों के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। इस इलाके में उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और बिहार का ऊपरी क्षेत्र पड़ता है।
इंडियन कॉफी बोर्ड के पूर्व सलाहकार और कृषि विशेषज्ञ डॉ. विक्रम शर्मा का कहना है कि इन इलाकों में परंपरागत फसलों से किसानों को पर्याप्त आय नहीं हो पा रही है और युवा पीढ़ी खेती छोड़कर यहां से पलायन कर रही है। ऐसे में यहां खेती का पैटर्न बदलने और कैश क्रॉप्स या यानी विशुद्ध व्यावसायिक नजरिए से फसलें उगाए जाने की जरूरत है।
ऐसे सुधर सकती है किसानों की दशा
डॉ. शर्मा के अनुसार, इन क्षेत्रों में अगर कीवी, पिस्ता, दालचीनी, अवाकाडो, कॉफी और हींग आदि की खेती की जाए तो किसानों की माली दशा में काफी सुधार आ सकता है। इन सभी फसलों की देश और दुनिया में काफी मांग है। कॉफी को पेट्रोलियम के बाद दूसरे सबसे बड़े कमर्शल उत्पाद का दर्जा हासिल है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसे मध्य हिमालयी राज्यों के कई इलाकों में कामयाबी के साथ उगाया जा सकता है। इसी तरह हींग की डिमांड भी देश में बहुत ज्यादा है। इसे बड़ी मात्रा में आयात किया जाता है। डॉ. शर्मा ने कहा कि सरकार ने कुछ अर्सा पहले हींग के बीज ईरान से मंगाए हैं। हींग का इस्तेमाल भारत के हर घर में होता है। इसके साथ ही इससे कई तरह की देसी दवाएं भी बनाई जाती हैं। भारत अभी हर साल करीब 11 हजार करोड़ रुपये की हींग आयात करता है। अगर देश में हींग का भरपूर उत्पादन होने लगे तो यह पैसा देश के किसानों को मिलेगा।
राज्य सरकारों की बेरुखी
डॉ. शर्मा कहते हैं कि इन मामले में राज्यों के नकारात्मक रवैये के कारण काम नहीं हो पा रहा है। मसलन, हिमाचल प्रदेश के निचले इलाकों में कॉफी की खेती हो सकती है, लेकिन राज्य सरकार इस बाबत कोई कदम उठाने को तैयार नहीं है। वह इन राज्यों में बने कृषि विश्वविद्यालयों पर भी निशाना साधते हैं। उनका कहना है कि ये रिसर्च के नाम पर सिर्फ जनता की खून-पसीने की कमाई को बर्बाद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन राज्यों के किसानों की बेहतरी के लिए एक कृषि उत्थान बोर्ड बनाए जाने की जरूरत है, जो किसानों को खेती के नए तरीके बताए और उन्हें नई फसलें उगाने के लिए प्रेरित करे।
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