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आबादी को लेकर मुसलमान क्यों कठघरे में ? जानिए आधा नहीं, पूरा सच…

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लखनऊ (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) : विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर 11 जुलाई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बढ़ती आबादी पर इशारों-इशारों में बगैर किसी मजहब का नाम लिए मुसलमानों को निशाने पर ले लिया। उन्होंने इस मौके पर जनसंख्या स्थिरता पखवाड़े  की शुरुआत करते हुए कहा कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम सफलतापूर्वक आगे बढ़े, लेकिन जनसांख्यिकी असंतुलन की स्थिति भी न पैदा हो पाए। उन्होंने कहा कि. ऐसा न हो कि किसी वर्ग की आबादी बढ़ने की स्पीड,  उनका प्रतिशत ज्यादा हो।

कुछ इसी तरह का बयान केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने दिया। उन्होंने  देश में जल्द से जल्द जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू किए जाने की जरूरत बताते हुए कहा है कि 10 बच्चे पैदा करने वाले बगैर कानून के नहीं मानेंगे।

इन दोनों नेताओं के बयान से उलट, बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने ट्वीट कर कहा है कि बढ़ती जनसंख्या किसी मज़हब और जाति की समस्या नहीं है बल्कि मुल्क की मुसीबत है। इसे जाति, धर्म से जोड़ना जायज़ नहीं है।

पीटीआई की खबर के अनुसार, उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण) बिल 2021 का एक ड्राफ्ट सौंपा है।  प्रस्तावित बिल में दो बच्चों के नियम की बात कही गई है। हालांकि, यूपी में चुनावों से पहले भी एक बार जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर चर्चा गरमाई थी लेकिन चुनावों के साथ मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

क्या मुसलमानों की आबादी सचमुच तेजी से बढ़ रही है

सरकारी आंकड़ों पर जाएं तो पाएंगे कि ये बात सही है कि देश में मुस्लिम समुदाय की आबादी की वृद्धि दर दूसरे समुदायों की तुलना में थोड़ी ज्यादा है। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि, पिछले दो दशकों में सभी धार्मिक समुदायों को देखें तो मुसलमानों की प्रजनन दर  में सबसे तेज गिरावट देखी गई है। 1992-93 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे में मुसलमानों का ये आंकड़ा जहां 4.4 था वो 2019-2021 में लगभग आधा होकर 2.3 तक आ गया है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के पांचवें चरण  की रिपोर्ट से पता चला है कि 2019-21 में हिंदू समुदाय 1.94  पर है, ईसाई समुदाय की प्रजनन दर 1.88, सिख समुदाय की 1.61, जैन समुदाय की 1.6 और बौद्ध और नव-बौद्ध समुदाय की 1.39 है।

अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन में पता चला है कि भारत में सभी धार्मिक समूहों की प्रजनन दर में काफ़ी कमी आई है। नतीजा, साल 1951 से लेकर अब तक देश की धार्मिक आबादी और ढांचे में मामूली अंतर ही आया है। भारत में सबसे ज़्यादा संख्या वाले हिंदू और मुसलमान देश की कुल आबादी का 94 प्रतिशत हैं यानी दोनों धर्मों के लोगों की जनसंख्या क़रीब 120 करोड़ है।

राजनीति की रोटी

 राजनीति विज्ञानी प्रो. राधारमण के अनुसार, भारत में दक्षिणपंथी सोच रखने वाले पिछले काफी समय से देश की जनसंख्या हो या दूसरे तमाम मसले सभी के लिए किसी खास समुदाय को निशाने पर रखते रहे हैं, लेकिन तस्वीर वो नहीं है जो वो दिखाना चाहते हैं। ये सही है कि भारत में आबादी की रफ्तार कम हई है और सबसे ज्यादा गिरावट अगर किसी समुदाय में देखने को मिली है तो वो है मुस्लिम समुदाय।

प्रो. राधारमण का कहना है कि, योगी आदित्य नाथ हों या केंद्र सरकार दोनों ही बातें जनसंख्या नियंत्रण कानून की करते हैं लेकिन कानून नहीं बनाते। सबसे बड़ी बाधा तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ही है। वही हिंदुओं से छह बच्चे पैदा करने की बात करता है। जनसंख्या एक राष्ट्रीय समस्या है इसमें नूरा कुशती खेलने से कुछ नहीं होगा।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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