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ऊर्जा के मोर्चे पर सुकून की खबर…भारत अपने लक्ष्य से बेहतर की ओर

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नई दिल्ली 16 अक्टूबर (गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी ) : ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के लिए भविष्य की तस्वीर हरी-भरी दिखती है। एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि, भारत में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र लगातार फलफूल रहा है। भारत ने 2030 तक अपनी कुल ऊर्जा जरूरतों का आधा से ज्यादा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करने का लक्ष्य रखा है। और उम्मीद जताई जा रही है कि इस समयावधि तक भारत, उससे भी ज्यादा ऊर्जा इस क्षेत्र से पैदा कर सकता है।

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशल ऐनालिसिस (आईईईएफए) ने इस बारे में एक रिपोर्ट प्राकशित की है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ऊर्जा का भविष्य उम्मीदें जगाने वाला है। रिपोर्ट में अनुमान जाहिर किया गया है कि दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा बिजली उपभोग करने वाला भारत 2030 तक अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता को 405 गीगावाट तक कर लेगा।

भारत ने 2030 तक अपनी जरूरत की आधी से ज्यादा बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतो से हासिल करने का लक्ष्य तय किया है और रिपोर्ट कहती है कि भारत इस लक्ष्य से ज्यादा भी हासिल कर सकता है। भारत सरकार का अनुमान 500 गीगावॉट से ज्यादा बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करने का है। देश में 59 फीसदी ऊर्जा जीवाश्म ईंधन से तैयार होती है जबकि अनुमान है कि 2030 तक ये घटकर 31.6 फीसदी हो जाएगी।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत के स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य बेहद महत्वाकांक्षी हैं, लेकिन उसके पास इसे पूरे करने के लिए बड़ी योजनाएं भी हैं। जनसंख्या के बढ़ते दबाव और आर्थिक विकास के साथ ऊर्जा की जरूरतें भी बढ़ती जाएंगी। रिपोर्ट मानती हैं कि, भारत की इस तेज गति के पीछे अक्षय ऊर्जा की कम कीमत तो है ही साथ ही पर्यावरण की बेहतरी के लिए स्वच्छ और हरित ऊर्जा की मांग भी एक वजह है।

आबादी के साथ बढ़ेगी खपत

भारत जल्दी ही चीन को पीछे छोड़ कर दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। बढ़ती आबादी और जीवन स्तर में सुधार के साथ देश की ऊर्जा जरूरतों में तेजी से बढ़ोतरी होगी। आईईईएफए की रिपोर्ट में संबंधित आंकड़ों के विश्लेषण के बाद उम्मीद जताई गई है कि दुनिया के किसी भी दूसरे देश की ऊर्जा जरूरतों में इतनी तेजी से वृद्धि की उम्मीद फिलहाल नजर नहीं आ रही। रिपोर्ट में विभिन्न अक्षय ऊर्जा कॉरपोरेशन और सरकारी कंपनियों के डेटा का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ निजी क्षेत्र की कंपनियां 151 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का योगदान देने लगेंगी। रिपोर्ट में अडानी ग्रीन एनर्जी का नाम लिया गया है जिसका अक्षय ऊर्जा उत्पादन 2030 तक 5.8 गीगावाट से बढ़कर 45 गीगावाट हो जाने का अनुमान जताया गया है।

फिर भी बरकरार हैं चुनौतियां

रिपोर्ट में आंकड़े उम्मीदें तो जताते हैं लेकिन वहीं ऊर्जा क्षेत्र के विकास और समीक्षा के काम से जुड़ी दूसरी संस्थाओं ने भारत में स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन लक्ष्यों को लेकर कई  चुनौतियों का जिक्र किया है। इन संस्थाओं में जर्मनी स्थित थिंक टैंक क्लाइमेट एनेलेटिक्स और लंदन में पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एंबर शामिल हैं।

क्लाइमेट एनेलेटिक्स ने भारत में उर्जा उत्पादन के क्षेत्र नें कोयले पर पारंपरिक निर्भरता को स्वच्छ और हरित ऊर्जा के विकास के लिए सबसे बड़ी बाधा बताया है। एनेलेटिक्स ने सुझाव दिया है कि भारत को तुरंत कोयले से चलने वाली बिजली उत्पादन इकाइयों को विराम देने की जरूरत है। संस्था ने आश्चर्य जताया है कि भारत दावा तो स्वच्छ और हरित ऊर्जा में लक्ष्य से आगे चलने का कर रहा है लेकिन कोयले पर उसकी निर्भरता को कम करने के लिए उसके पास कोई रोडमैप नहीं है। संस्था ने कहा कि समय-समय पर भारत में देखने को मिलता रहा है कि कोयले की कमी से उसके कई बिजली उत्पादन संयंत्र बंद होने के कगार पर आ खड़े होते हैं।

पर्यावरण पर काम करने वाली लंदन स्थित संस्था एंबर ने सलाह दी है कि, भारत के लिए सबसे जरूरी है देश भर के लिए एक समग्र ऊर्जा नीति का होना। प्रत्येक राज्य ऊर्जा की जरूरतों और उत्पादन को लेकर अलग-अलग राय रखता है और उसके लिए एक अलग रणनीति बनाता है। संस्था मानती है कि, भारत को अक्षय ऊर्जा से संबंधित अपनी मौजूदा योजननाओं को भी गति देने की जरूरत है।

निवेश की जरूरत

कमियों और चुनौतियों के पीछे की वजहों को भी समझने की जरूरत है। भारत के ऊर्जा मंत्री आर. के.. सिंह ने पिछले दिनों एक कार्यक्म में स्पष्ट किया था देश तेजी  से अपने निर्धारित ऊर्जा लक्ष्यों की  तरफ बढ़ रहा है लेकिन इसके लिए संसाधनों को जुटाना भी एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा था कि भारत ऊर्जा ऊत्पादन में कोयले के इस्तेमाल को कम करना या बंद करना चाहता है लेकिन इसके लिए हमें पैसे की जरूरत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत अपने ऊर्जा लक्ष्य को हासिल करने की राह में आने वाली सारी बाधाओं को पार कर जाएगा।

आपको बता दें कि, हालिया अनुमान में बताया गया है कि अगर भारत 2030 तक अपने निर्धारित लक्ष्य की दिशा में काम करता है तो उसे फौरी तौर करीब 183 खरब रुपए यानी 223 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत है। सरकार ने ऊर्जा के क्षेत्र में निजी पूंजी को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के तरह के प्रस्ताव भी तैयार किए हैं।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया     

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