लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) : उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ का अयोध्या की जगह गोरखपुर से चुनाव लड़ने को लेकर राजनीतिक पटल पर कई तरह की चर्चाएं गरम हैं। एक चर्चा है कि पूर्वांचल में बीजपी पहले के मुकाबले कमजोर स्थिति में है और योगी आदित्य नाथ के वहां से चुनाव लड़ने पर पूर्वांचल की कुछ सीटों पर बीजेपी को फायदा हो सकेगा। दूसरी दलील ये दी जा रही है कि मुख्यमंत्री को इसलिए गोरखपुर से लड़ाया जा रहा है ताकि उनको एक सुरक्षित सीट मिल सके। पार्टी उन्हें लेकर कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती।
दलीलें कुछ भी हो सकती हैं। लेकिन मुख्यमंत्री को गोरखपुर भेजने के पीछे कुछ और बातें भी हैं। जानकारों की माने तो मुख्य़मंत्री योगी आदित्य नाथ ने अयोध्या से चुनाव लड़ने का न सिर्फ पूरा मन बना लिया था बल्कि उन्होंने इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी थी। गोरखपुर भेजे जाने से एक दिन पूर्व ही अयोघ्या में कंबल वगैरह बांटे गए थे। लेकिन अचानक ही योगी आदित्य नाथ को अयोध्या के बदले गोरखपुर शिफ्ट कर दिया गया।
वजह क्या रही
पार्टी सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश में हाल ही में पार्टी में हुई गतिविधियों से बीजपी आलाकमान खासा नाराज है। जिस तरह से स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी जैसे मंत्रियों समेत कई विधायकों ने पार्टी छोड़ी उससे पार्टी सकते में आ गई। पार्टी छोड़ने वाले अधिकतर नेताओं ने मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर ज्यादा नाराजगी दिखाई बजाए इसके वे पार्टी आलाकमान पर अपनी नाराजगी को जाहिर करते। पिछले चुनावो में इसी वर्ग की वजह से बीजेपी को प्रचंड बहुमत हासिल हुआ था इसलिए पार्टी जल्द से जल्द डैमेज कंट्रोल करना चाहती है।
सूत्र बताते हैं कि, मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने पार्टी आलाकमान से अपने करीबियों के लिए भी कम से कम 50 सीटें मांगी थीं लेकिन बदले हालात में मुख्यमंत्री की एक न सुनी गई। उल्टा उन्हें उनकी मनपसंद सीट से न लड़ा कर गोरखपुर भेज दिया गया।
इसी बीच, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और कानून मंत्री बृजेश पाठक ने एक बयान में साफ कहा कि बीजेपी जीती तो मुख्यमंत्री कौन होगा ये पार्टी का विधायक दल तय करेगा। मतलब साफ है योगी के नेतृत्व पर सवाल है और ये सवाल केशव मौर्य या बृजेश पाठक ने अपने बूते नहीं उठाया है। उनसे दिलवाया गया है। संकेत एकदम साफ है।
गोरखपुर कितना सुरक्षित ?
गोरखपुर वो जगह है जो एक समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबल की पहचान हुआ करती था। वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी, ठाकुर और ब्राहम्ण राजनीति की डोर अपने हाथ में रखते थे। वीरेंद्र शाही की हत्या के बाद हरिशंकर तिवारी वहां की राजनीति में बाहुबल के प्रतीक बन गए।
य़ोगी आदित्य नाथ ने जब मठ से बाहर राजनीति में कदम बढ़ाया तो उन्हें महंत अवैद्य़नाथ के उत्तराधिकारी के तौर पर ही देखा गया। हालांकि वे विधानसभा चुनाव हार गए। बाद में योगी गोरखपुर संसदीय सीट से चुनाव जीते। इस गणित में राजपूत और मठ से जुड़े वोटों का ज्यादा असर था। हरिशंकर तिवारी कांग्रेसी होते थे अब वे परिवार समेत समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं। गोरखपुर सीट पर ब्राह्मण वोट निर्णायक स्थिति में हैं। किस हद तक योगी ब्राह्मणों को साध पाएंगे यही काफी कुछ उनकी जीत तय कर सकेगा। ऐसे में योगी के लिए गोरखपुर भी कितना सुरक्षित होगा इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
दूसरा, गोरखपुर सीट से मौजूदा विधायक राधामोहन अग्रवाल वैश्य समाज से आते हैं जो बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है। उन्हें एक समय में योगी का वरदहस्त भी हासिल था लेकिन कालांतर में वे योगी सरकार के खिलाफ ही धऱने पर बैठ गए। मतलब इस समय में वे योगी कैंप से बाहर हैं। उन्होंने अभी तक चुप्पी साध रखी है। संभव है वे आने वाले समय मे कोई फैसला लें।
इसी तरह, कुछ महीनों पहले गोरखपुर में एक होटल में कानपुर के एक कारोबारी की पुलिस वालों ने ही हत्या कर दी थी। हत्यारे पुलिस वाले अधिकतर राजपूत थे और ऊपर तक पहुंच के कारण उन पर कार्रवाई बहुत मशक्कत के बाद ही हो पाई। इस हत्या को लेकर गोरखपुर में वैश्य समाज बहुत आंदोलित था। राधामोहन अग्रवाल ने इस मामले को जोरशोर से उठाया था। बताया जा रहा है कि बीजेपी का कोर वोटर वैश्य वर्ग भी योगी सरकार की इस हत्याकांड में की गई कार्रवाई से नाखुश है और उसकी नाखुशी मुख्यमंत्री के लिए खासी भारी पड़ने वाली है।
ऐसे में इन सारे आंकलन को अगर देखा जाए तो इतना तो तय है कि योगी आदित्य नाथ के लिए गोरखपुर की सीट को सुरक्षित कह पाना भी संदेह के घेरे में है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया .