पश्मीने का शॉल है लाजवाब, सरकार लाई प्रोत्साहन के लिए नई स्कीम

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए पीयूष धर द्विवेदी ) : पश्मीना के शॉल का नाम तो सभी जानते हैं। ठंड के मौसम में पश्मीना का श़ॉल भारत के अलावा विदेश में भी भारी मांग में रहता है। भारत सरकार ने जम्मू-कश्मींर के विभाजन के बाद लद्दाख को एक केंद्रशासित क्षेत्र बना दिया है। सरकार की कोशिश उन रोजगार के साधनों को विकसित करने की है जो कभी उस इलाके की शान हुआ करते थे। इसी के तहत केंद्र सरकार ने पहली बार पश्मीना का कारोबारर करने वालों के लिए 5 करोड़ रुपए का रिवावल प्लान तैयार किया है। इसके तहत उन 2000 परिवारों को लाभ होगा जो करीब 2 लाख पश्मीना भेड़ों के पालन से जुड़े हुए हैं। पश्मीना भंड़ों को पालने का काम चांगपा जनजाति करती है। सरकार की कोशिश है कि इस जनजाति के साथ ही पश्मीना भेडों को भी बीमारी से बचाने के लिए स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जा सकें। चांगपा बंजारा समुदाय है जो लद्दाख क्षेत्र के चांगथंग इलाके में निवास करता है। चांगपा खानाबदोश जीवन पसंद करते हैं और इनकी आजीविका का मुख्य साधन मवेशी और पश्मीना भेड़ें हैं।

कैसे बनाई जाती है पश्मीना शॉल

पश्मीना शॉल हाथ और मशीन दोनों से ही बनाया जाता है लेकिन हाथ का बनाया शॉल ही बेहतर होता है। एक शॉल को बनाने में कम-से-कम तीन भेड़ों के ऊन का इस्तेमाल किया जाता है।  एक पश्मीना भेड़ से करीब 80 ग्राम अच्छा ऊन मिल जाता है। धागा बनाने के लिए इस ऊन को हाथों से ही चरखों की मदद से काता जाता है। इसके बाद इस धागे की डाई की जाती है जिससे इसमें रंग आता है। जानकारी के अनुसार भारत से कहीं ज्यादा इस शॉल की मांग विदेशों में है इसलिए इसे नए स्टाइल में भी तैयार किया जाता है। पश्मीना कपड़े से सिर्फ शॉल ही नहीं कुर्तियां, जैकेट्स और दूसरे कपड़े भी बनाए जाते हैं।

कैसे होती है पश्मीना कपड़े की पहचान

पशमीना के कपड़े दुनिया भर में बेचे जाते है, लेकिन सबसे मुश्किल होता है इनकी पहचान करना। हम आपको बता रहे हैं कि पश्मीना की पहचान कैसे की जाती है। पश्मीना वजन में बहुत ही हल्का और बहुत ही मुलायम होता है। असली पशमीना पर कभी लेबल नहीं लगाया जाता, बल्कि उसे सलाई से सिला जाता है।

7000 से 12000 रुपए में बनता है पश्मीना शॉल

पाश्मीना शॉल की लागत 7000 से 12000 रुपए के बीच है। ये शॉल कीमत के हिसाब से विभिन्न रंगों और डिजाइनों में आती हैं। पशमीना शॉलों की मौलिकता को बरकरार रखने के लिए बुनकर इन पर पारम्परिक डिजाइन ही बनाते हैं। चाहे डिजाइन्स में बुना जाए या इन पर बाद में कढ़ाई की जाए एक पशमीना शॉल तैयार करने में 9 से 12 महीने लगते हैं। हालांकि, इन दिनों इनके रंगों में कुछ नवीनता लाई जा रही है। बेहद महंगे होने की वजह से आज भी ये शॉल स्टेटस सिम्बल हैं।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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