नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : देश में खेती के वैकल्पिक तरीकों को आजमाने और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार मिशन मोड में काम कर रही है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सरकार ने परंपरागत कृषि विकास योजना के तेजी के साथ विस्तार का मन बना लिया है। इसी के तहत सरकार ने 4 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। ये कृषि क्षेत्र जैविक खेती के लिए निर्धारित 38 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र का ही एक हिस्सा है।
आंध्रप्रदेश, गुजरात, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने प्राकृतिक खेती को लेकर उत्साह दिखाया है और वहां बड़े पैमाने पर इस प्रयोग को आजमाने का प्रयास किया जा रहा है। गुजरात के राज्यपाल देवव्रत आचार्य ने प्राकृतिक खेती के बारे में एक किसान की सफल यात्रा के बारे में बताते हुए ट्वीट किया कि, ‘गुजरात में प्राकृतिक खेती की सफलता का नया प्रयोग। एक किसान ने पहले पांच हेक्टेयर और अब 50 हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती शुरू की। प्राकृतिक खेती भविष्य की खेती है।‘ उन्होंने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि मंत्रालय़ को पत्र भी लिखा है।
कृषि मंत्रालय के एक प्रपत्र में कहा गया है कि सरकार की कोशिश देश में रासायनिक खादों के इस्तेमाल को घटाने और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने की है। सरकार मानती है कि 1950 के दशक में हरित क्रांति के साथ देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों का इस्तेमाल जरूरी था। लेकिन अब जबकि रासायनिक खादों का बुरा असर तमाम तरह से लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है जरूरत वापस प्राकृतिक खेती के तौर तरीकों की तरफ लौटने की है। खेतों में कैमिकल के इस्तेमाल से उर्वरता, पानी और आबोहवा पर गलत असर पड़ रहा है और इससे लोगों की सेहत से जुड़ी नई चुनौतियां पैदा हो रही है।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इस बारे में पंजाब का उदाहरण देते हुए बताया कि, पंजाब के खेतों में उत्पादन बढ़ाने के लिए कैमिकल खादों का जम कर इस्तेमाल हुआ। उत्पादन तो बढ़ा लेकिन उस खाद्यान्न की पौष्टिकता पर असर पड़ा। उन्होंने बताया कि पंजाब में किसान अपने पैदा किए अनाज को बेचते हैं खाते नहीं। उन्होंने कहा कि, प्राकृतिक खेती के लिए सरकार उन भूखंडों के चुन रही है जिनमें अब तक रासायनिक खादों का इस्तेमाल या तो नहीं हुआ है या फिर बहुत ही कम हुआ है। इससे किसानों के लिए भी एकदम से उत्पादन घटने की मार झेलना आसान हो जाएगा।
कृषि मंत्रालय के प्रपत्र में कहा गया है कि, खाद्यान्न उत्पादन भारी मात्रा में कैमिकल के इस्तेमाल से भावी पीढ़ी की सेहत के लिए खतरा पैदा हो रहा है। खाद्यान्न के साथ पानी की किल्लत हो रही है और आबोहवा पर भी असर हो रहा है। दूसरी तरफ, प्राकृतिक रूप से खाद के काम करने वाले अवेशेषों को निस्तारित करने के लिए अलग से पैसे खर्च करने पड़ रहे है। प्रपत्र में इस बारे में एक समग्र नीति तैयार करने पर जोर दिया गया है।
रमेश चंद्रा बताते हैं कि, प्राकृतिक खेती को लेकर सरकार के पास एक ठोस नीति है और उस पर प्रभावी अमल से किसान के साथ खेत और पैदावार की तस्वीर भी बदल सकती है।
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