Homeपरिदृश्यओपिनियन / सर्वेक्या भारत के गांवों-कस्बों की तरफ शुरू हो चुका है ‘रिवर्स माइग्रेशन’...

क्या भारत के गांवों-कस्बों की तरफ शुरू हो चुका है ‘रिवर्स माइग्रेशन’ ?

spot_img

नई दिल्ली / रांची (गणतंत्र भारत के लिए विशेष रंजन) : नई दिल्ली के करोल बाग की रहने वाली सुनीता पिछले 3 दशक से दिल्ली में रह रही थीं। उनका मायका रांची के कडरू इलाके में है। उनके दो बच्चे है और सास-ससुर भी उनके साथ ही रहते हैं। बच्चे नौकरी के सिलसिले में बेंगलुरू में हैं जबकि पति भी कुछ समय बाद रिटायर होने वाले हैं।

सास-ससुर पिछले दस सालों से दिल्ली में अपने बेटे-बहू के साथ ही रहे हैं लेकिन दिल्ली आने के कुछ समय बाद ही उन्हें सांस की दिक्कत होने लगी। जाडों में तो उन्हें कई बार अस्पतात में भर्ती कराने की नौबत भी आ गई। अब इस परिवार ने फैसला किया है कि वे दिल्ली छोड़ कर रांची में बसेंगे। उन्होंने शिफ्टिंग की तैयारी भी शुरू कर दी है और रांची में उन्होंने एक घर भी तलाश लिया है।

सुनीता बताती हैं कि पति की नौकरी की मजबूरी न होती तो वे लोग पहले ही यहां से चले जाते लेकिन घर के बुजुर्गों की बिगड़ती तबियत ने उन्हें ये फैसला लेने पर मजबूर कर दिया। सुनीता ने बताया कि कुछ दिनों पहले उनकी एक दोस्त ने भी खराब आबोहवा के कारण दिल्ली को छोड़ कर उदयपुर का रुख कर लिया था।

क्या बड़े शहरों से पलायन शुरू हो चुका है ?

मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरू के साथ पुणे, हैदराबाद और दिल्ली एनसीआऱ ऐसे क्षेत्र रहे हैं जहां तेजी के साथ लोगों की बसावट हुई। पिछले तीन दशकों में यहां काम की तलाश में बहुत से लोग बाहर से आए और यहीं बस गए। उद्योग, वाहन, मकान और लगातार बढ़ती आबादी ने इन शहरों की आबोहवा को इस हद तक खऱाब कर दिया कि लोगों की सेहत खऱाब होने लगी। पानी से लेकर हवा तक चौपट हो गई।

इन हालात के चलते विभिन्न शोध संस्थाओं और सिविक बॉडीज़ के लिए तमाम तरह की चुनौतियां सामने आने लगी और योजना से लेकर रणनीति तक में बदलाव की अपेक्षा की जाने लगी।

विशेषज्ञो की माने तो इन शहरों की तरफ जहां जनसंख्या का एक समूह रोजगार के चक्कर में आकर्षित होता है वहीं ऐसा भी एक समूह है जो विभिन्न कारणों से यहां से छोटे शहरों या फिर ग्रामाण इलाकों की तरफ पलायन कर रहा है। इन कारणों में सबसे बड़ा कारण स्वास्थ्य और यहां के खराब हवा-पानी से उपजा प्रदूषण है। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में रह रहे लोगों में ये ट्रेंड खास तौर पर देखने को मिल रहा है।

क्या कहते हैं आंकड़े

अंग्रेजी अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने इस बारे में एक सर्वे किया। सर्वे के मुताबिक, भारत के महानगरों से पलायन करने वाले करीब 80 फीसददी लोगों का यही कहना था कि उनके पलायन की वजह वे जिन शहरों में रहते थे वहां बहुत ज्यादा प्रदूषण था। वे ये भी कहते हैं कि वहां उनके पास एक अच्छी नौकरी थी इसलिए वे रहने को मजबूर थे नहीं तो पहले ही वे वहां से पलायन कर जाते।  प्रदूषण को लेकर किए गए एक दूसरे सर्वे में 17,000 लोगों में से 40 प्रतिशत ने एनसीआर क्षेत्र को छोड़कर कहीं और बसने के विकल्प को चुना।

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020  की रिपोर्ट के अनुसार,  दुनिया भर में वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली नवजात शिशुओं की मौत में से 24 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं। दुनिया भर में सालाना पीएम 2.5 की वजह से होने वाली 65 लाख मौतों में भी करीब 10 लाख मौतें अकेले भारत में होती हैं। वायु प्रदूषण की बात करें तो दुनिया के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 9 भारत में हैं।

घातक है दोतरफा पलायन

विशेषज्ञ मानते हैं कि, पलायन का ये दोतरफा ट्रेंड एक चिंताजनक स्थिति है। सबसे पहले, ग्रामीण इलाकों या छोटे शहरों से आने वाले लोगों के लिए शहरों में मौजूद प्रदूषण संकट, इन लोगों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। वे लोग न सिर्फ बेहद खराब  जहरीली हवा के संपर्क में आ रहे हैं  बल्कि इनके साथ बड़ी समस्या ये भी है कि वे आर्थिक रूप से कमजोर हैं और इलाज का खर्च भी नहीं उठा सकते।

वहीं दूसरी तरफ,  आबादी का एक ऐसा हिस्सा है जो आर्थिक रूप से संपन्न है। ये शहरी जीवन में रहने के आदी हैं और वो ऐसे ग्रामीण इलाकों में रहने जा रहे हैं  जहां इंफ्रास्टक्चर की कमी है। यहां उन्हें बिजली, पानी और वेस्ट मैनेजमेंट जैसी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अगर ये लोग ग्रामीण इलाकों में जाकर रहते हैं, तो इससे इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास होना शुरू होगा और इसका परिणाम होगा,  ज्यादा प्रदूषण, स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं और ये पूरा चक्र फिर से रिपीट होगा जिससे छुटकारे के लिए वे गांवों की तरफ गए हैं।

क्या कोई समाधान है?

विशेषज्ञ मानते हैं कि, रिवर्स माइग्रेशन की समस्या सिर्फ भारत के बड़े शहरों तक सीमित नहीं है बल्कि दुनिया के तमाम देशों में ये देखने को मिल रहा है। कोरोना काल ने वर्क फ्रॉम होम का जो विकल्प दिया उसने भी एक नई तरह की कार्यशैली को जन्म दिया है। लोग महंगे और प्रदूषित जगहों के मुकाबले साफसुथरी जगहों पर बसना पसंद कर रहे हैं। ग्लोबल हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार, बड़े शहरों से उद्योगों को बाहर भेजना, फॉरेस्ट कवर का विकास, बिजली चालित वाहनों के उपयोग के अलावा बहुत जरूरी है कि शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर के हिसाब से ही रिहाइश और बसावट की इजाजत दी जानी चाहिए।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

Print Friendly, PDF & Email
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments