रिटायर होने के तुरंत बाद निजी क्षेत्र में अफसरों की नौकरी गंभीर कदाचार :सीवीसी

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न्यूज़ डेस्क / एजेंसी (गणतंत्र भारत) नई दिल्ली :  केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने सरकारी अधिकारियों का रिटायर होने के तुरंत बाद निजी क्षेत्र में नौकरी करना चिंता की विषय है। आयोग ने साफ किया कि सेवानिवृत्त अधिकारियों का अनिवार्य ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ पूरा किए बिना निजी क्षेत्र में नौकरी स्वीकार करना गंभीर कदाचार का मामला है। आयोग ने ये भी कहा कि सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारियों को फिर से नौकरी की पेशकश पारदर्शी होनी चाहिए। इसके तहत उन लोगों को समान अवसर मिलना चाहिए जो उस पद के लिए अपनी सेवा देने को तैयार हैं।

आदेश ने अपने आदेश में कहा है कि, सभी सरकारी संगठनों को अपने कर्मचारियों के लिए उचित नियम और दिशानिर्देश तैयार करने चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि कर्मचारियों द्वारा सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद निजी क्षेत्र की संस्थाओं के किसी भी प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार ना किया जाए।

आयोग ने आदेश में कहा कि केंद्र सरकार के सभी संगठनों को सेवानिवृत्ति के बाद रोजगार देने से पहले सतर्कता विभाग से अनिवार्य रूप से मंजूरी लेनी चाहिए। आयोग ने ये भी कहा कि अगर किसी सेवानिवृत्त अधिकारी ने एक से अधिक संगठन में काम किया है, तो उन सभी संगठनों से सतर्कता संबंधी मंजूरी प्राप्त की जानी चाहिए जहां अधिकारी ने पिछले 10 वर्षों में सेवा दी थी।

आदेश में कहा गया कि अफसरों को सेवानिवृत्ति के बाद नौकरी देने से पहले सभी सरकारी संगठनों को अनिवार्य रूप से सतर्कता मंजूरी लेनी चाहिए। आयोग ने केंद्र सरकार के सभी विभागों के सचिवों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रमुखों और सार्वजनिक उपक्रमों को जारी आदेश में कहा कि, देखा गया है कि कुछ मामलों में सरकारी संगठनों से सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सेवानिवृत्त अधिकारी निजी क्षेत्र के संगठनों में पूर्णकालिक या फिर कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं। अक्सर इस तरह की पेशकश को स्वीकर करने से पहले संबंधित संगठनों के नियमों के तहत सेवानिवृत्ति के बाद कुछ अवधि के लिए कोई पद नहीं लेने की व्यवस्था का पालन नहीं किया जाता है, जो गंभीर कदाचार का मामला है।

आयोग के अनुसार, ऐसा देखा गया है कि सरकारी संगठनों द्वारा सेवानिवृत्त अधिकारियों को नियुक्त करने से पहले सतर्कता मंजूरी प्राप्त करने के लिए एक समान परिभाषित प्रक्रिया के अभाव में कभी-कभी ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है जहां अपने कार्यकाल के दौरान गड़बड़ी में लिप्त रहे अथवा जिनके खिलाफ मामले लंबित हैं, ऐसे अधिकारियों को सरकारी संगठनों में नियुक्त कर दिया जाता है। आयोग ने कहा कि ऐसी स्थिति से न केवल अनावश्यक शिकायतों या पक्षपात के आरोप लगते हैं  बल्कि ये निष्पक्षता और ईमानदारी के सिद्धांतों के खिलाफ भी है।

आयोग का कहना है कि नियोक्ता से पंद्रह दिन के भीतर जवाब नहीं मिलने पर सतर्कता मंजूरी में तेजी लाने के लिए उसे एक रिमाइंडर भेजा जा सकता है। 21 दिनों के भीतर नियोक्ता से किसी तरह का जवाब नहीं मिलने पर इसे संबंधित व्यक्ति के लिए डीम्ड विजिलेंस क्लीयरेंस माना जा सकता है।  आयोग ने कहा कि, बाद में ये पता चलने पर कि पूर्व कर्मचारी सतर्कता संबंधी किसी मामले में शामिल था नियोक्ता संगठन सभी तरह की गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होगा।

आयोग का ये आदेश केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, बैंकों और बीमा क्षेत्र के लिए अनिवार्य है।

फोटो सौजन्य़- सोशल मीडिया

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