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सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर…नए जमाने के नए ‘ब्रांड अंबेसेडर’…!

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी ) : गीतिका खुद को एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बताती हैं। उनका कहना है कि, भारत में जिस तरह से डिजिटल माध्यमों का प्रभाव बढ़ रहा है वैसे में चुनाव हों या उत्पाद सभी के लिए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों की तलाश की जाती है। ये कोई भी हो सकता है, कोई व्यक्ति या फिर कोई संस्था। उनके अनुसार, आजकल थोड़ी सी फॉलोइंग वाला शख्स भी खुद को इन्फ्लुएंसर बताता है। वो कितना प्रभावी होता है ये तो पता नहीं लेकिन इससे रोजगार के नए मौके जरूर पैदा हो रहे हैं।

गीतिका की बात में दम है। भारतीय उपभोक्ताओं पर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 90 फीसदी लोगों ने कोई चीज इसलिए खरीदी क्योंकि किसी इन्फ्लुएंसर ने उसकी सिफारिश की थी। एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया की ताजा सालाना रिपोर्ट में भारत में विज्ञापन और उपभोक्ता के आपसी संबंधों के बारे में कई दिलचस्प जानकारियां सामने आई है। रिपोर्ट कहती है कि हर दस में से सात उपभोक्ता इन्फ्लुएंसर की सिफारिश पर अमल करते हैं जबकि जिन लोगों ने सर्वे में हिस्सा लिया उनमें से 90 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्होंने कम से कम एक चीज ऐसी खरीदी जिसे किसी इन्फ्लुएंसर ने प्रमोट किया था।

रिपोर्ट के लिए देश के 18 छोटे-बड़े शहरों में सर्वे किया गया और इसे इन्फ्लुएंसर ट्रस्ट रिपोर्ट का नाम दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार, इन्फ्लुएंसर की सिफारिशों के असर का सबसे अहम कारण ब्रैंड के साथ जुड़ाव के मामले में पारदर्शिता और ईमानदारी रही। दूसरे नंबर पर, उत्पाद से जुड़े निजी अनुभवों को साझा करना रहा। सर्वे में ये जानकारी भी सामने आई कि, पारदर्शिता की कमी, सामग्री का दोहराव और जरूरत से ज्यादा प्रमोशन उपभोक्ताओं पर बुरा असर डालता है और वे उत्पाद से दूर हो जाते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, उत्पाद बेचने के लिए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और ब्रैंड्स के बीच हो रही साझेदारियों का फायदा दोनों को ही हो रहा है। सर्वे में शामिल 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि ब्रैंड से जुड़ने पर कोई इन्फ्लुएंसर ज्यादा विश्वसनीय हो जाता है जबकि 64 फीसदी उपभोक्ताओं का मानना था कि किसी इंफ्लुएंसर से जुड़ने पर ब्रैंड ज्यादा भरोसेमंद हो जाता है। सर्वे की रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि 91 फीसदी भारतीय उपभोक्ता विज्ञापनों पर भऱोसा करते हैं।

इन्फ्लुएंसर से प्रभावित होने वालों में 25 से 44 वर्ष की उम्र के बीच के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा थी। इन्फ्लुएंसर के प्रभाव का फायदा स्थापित कंपनियों को ही नहीं नए ब्रैंड्स को भी हुआ है। नए उत्पादों को बड़ी संख्या में लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए ही खोजा है।

बदला समय तो तरीका भी बदला

एक दशक पहले सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर नाम का कोई पेशा या उद्योग भारतीय बाजार में मौजूद नहीं था। उस वक्त फिल्म और क्रिकेट के सितारे ही उपभोक्ता बाजार में सबसे बड़े इन्फ्लुएंसर हुआ करते थे और वो भी टेलीविजन स्क्रीन या अखबारों और पत्रिकाओं के माध्यम से। अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, अजय देवगन, दीपिका पादुकोण, ऐश्वर्या राय और अक्षय कुमार जैसे फिल्मी सितारे आज भी टेलीविजन स्क्रीन पर ब्रांड इंडोर्समेंट का काम कर रहे हैं। कपिल देव, सुनील गावस्कर, दिलीप वेंगसारकर, महेंद्र सिंह धोनी और मौजूदा दौर में विराट कोहली भी काफी सक्रिय रहे। लेकिन, सोशल मीडिया पर इन सितारों का बड़ी फॉलोइंग होने के बाद भी वे इन प्लेटफ़ॉर्म्स पर इन्फ्लुएंसर की तरह से कभी भी नजर नहीं आए।

आज बड़े-बड़े ब्रांड सोशल मीडिया पर अपने उत्पाद के प्रमोशन के लिए भरसक कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए वे बड़े नामों और सितारों के बजाए उन लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं जो सोशल मीडिया पर भारी फैन फ़़ॉलोइंग रखते हैं और उनका साथ किसी भी ब्रांड को पंख लगा सकता हो। लेकिन सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसरों को लेकर कुछ सवाल भी हैं।

सोशल मीडिया से संबंधित कानूनों के जानकार मेहताब जी कहते हैं कि, सोशल मीडिया की विश्वसनीयता को लेकर अभी भी उपभोक्ता के मन में कई तरह के सवाल हैं। सोशल मीडिया वैचारिक ध्रुवीकरण के दौर में जा रहा है और इसका सीधा असर उत्पादों पर भी पड़ रहा है। वे बताते हैं कि, पतंजलि के उत्पादों को ही लीजिए, बाबा रामदेव पर उठते सवालों ने उनके ब्रांडों को लेकर भी उपभोक्ता के मन में एक प्रतिक्रिया पैदा की। बहुत से लोग रामदेव को नापसंद करने लगे तो पतंजलि के उत्पादों से भी उनका मन खट्टा हो गया।

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों के लिए एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ने 2021 में एक गाइडलाइन जारी की थी। अब भारत सरकार ने सोशल मीडिया को रेग्युलेट करने के क्रम में इन्फ्लुएंसरों के लिए नियमावली बनाने की तैयारी कर ली है। नए कानूनों में इन सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों के लिए अपना पंजीकरण कराना जरूरी होगा। यहीं नहीं, नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में भी ऐसे प्रवाधान किए गए हैं कि सोशल मीडिया पर भ्रामक विज्ञापनों को उपभोक्ता से छल की श्रेणी में रखते हुए कार्रवाई की जा सकेगी।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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