नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : क्या दुनिया में भुखमरी की समस्या आने वाली है। अनुमान के अनुसार इस दशक के आखिर तक दुनिया की आबादी 11 अरब तक पहंचने वाली है और इतनी बड़ी आबादी के लिए खाद्यान्न की व्यवस्था कर पाना दुनिया के देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनने वाली है। यहां ये बात भी गौर करने वाली है कि अमेरिका दुनिया का वो देश है जहां सबसे ज्यादा भोजन की बर्बादी होती है और उसके बाद नंबर आता है भारत जैसे विकासशील देश का जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा दोनों वक्त की रोटी को तरसता है।
भारत के लिए बड़ी चुनौती
भारत जैसे देश के लिए ये चुनौती कहीं बड़ी है। अनुमान के अनुसार, भारत की आबादी अगले चार दशकों में करीब पौने दो अरब तक पहुंच जाएगी। खेती की भूमि लगातार कम होती जा रही है और किसान खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र में इस विषय पर अमेरिकी प्रोफेसर क्रिस्टोफर बैरेट ने अपने भाषण में इस विषय पर चिंता जताते हुए दुनिया के देशों को आगाह किया। उन्होंने कहा कि, आने वाले वक़्त में इंसान के सामने सबसे बड़ी चुनौती खाद्य संकट से निपटने की होगी। ये इंसान के लिए अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई से कम नहीं होगी क्योंकि जल, ज़मीन और समुद्री संसाधन तो कम से कमतर होते जाएंगे।
हरित क्रांति की जरूरत
ऐसा नहीं है कि दुनिया के देशों को इस समस्या की भनक नहीं थी। 1960 के दशक में ही
हरित क्रांति जैसे अभियान शुरू हुए और खाद्यान्न संकट की तरफ सभी देसों का ध्यान गया। इसी दशक में अमेरिका में कोलंबिया इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर की स्थापना की गई जो भविष्य में खाद्यान्न की जरूरतों के अध्ययन के लिए ही बनाया गया था।
हरित क्रांति का नतीजा ये हुआ कि 1950 से लेकर 1990 के बीच वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न का उत्पादन 174 फ़ीसदी तक बढ़ गया जबकि इस दौरान आबादी में 110 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई। विश्व बैंक के अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान केवल भारत में 1965 से लेकर 1973 के बीच गेहूं का उत्पादन सात फ़ीसदी तक बढ़ा और धान का 18 फ़ीसदी तक बढ़ गया। उन्नत किस्म के बीज की खोज कर गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए डॉक्टर नॉर्मन बरलॉग को 1970 का नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया। भारत के पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाक़ों में किसानों ने डॉक्टर बरलॉग के दिखाए रास्ते पर काम किया और फ़सल की पैदावार बढ़ाई।
इस दौरान, वैज्ञानिकों, सरकारों और संस्थाओं ने फ़ैसला किया कि पैदावार बढ़ाने के उपायों पर काम करना होगा और इसके लिए एक ठोस रणनीति बनानी जरूरी थी। वैज्ञानिकों ने खेती के पारंपरिक तरीकों में बदलाव करने के साथ-साथ क्रॉस ब्रीडिंग कर उन्नत किस्मों के बीजों की तलाश शुरू की। इसी कोशिश को हरित क्रांति का नाम दिया गया। कोशिश सिर्फ अनाज के बड़े आकार के दानों को खोजने भर की नहीं थी बल्कि फ़सलों की बेहतर किस्मों के अलावा ऐसे पौधों की तलाश भी थी जो बड़े और अधिक दानों का बोझ उठा सकते हों। नतीजा समाने था दस साल के भीतर अनाज का उत्पादन दोगुना हो गया।
क्या करना होगा
विशेषज्ञ मानते हैं कि अब हरित क्रांति के दौर वाले हालात नहीं हैं। खेती की जमीन कम हो रही है। जलवायु में बदलाव खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा है। बाढ़, सूखा और अतिवृष्टि से खेती पर बुरा असर पड़ रहा है। जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है और खाद्यान्न की जरूरतें भी बढ़ रही हैं।
कृषि पर संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, दुनिया के देशों को खाद्यान्न संकट से बचने के लिए दो तरह के कदम फौरन उठाने की जरूरत है। पहला, वातावरण में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग जैसे मसलों से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं ताकि खेती को वातावरण के रौद्र रूप से बचाने में मदद मिल सके। रिपोर्ट नें ये सुझाव भी दिया गया है कि खेतों में खाद और रसायनों के इस्तेमाल में संतुलन होना चाहिए ताकि भविष्य में खेतों को बंजर होने से बचाया जा सके।
इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल सस्टेनेबल गोल में दुनिया के देशों में भोजन की बर्बादी को साल 2030 तक आधा करने का लक्ष्य रखा गया है। इससे काफी मात्रा में अनाज की बचत की जा सकेगी। रिपोर्ट में अमेरिका और भारत जैसे देशों को भोजन की बर्बादी को रोकने के लिए फौरी तौर पर कदम उठाने की सलाह दी गई है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया