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केजरीवाल की ‘फ्री बिजली’ क्यों बनी ‘वैकल्पिक’, क्या हैं, कारण और शंकाएं ?

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए लेखराज): मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त इलाज जैसी सरकारी घोषणाएं सुनने में तो अच्छी लगती हैं लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए ऐसे चुनावी हथकंडे बहुत भारी पड़ते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कैबिनेट ने अचानक एक अहम फैसला लिया। फैसले में दिल्ली में दी जाने वाली बिजली सब्सिडी को वैकल्पिक बनाने का प्रस्ताव पास कर दिया गया। यानी दिल्ली में अब जो मुफ्त बिजली लेना चाहेगा उसे ही मुफ्त बिजली दी जाएगी। ये फैसला एक अक्टूबर से लागू होगा।

सवाल ये है कि अरविंद केजरीवाल की इस वैकल्पिक सुविधा के असल मायने क्या हैं और कहीं ये पहले आजमाए जा चुके बीजेपी के फार्मूले ‘से नो टू गैस सब्सिडी’ का नया अवतार तो नहीं ?

सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा क्या ?

क्या कहा केजरीवाल ने   

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, मेरे पास कई लोगों के सुझाव आते हैं, चिट्ठियां आती हैं। कई लोगों से जब मैं मिलता हूँ तो उनके सुझाव आते हैं कि आप हमें मुफ़्त बिजली देते हैं, लेकिन हममें से कुछ लोग सक्षम हैं और हम आपकी सब्सिडी नहीं लेना चाहते। लोग कहते हैं कि आप इस पैसे को कहीं स्कूल और अस्पताल में लगा सकते हैं।

केजरीवाल ने आगे कहा कि, इसलिए हमने तय किया है कि हम लोगों को विकल्प देंगे, हम लोगों से पूछेंगे कि क्या आपको बिजली की सब्सिडी चाहिए। अगर कोई कहेगा कि हमें चाहिए तो देंगे और कहेगा कि नहीं चाहिए तो नहीं देंगे।

दिल्ली में बिजली का गुणा-भाग

अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस  ने बिजली सब्सिडी से संबधित केजरीवाल सरकार की इस पहल पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि, दिल्ली में कुल 5818231 बिजली उपभोक्ता हैं। बिजली सब्सिडी कुल पांच श्रेणियों में दी गई है जिसमें घरेलू उपभोक्ता करीब 46 लाख, और 10 लाख कृषि उपभोक्ता के अलावा,  सिख विरोधी दंगों के पीड़ित और वकील शामिल हैं। इस तरह कुल 4716075 उपभोक्ताओं को दिल्ली में बिजली सब्सिडी दी जाती है।

दिल्ली में फ़िलहाल हर महीने 200 यूनिट तक उपभोग करने पर 100 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। दिल्ली के लगभग 3039766 उपभोक्ता इस श्रेणी में आते हैं। 201-400 यूनिट खपत पर 800 रुपए सब्सिडी मिलती है और इसके लगभग 1659976 उपभोक्ता हैं। 400 यूनिट खपत के बाद कोई सब्सिडी नहीं मिलती। बिजली सब्सिडी पर सरकार का खर्च 2015-16  के मुकाबले 2022-23 तक 125.26 प्रतिशत तक बढ़ गया है। 2015-16 में सरकार ने सब्सिडी के लिए कुल 1442.76 करोड़ रुपए दिए थे जो 2020-21 में बढ़कर 2939.99 करोड़ रुपए हो गए। 2022-23 के लिए राज्य सरकार ने सब्सिडी के लिए 3250 करोड़ रुपयों का प्रावधान रखा है। दिल्ली में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या में 2011 से 2021 के बीच 82.79 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसका सीधा सा मतलब ये है कि हर साल उपभोक्ताओं की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है और अगर सरकार को बिजली सब्सिडी जारी रखनी है तो इसके लिए और ज़्यादा पैसों की ज़रूरत होगी।

बिजली का भार अब पड़ने लगा भारी

दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आने से पहले ही फ्री बिजली-पानी जैसे चुनावी वादे किए थे और दिल्ली के वोटरो को रिझाने में मुफ्त में बंटने वाली इन सुविधाओं का भी बहुत बड़ा हाथ था। यही हाल पंजाब में हाल के चुनावों में पार्टी की जीत में भी रहा। यहां भी मुफ्त बिजली का वादा पार्टी ने किया है। दिल्ली में बिजली उपभोक्ता के साथ खपत में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। सरकार के लिए ऐसे चुनावी वादों पर लगातार अमल करते रह पाना मुश्किल काम होता है। जनता भी मुफ्त में मिलने वाली ऐसी सुविधाओं का बेजा फायदा उठाने से नहीं चूकती। दिल्ली में करोल बाग के व्यापारी राजेश कपूर के अनुसार, दिल्ली में पहले जहां एक संयुक्त परिवार में एक बिजली मीटर हुआ करता था वहीं अब आपको हर फ्लोर पर बच्चों के नाम से अलग- अलग बिजली मीटर लगे मिलेंगे ताकि बिजली की खपत को बांटा जा सके और सब्सिडी का लाभ लिया जा सके। कपूर कहते हैं कि, इसे मुफ्त बिजली के खात्मे की शुरुवात मानो। ऐसे ही मोदी सरकार ने गैस पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म किया था। उसके लिए तो बाकयदा टीवी पर विज्ञापन भी चले थे। कागजों में तो शायद आज भी सब्सिडी जारी है लेकिन वो किसी को मिलती है ऐसा तो कोई मिला नहीं। कपूर कहते हैं कि, वहां भी गैस पर मिलने मिलने वाली सब्सिडी को पहले वैकल्पिक बनाया गया, फिर गायब कर दिया गया।

पंजाब में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रमनदीप सिंह के अनुसार, विकासशील अर्थव्यवस्था में  सब्सिडी को रेशनलाइज करने और जरूरतमंद को देने की जरूरत होती है लेकिन भारत में इसका जिस तरह से गलत इस्तेमाल हो रहा है उससे कहीं मुफ्त बिजली को कही मुफ्त राशन के लिए कतार लगाने वाले लाभार्थी वर्ग को ही बढ़ावा मिलेगा और उसका खामियाजा समाज के एक बड़े तबके को झेलना ही पड़ेगा।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया   

 

 

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