नई दिल्ली, 02 सितंबर (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : डायबिटीज की चपेट में आए लोगों के साथ ही आम लोग भी अब चीनी के खतरों को समझते हुए इससे धीरे-धीरे ही सही, दूरी बना रहे हैं तो वैज्ञानिक इसके सुरक्षित विकल्पों की खोज में जुटे हुए हैं।
स्टीविया आदि के साथ ही शुगर का एक सुरक्षित विकल्प जाइलिटोल है, लेकिन अभी इसका उत्पादन काफी महंगा पड़ता है और ये आम लोगों की पहुंच से दूर ही रहता है। ये औद्योगिक रूप से एक रासायनिक प्रतिक्रिया के जरिए बनाया जाता है। इसके तहत लकड़ी से प्राप्त डी-जाइलोस को बहुत अधिक तापमान और दबाव पर उत्प्रेरक (निकल) के साथ उपचारित किया जाता है। डी-जाइलोस एक बहुत महंगा रसायन है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा की भी अत्यधिक खपत होती है। इसमें जाइलोस की केवल 08-15% मात्रा ही जाइलिटोल में परिवर्तित होती है और व्यापक पृथक्करण और शुद्धि की आवश्यकता होती है, जो इसकी कीमत को बढ़ा देते हैं।
इस दिक्कत का समाधान आईआईटी, गुवाहाटी के साइंटिस्ट्स ने निकाला है। उन्होंने गन्ने की खोई (गन्ने की पेराई के बाद बचे अवशेष) से जाइलिटोल नाम के चीनी के सुरक्षित विकल्प का उत्पादन करने के लिए अल्ट्रासाउंड-समर्थित किण्वन (फर्मेंटेशन) विधि विकसित की है। ये विधि, संश्लेषण के रासायनिक तरीकों और पारंपरिक किण्वन में लगने वाले समय को कम कर देती है। इससे चीनी के इस सुरक्षित विकल्प का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है। इस शोध से चीनी से परहेज रखने वालों के साथ ही चीनी मिलों और किसानों को भी फायदा होगा। गन्ने की खोई का भी बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा। जाइलिटोल प्राकृतिक उत्पादों से प्राप्त शुगर अल्कोहल है। इसे एक अच्छा एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-डायबिटिक माना जाता है। इसके साथ ही ये मोटापे को कम करने में मदद कर सकता है। ये एक हल्का प्री-बायोटिक भी है और दांतों के क्षरण को रोकने में मदद करता है।
आईआईटी गुवाहाटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग से जुड़े इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर वी. एस. मोहोलकर कहते हैं कि अल्ट्रासाउंड के उपयोग से पारंपरिक प्रक्रियाओं में लगने वाला लगभग 48 घंटे का किण्वन समय घटकर 15 घंटे रह जाता है। इसके ही जाइलिटोल के उत्पादन में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। किण्वन के दौरान केवल 1.5 घंटे के अल्ट्रासोनिकेशन का उपयोग किया गया। इसका मतलब ये है अधिक अल्ट्रासाउंड पावर की खपत नहीं होती है और जाइलिटोल का उत्पादन कम लागत में बढ़ जाता है। इस शोध से चीनी का बेहतर विकल्प अधिक मात्रा में बनाने में मदद मिलेगी और अधिक से अधिक लोगों को ये मुहैया हो सकेगा।
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