नई दिल्ली, 19 सितंबर (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : दवाओं और मेडिकल डिवाइसेस से जुड़े मामलों को रेगुलेट करने के लिए एक अलग मंत्रालय बनाने की सरकार की योजना पूरी तरह से ठंडे बस्ते में चली गई है। इस मंत्रालय की स्थापना पर सरकार में 2015 में सहमति बनी थी, लेकिन सात साल बाद भी नया मंत्रालय वजूद में नहीं आ पाया है। सूत्रों का कहना है कि फिलहाल इस योजना के परवान चढ़ने के कोई आसार नहीं है, क्योंकि सरकार के पास अभी इतना पैसा नहीं है कि वो एक अलग मंत्रालय के खर्चे वहन कर सके।
गौरतलब है कि दवाओं और मेडिकल डिवाइसेस को मंजूरी देने, इनके रेट तय करने और इन्हें रेगुलेट करने का काम अभी अलग-अलग मंत्रालयों के पास है। हेल्थ वर्कर्स और इंडस्ट्री लंबे अर्से से इन्हें एक मंत्रालय के तहत लाने की मांग कर रहे हैं। इसे देखते हुए ही सरकार ने इसके लिए एक अलग मंत्रालय बनाने का इरादा जताया था।
असली अड़चन कहां है
सूत्र कहते हैं कि इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने में ब्यूरोक्रेसी का अहम रोल है। स्वास्थ्य मंत्रालय और रसायन मंत्रालय के कई अफसर नहीं चाहते हैं कि दवाओं और मेडिकल डिवाइसेस के सेक्टर को रेगुलेट करने का अधिकार उनके हाथ से निकल जाए और उनकी मठाधीशी खत्म हो जाए।
आपको बता दें कि, अभी किसी भी नई दवा और मेडिकल डिवाइस को मंजूरी देने का काम भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल का दफ्तर करता है, लेकिन इनके रेट तय करने का काम उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय की एजेंसी नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग करती है। वो उन दवाओं और डिवाइसेस के दाम तय करती है, जो प्राइस कंट्रोल के दायरे में आती हैं। सरकार ने इस तरह के सारे कामों को एक जगह लाने के के लिए एक अलग मंत्रालय बनाने का इरादा जताया था। उसे देश को बल्क ड्रग्स के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी एक अलग मंत्रालय की जरूरत महसूस हो रही थी। अभी भारत बल्क ड्रग्स के लिए चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है।
पहले भी हो चुकी है कोशिश
यूपीए सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने भी दवाओं और मेडिकल डिवाइसेस के लिए एक अलग मंत्रालय बनाने की कोशिश की थी, मगर वे कामयाब नहीं हो पाए थे।
हेल्थ एक्टिविस्ट्स का कहना है कि अलग मंत्रालय बनने से इस सेक्टर को रेगुलेट करने में आसानी होगी। इसका फायदा फार्मा इंडस्ट्री को भी होगा। उसे अपने कामों के लिए अलग-अलग मंत्रालयों या विभागों में दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी और नई दवाओं और मेडिकल डिवाइसेस के विकास में मदद मिलेगी।
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