जयपुर (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : गुजरात विधानसभा के चुनावों में बीजेपी की बंपर जीत और कांग्रेस की करारी हार ने राजस्थान कांग्रेस में भी हलचल तेज कर दी है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा इस समय राजस्थान से ही गुजर रही है और सोनिया गांधी का जन्मदिन मनाने के सिलसिले में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी भी उनके साथ रणथंभौर में मौजूद हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भी रणथंभौर जाने की चर्चा है। कय़ास लगाए जा रहे हैं कि, तमाम दिग्गजों की एक जगह मौजूदगी राज्य़ के राजनीतिक भविष्य पर चर्चा को एक आरंभ दे सकती है
गुजरात विधानसभा के चुनावों की कमान कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी नेता रघु शर्मा ने संभाल रखी थी। राहुल गांधी समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता वहां के प्रचार अभियान से खुद को अलग रखे हुए थे। ऐसे में पार्टी के मटियामेटी प्रदर्शन का ठीकरा किस पर कहां फूटेगा ये सवाल तो है। सवाल ये भी है कि, गुजरात में बीजेपी के इस प्रदर्शन का कितना असर अगले साल राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों पर देखने को मिलेगा। बड़ा प्रश्न राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट की लड़ाई पर क्या गुजरात का वाकया कुछ असर दिखा पाएगा, ये भी है ?
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार गुजरात में रिकॉर्ड जीत हासिल की है। पार्टी ने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए 150 सीट का आंकड़ा आसानी से पार कर लिया और 156 सीटों पर जीत दर्ज कर ली। हालांकि, 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने उसे यहां डेंट देने की कोशिश की थी। इन चुनावों में बीजपी को 99 और कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं। कांग्रेस के प्रदर्शन में अशोक गहलोत की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनके उसी राजनीतिक कौशल की वजह से उन्हें इस बार भी गुजरात में पार्टी का बेड़़ा पार लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
गुजरात के पांच जिले हैं जो राजस्थान से लगते हैं – बनास कांठा, साबर कांठा, पंचमहल, महीसागर और दाहोद। इन जिलों में कुल 30 विधानसभा सीटें हैं। इन सीटों पर राजस्थान की राजनीतिक हवा के ताप को महसूस किया जाता है। लेकिन इस बार के चुनावों में इन 30 सीटों में से 22 पर बीजेपी जीती है जबकि 6 कांग्रेस और 2 सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के हाथ लगीं हैं।
इन जिलों में अगर बनास कांठा को छोड़ दें, जहां कांग्रेस ने नौ विधानसभा सीटों में से चार सीट अपने नाम की हैं तो पार्टी का प्रदर्शन इन पांच जिलों में कहीं भी संतोषजनक नहीं रहा। बनास कांठा जिले में ही वडगाम विधानसभा सीट आती है जहां से कांग्रेस के बड़े नेता जिग्नेश मेवाणी आते हैं। जिग्नेश मेवाणी खुद अपनी सीट केवल 4,928 वोटों से जीत पाए।
क्या फेल हो गय़ा गहलोत का प्रबंधन ?
गुजरात में कांग्रेस का प्रबंधन अशोक गहलोत और रघु शर्मा के हाथों में था। जाहिर है, पार्टी के दयनीय प्रदर्शन के लिए देर सबेर जिम्मेदार तो इन्हें ही ठहराया जाएगा। वैसे अशोक गहलोत को सुलझा हुआ राजनेता माना जाता है लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नामित होने बावजूद खुद को रेस से अलग करने और सचिन पायलट के लिए गद्दार जैसे शब्दों के इस्तेमाल ने पार्टी में उनके कद और गरिमा को कम किया है। अशोक गहलोत विधायकों के समर्थन का कितना भी दम भर लें लेकिन पार्टी आलाकमान के दिशानिर्देशों से अलग जाना उनके राजनीतिक करियर के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार मैथ्यू जॉर्ज के अनुसार, गुजरात के नतीजों से राजस्थान की राजनीति पर असर होगा। गहलोत का कद कम हुआ है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भी इन दिनों राजस्थान में है और इस दौरान किसी तरह की उठापटक पार्टी भी नहीं चाहेगी। लेकिन आने वाले दिनों में कुछ न कुछ होना तय है। अगले साल राज्य में चुनाव हैं पार्टी की कोशिश आपसी समझदारी से मामले को निपटाने की होगी लेकिन बात नहीं बनी तो कठोर संदेश भी दिया जा सकता है।
चुनावों में सचिन पाय़लट का कद बढ़ाया
अशोक गहलोत के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी सचिन पायलट को हिमाचल प्रदेश का ऑब्जर्वर बनाया था जहां पार्टी ने शानदार जीत हासिल कर सत्ता में वापसी की है। इससे पायलट का राजनीतिक कद निश्चित रूप से बढ़ा है। पार्टी नेता और कांग्रेस की राजनीति में प्रिय़ंका गांधी के सबसे मुखर पैरोकार आचार्य प्रमोद कृष्णम ने इशारों-इशारों में अशोक गहलोत पर निशाना साधते हुए ट्वीट करते हुए लिखा कि, युवा नेता सचिन पायलट हिमाचल के ऑब्जर्बर थे और हमारे अनुभवी नेता अशोक गहलोत जी गुजरात के। आगे मुझे कुछ नहीं कहना।
युवा नेता @SachinPilot हिमाचल के ऑब्ज़र्बर थे और हमारे अनुभवी नेता @ashokgehlot51 जी “गुजरात” के, आगे मुझे कुछ नहीं कहना.
— Acharya Pramod (@AcharyaPramodk) December 8, 2022
मैथ्यू जॉर्ज कहते हैं कि, अशोक गहलोत राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। संभव है कि वे अपने लिए कोई असहज स्थिति पैदा ही न होने दें और बड़ा दिल दिखाते हुए कोई रास्ता निकाल लें लेकिन सचिन पाय़लट अगर बागडोर पाने में कामयाब हो भी जाते हैं तो भी उन्हें फिलहाल गहलोत कैंप के अधिकतर विधायकों के बीच ही काम करना होगा और ये उनके लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं।
फोटो सौजन्य़- सोशल मीडिया