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पोल खोल : जानिए, बिलकिस केस में S.C. की बेहद अहम टिप्पणियों को…

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : जो बात अब तक दब –छिप कर उजागर हो रही थी आखिरकार खुलकर सामने आ ही गई। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को बिलकिस बानो के बलात्कारियों और उन हत्यारों की रिहाई के मामले पर बहस हुई जिन पर गैंग रेप के अलावा 14 लोगों की हत्या का आरोप भी सिद्ध हुआ था। गुजरात सरकार ने आरोपिय़ों के अच्छे आचरण का हवाला देते हुए जेल से इनकी रिहाई के आदेश दिए थे। पहले तो केंद्र सरकार इस मामले से पल्ला झाड़ती रही और दलील देती रही कि गुजरात सरकार की फैसले पर गृह मंत्रालय ने सिर्फ रजामंदी दी थी। लेकिन मंगलवार की बहस में ये साफ हो गया कि रिहाई की पूरी पटकथा लिखने में केंद्र सरकार का भी उतना ही हाथ था जितना राज्य सरकार का। यानी सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार और गुजरात सरकार को नोटिस जारी करते हुए उन फाइलों को अदालत में तलब किया था जिनके आधार पर बलात्कारियों और हत्यारों के अच्छे आचरण को प्रमाणित किया गय़ा था और जो उनकी रिहाई का आधार बने थे।

सुप्रीम कोर्ट में फाइल तो नहीं आई अलबत्ता एक नया झुनझुना आदालत के सामने पेश कर दिया गया कि सरकार के पास उन फाइलों को लेकर कुछ विशेषाधिकार हैं और सरकार अदालती  आदेश पर पुनर्विचार के लिए अपील करेगी। यानी सरकार की मंशा साफ है कि वो उन फाइलों को सुप्रीम कोर्ट में दिखाने से बचना चाह रही है।

अदालत की तल्ख टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट में मामला जस्टिस के.एम. जोसेफ और बी. वी. नागरत्ना की पीठ सुन रही थी जबकि केंद्र सरकार का पक्ष रखने के लिए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू उपस्थित थे। मामले की शुरुवात ही अदालत की इस टिप्पणी के साथ हुई कि विचाराधीन अपराध भयानक था और इसकी तुलना हत्या के किसी आम मामले या सिर्फ 302 के मुजरिम के रूप में नहीं की जा सकती। एक गर्भवती औरत के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और दुधमुंहे बच्चे समेत 14 लोगों की हत्या की गई। अदालत ये जानना चाहती है कि इन 11 अपराधियो की रिहाई का आदेश देते समय सरकार ने दिमाग का इस्तेमाल किया भी या नहीं ? अदालत ने पूछा कि क्या सेब और संतरे की तुलना की जा सकती है ?

शीर्ष अदालत की पीठ ने आगे कहा कि,  जैसे आप सेब की तुलना संतरे से नहीं कर सकते, उसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती। अपराध आम तौर पर समाज और समुदाय के खिलाफ किए जाते हैं। असमान लोगों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि, अदालत ये देखने में रुचि रखती है कि कानूनी रूप से किन शक्तियों का प्रयोग किया गया और उसके लिए यदि आप हमें कारण नहीं बताते हैं, तो अदालत निष्कर्ष निकालने के लिए स्वतंत्र है।

सुनवाई के दौरान, एडिशिनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि फाइलें उनके पास मंगलवार को ही आईं। उन्होंने कहा कि, मुझे फाइल देखने दीजिए और मैं अगले हफ्ते इस पर वापस आऊंगा।

इसके जवाब में जस्टिस जोसेफ ने एडिशिनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा कि, आपने पूरी तरह से कानूनी काम किया है, डरने की कोई बात नहीं है… सामान्य मामलों में छूट का अनुदान न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं होगा।

पीठ ने अदालत में फाइल पेश न करने को लेकर बहुत गंभीर टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि, आपने आज फाइल पेश न करके अदालत की अवमानना की है। अदालत  ने पूछा कि सरकार फाइल दिखाने से क्यों झिझक रही है ? इस पर अदालत को बताया गया कि, सरकार इस मामले में विशेषाधिकार की मांग करते हुए फाइल पेश करने के आदेश की न्यायिक समीक्षा में जाना चाहती है।

पीठ ने इस पर सवाल किया कि अब तक आपने न्यायिक समीक्षा के लिए कोई याचिका क्यों दाखिल नहीं की। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि सरकार अगले हफ्ते तक इस मामले में कोई फैसला ले लेगी।

दोषियों को 1000 से 1500 दिनों की पैरोल दी गई थी

सुनवाई के दौरान पीठ ने कई जानकारियों को सामने रखते हुए बहुत ही कठोर टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि, मामले से जुड़े अपराधियों को कम से कम 1000 दिनों की पैरोल दी गई। एक अपराधी तो 1500 दिनों की पैरोल ले चुका था। अदालत ने पूछा कि क्या इसी आधार पर उनको रिहा करने का आदेश दिया गया।

जस्टिस जोसेफ ने सवाल किया कि, क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया, किस सामग्री को अपने निर्णय का आधार बनाया ? उन्होंने कहा न्यायिक आदेश में दोषियों को उनके प्राकृतिक जीवन के लिए जेल में रहने की आवश्यकता है। वे (कार्यकारी) आदेश द्वारा रिहा किए गए थे। उन्होंने आगे कहा कि, आज ये महिला (बिलकिस) है। कल, ये आप या मैं भी हो सकते हैं। फिर आप कौन से मानक लागू करेंगे… क्या कोई वस्तुनिष्ठ मानक निर्धारित हैं ?

2 मई को अंतिम सुनवाई 

सुप्रीम कोर्ट की पीठ बिलकिस बानो मामले में जेल की सजा काट रहे 11 दोषियों की रिहाई  को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इन याचिकाओं में पीड़िता बिलकिस बानो की याचिका भी शामिल है। पीठ ने अंतिम निस्तारण के लिए इस मामले को 2 मई के लिए सूचीबद्ध किया है और सभी पक्षों से एक मई तक अदालत के समझ अपना जवाबी हलफनामे को पेश करने को कहा है।

क्या है मामला ?

बिलकिस बानो का मामला गुजरात के दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका का है। 3 मार्च 2002 को 11 दंगाइयों ने 21 साल की बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया। उस समय वो पांच महीने की गर्भवती थी। इन लोगों ने उसी दौरान बिलकिस की तीन साल की बच्ची समेत उसके 14 रिश्तोदारों की हत्या कर दी थी।  मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी सुनवाई गुजरात से बाहर बंबई हाईकोर्ट और विशेष अदालतत में की गई। अदालत ने इन सभी अभियुक्तो को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लेकिन पिछली 15 अगस्त को गुजरात सरकार के आदेश पर इन सभी 11 दोषियों को समय से पहले जेल से रिहा कर दिया गया। इस रिहाई आदेश पर केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने भी मुहर लगाई थी। इस रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं आईं जिसमें बिलकिस बानो की याचिका भी शामिल है।

आपको  बता दें कि, रिहा हुए इन अपराधियों में से कई के भारतीय जनता पार्टी से निकट संबंध हैं और उनकी रिहाई पर कई हिंदूवादी संगठनो ने फूल-मालाओं के साथ उनका नागरिक अभिनंदन किया था।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया  

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