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अफसरों की ‘लेटरल इंट्री ’ क्या सरकार का एक और ‘ फ्लॉप शो ’ है ?

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नई दिल्ली, 30 अगस्त (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : केंद्र सरकार में विभिन्न विभागों और मंत्रालयों में संयुक्त सचिव और निदेशक स्तर के पदों पर विशेषज्ञों की सीधी भर्ती किस हद तक सफल है ये सवाल नौकरशाही के गलियारों में चर्चा का विषय़ बना हुआ है। हालांकि, केंद्र सरकार की तरफ से इस योजना को बहुत सकारात्मक और प्रगतिशील बताया जा रहा है लेकिन लेटरल इंट्री की इस सरकारी योजना को लेकर विशेषज्ञों की दिलचस्पी कम से कमतर होती जा रही है।

क्या कहते हैं तथ्य़ ?

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग का कामकाज देखने वाले प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य़ मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह ने संसद में स्पष्ट किया था कि लेटरल इंट्री का मतलब आईएएस का विकल्प तैयार करना कतई नहीं है और सरकार कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए इन विशेषज्ञों की भर्ती सीधे तौर करती है।

लेकिन सरकार के इस स्पष्टीकरण के बावजूद इस स्कीम को लेकर सीधी भर्ती वाले अफसरों के मन में शंका है और साथ- साथ आईएएस लॉबी में भी जबरदस्त धड़ेबंदी है। भर्ती किए हए विशेषज्ञ सेवा में विस्तार नहीं चाहते और वापस निजी क्षेत्र का रुख कर रहे हैं। अभी पिछले दिनों 2020 में सीधी भर्ती से सिविल एविएशन मंत्रालय में संयुक्त सचिव नियुक्त हुए अंबर दुबे ने तीन साल की सेवा शर्तों को पूरा करने के बाद विस्तार लेने के विकल्प को ठुकरा दिया और वापस निजी क्षेत्र में नौकरी की तरफ चले गए। इससे पहले सीधी भर्ती वाले अरुण गोयल ने संयुक्त सचिव पद से इस्तीफा दे दिया था।

सूत्रों की माने तो कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग सीधी भर्ती के इन अफसरों के कामकाज से खुश है और वो उन्हें सेवा विस्तार देना चाहता है लेकिन मुश्किल अफसरों की तरफ से है। सरकार ने 2019 से लेकर 2021 तक डोमेन विशेषज्ञों के रूप में कुल 12 अफसरों को नियुक्त किया जिसमें से तीन सेवा छोड़ चुके हैं जबकि बाकी अफसरों में कुछ तीन साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद अपने क्षेत्र में वापस लौटना चाहते हैं।

साल 2021 में, संयुक्त सचिव, निदेशक और उपसचिव के तकरीबन 40 पदों पर सीधी भर्ती के लिए सिर्फ 2000 आवेदन ही आए जबकि 2019 में जब ये योजना शुरू की गई थी तो संयुक्त सचिव के महज 10 पदों के लिए 6000 से ज्यादा विशेषज्ञों ने आवेदन किया था।

सीधी भर्ती से बेरुखी क्यों ?

भारत सरकार के एक मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात सीधी भर्ती वाले एक अफसर के अनुसार, इस बेरुखी की कई वजहें हैं और वे बहुत ठोस हैं। सबसे पहले, तो हमारे देश में आईएएस खुद को एक अलग वर्ग के रूप में देखता है। उसे लगता है कि सारा ज्ञान और विशेषज्ञता सिर्फ उसके पास ही है। उन्होंने बताया कि उन्हें भर्ती के बाद पहले दिन से कार्यशैली और जानकारी को लेकर आईएएसस अफसरों की लॉबी के जबरदस्त प्रतिरोध को झेलना पड़ा है। यहां तक कि संयुक्त सचिव होने के बावजूद ये लॉबी हमें आईएएस अफसरों के व्हाट्स अप ग्रुप में शामिल नहीं करती। आईएएस अपनी तमाम पार्टियों वगैरह में हम जैसे अफसरों को निमंत्रण नहीं देते। हमको लेकर उनके मन में हमेशा एक शंका दिखती है। हम खुद को बाहरी महसूस करते हैं और वे हमें बाहरी मानते हैं।

दूसरी बड़ी बात जो एक अन्य अफसर ने बताई वो ये कि, भारत में सरकारी मशीनरी का अपना काम करने का तरीका है। नौकरशाही एक घिसेपिटे सिस्टम की इस हद तक आदी हो चुकी है वो किस किस्म की पहल और प्रयोग से बचती है। फाइलों को रंगते रहना और फैसलों को टालते रहना इनकी आदत में शुमार है। उन्होंने कहा कि कुछ अफसरों के साथ ऐसा नहीं है वे फैसले लेते भी हैं और काम करते और चाहते हैं लेकिन अधिकतर वही लकीर के फकीर हैं।

संयुक्त सचिव के पद पर सीधी भर्ती से तैनात एक अन्य अफसर भी नौकरशाही की कार्यशाली से बहुत दुखी हैं। उनका कहना है कि, सरकार हमें तैनाती से पहले भारतीय लोक प्रशासन संस्थान में प्रशिक्षण के लिए भेजती है वहीं हमें हमारी औकात समझा दी जाती है। वे बताते हैं कि हमारे जैसी सीधी भर्ती वाले अफसर आईआईटी, आईआईएम और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसी संस्थानों से निकले मजबूत पृष्ठभूमि वाले होते हैं और हमने अपने क्षेत्र में वरिष्ठ और महत्वपूर्ण काम संभाले होते हैं। इस तरह के बर्ताव से हमें लग जाता है कि हम फंस गए।

वे मानते हैं कि, हमारे देश की नौकरशाही का ढांचा ऐसा है कि इसमें बाबूगिरी तो हो सकती है लेकिन आगे बढ़ कर नेतृत्व करना और कुछ कर दिखाने का मौका न के बराबर है। उनका कहना है कि अगर सरकारी कामकाज के तरीको में सुधार चाहिए तो सबसे पहले नौकरशाही में सुधार बहुत जरूरी है। ये एक ऐसा सिस्टम है जिसके लिए आपको काम करना है, आप अलग से कुछ कर पाएं बहुत मुश्किल है।

फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया

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