Homeगेम चेंजर्स'शीरोज़' का कमाल... हॉकी से प्यार ने सपनों को दिए पंख...!

‘शीरोज़’ का कमाल… हॉकी से प्यार ने सपनों को दिए पंख…!

spot_img

नई दिल्ली (कृत्तिका शर्मा स्पैन हिंदी पत्रिका से साभार) :  खेल एक सार्वभौमिक भाषा है। और खेलों के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान की ताकत परिवर्तनकारी बन सकती है। कोलकाता के अमेरिकी कॉंसुलेट जनरल ने हाकी के प्रति प्रेम और झारखंड में सिविल सोसायटी, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सरकारी अधिकारियों के साथ मजबूत संबंधों के चलते 2018 और 2020 मे ईस्ट इंडिया महिला हॉकी और लीडरशिप कैंपों को शुरू किया।

कोलकाता के अमेरिकी कॉंसुलेट जनरल के पब्लिक अफेयर्स ऑफिसर एड्रियन प्रैट के अनुसार, ‘‘ईमानदारी से कहें तो उन छोटे गांवों के बारे में हममे से बहुत-से लोग कुछ भी नहीं जानते जहां से हमारी शीरोज़ यानी (खिलाड़ी नायिकाएं) आती हैं। हमने सुना था कि वह बहुत ही अलग-थलग पड़ा इलाका है, जहां रोजगार के बहुत कम मौके उपलब्ध हैं और इसी कारण से यहां के युवा अतिवाद, बाल श्रम के लिए तस्करी, बंधुआ मजदूरी और जबरिया विवाह जैसी चीजों के आसानी से शिकार बन जाते हैं। हमें इस बारे में भी पता था कि भारत में हॉकी का खेल कितना लोकप्रिय है।’’

और इसी वजह से, वर्मोंट के मिडिलबरी कॉलेज में तीन ह़फ्तों के हॉकी शिविर में हिस्सा लेने का अवसर इन पांच शीरोज़ के लिए कोई छोटी बात नहीं थी। मिडिलबरी कॉलेज की छात्राओं के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया वुमेन्स हॉकी एंड लीडरशिप कैंप 2020 के दूसरे संस्करण के लिए पुंडी सारू, जूही कुमारी, प्रियंका कुमारी, हेनरिटा टोप्पो और पूर्णिमा नेती का चयन किया गया।

कोलकाता स्थित अमेरिकी कॉंसुलेट जनरल ने दिल्ली के मानव तस्करी के खिलाफ काम करने वाले एनजीओ शक्ति वाहिनी के साथ  भागीदारी में और झारखंड हॉकी फेडरेशन, दक्षिण-पूर्वी रेलवे, झारखंड पुलिस और अमेरिकी विदेश विभाग के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक ब्यूरो के सहयोग से 2018 में ईस्ट इंडिया हॉकी प्रोजेक्ट का शुभारंभ किया। इसका मकसद झारखंड की युवा लड़कियों और महिलाओं में नेतृत्व क्षमता को प्रोत्साहित करने का था। परियोजना का लक्ष्य किशोर लड़कियों को सामुदायिक नेतृत्व के लिए सशक्त बनाना और मानव तस्करी एवं जेंडर आधारित हिंसा से मुकाबला करना है।

खिलाडि़यों से मिलिए

शिविर के लिए चुनी गई इन खिलाडि़यों को बहुत तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन हॉकी के प्रति अपने प्रेम से वे बंधी रहीं। झारखंड के गुमला जिले की प्रियंका कुमारी ने बांस के डंडे से खुद को हॉकी सिखाई। उसके पिता लकवे से पीडि़त हैं और मां परिवार की आजीविका चलाने वाली एकमात्र सदस्य हैं। प्रियंका का कहना है कि, उसे इच्छा के खिलाफ जाते हुए पढ़ाई छोड़नी पड़ी और लोगों के घरों में काम करना पड़ा। वह  बताती हैं, ‘‘मैं सुबह 4 बजे दौड़ने निकल जाती थी। इसके बाद मुझे लोगों के घरों में बर्तन मांजने, कपड़े धोने, फर्श की सफाई और पोछा लगाने में कई घंटे लगते थे।’’

खूंटी जिले की पुंडी सारू, ने कक्षा 10 की पढ़ाई  पूरी की है और वह चार भाई-बहनों में से एक है। उसे इस खेल के लिए पेशेवर फील्ड हॉकी खिलाड़ी निक्की प्रधान से प्रेरणा मिली। उसके पिता एक मजदूर हैं और वह परिवार को चलाने के लिए संघर्ष करते रहते हैं।

जूही कुमारी भी खूंटी से हैं और उनकी पृष्ठभूमि भी पैसों की तंगी से जुड़ी है। उसके पिता के साथ नशा लेने का मसला है और मां परिवार को पालने के लिए दैनिक मजदूरी करती हैं। जूही ने परिवार की आर्थिक हालत को सुधारने के उद्देश्य से हॉकी खेलना शुरू किया था।

हेनरिटा टोप्पो, सिमडेगा जिले से आती हैं और उन्होंने भी अपने परिवार को आर्थिक तंगी से बाहर निकालने के लिए हॉकी खेलने का निर्णय लिया। जिस खेल को कभी एक साधन के रूप में शुरू किया था वही साध्य में तब्दील हो गया। एक बार जब उसने वरिष्ठ हॉकी खिलाडि़यों के साथ प्रशिक्षण लेना शुरू किया, तब तो हॉकी ही उसका जुनून बन गया।

पूर्णिमा नेती भी सिमडेगा की हैं और उन्हें खेल में अपनी प्रतिभा को निखारने की प्रेरणा मिली असुंता लाकड़ा से जो कि भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान थीं। उसके माता-पिता आजीविका चलाने के लिए दूसरों के खेतों में काम करते हैं। वह कहती हैं, ‘‘मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मुझे दूर देश जाने का मौका मिला है। मेरे सपने तो सिमडेगा तक ही सीमित थे।’’

झारखंड को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने वाले कुछ बेहद ही प्रतिभाशाली खिलाडि़यों के लिए जाना जाता है। निक्की प्रधान और सलीमा टेटे झारखंड की वे पहली महिला हॉकी खिलाड़ी थीं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर (टोक्यो ओलंपिक 2020) भारत की तरफ से खेलने वाली टीम में शामिल थीं।

खेल शिविर से कहीं ज़्यादा

अंतरराष्ट्रीय स्तर की हॉकी खेलने की सीख के अलावा, इन लड़कियों को नेतृत्व क्षमता, पब्लिक स्पीकिंग, कौशल प्रशिक्षण और आत्मरक्षा के गुर भी सीखने को मिले। प्रैट के अनुसार, ‘‘इन शिविरों का प्रारूप उनकी हॉकी खेलने की कला को बेहतर बनाने के लिए था लेकिन हम यह भी चाहते थे कि वे मजबूत और साहसी लीडर भी बनें।’’

इन पेशेवर विधाओं से कही आगे, लड़कियों के लिए यह शृंखला कई मायनों में पहली थी। वे पहली बार घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में सफर कर रही थीं, उन्होंने अमेरिकी नेशनल फ़ील्ड हॉकी टीम के साथ हॉकी खेली, बोस्टन में उन्होंने बोस्टन रेड सॉक्स बनाम न्यू यॉर्क यांकीज़ बेसबाल मैच देखा, चार जुलाई के समारोहों में शामिल हुईं और अमेरिका में भारतीय दूतावास का दौरा किया।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेंमत सोरेन ने इन लड़कियों को उनकी स्वदेश वापसी पर मिलने के लिए आमंत्रित किया, ताकि ग्रामीण समुदायों के उत्थान के लिए ऐसे और ज्यादा प्रयासों में सहायता की जा सके। अमेरिका की यात्रा पर जाने से पहले इन लड़कियों का ख्वाब भी कुछ ऐसा ही था। जूही का कहना है, ‘‘मैं अपने अनुभवों और सीख को अपने समुदाय (विशेषकर लड़कियों) के साथ साझा करना चाहती हूं। मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि यह खेल क्या है। उनकी मौजूदा बंदिशों के बावजूद यह उन्हें जीवन में बड़े सपने देखने के लिए पंख देगा और साथ उन्हें हकीकत में बदलने का हौसला भी।’’

शक्तिवाहिनी के संस्थापक ऋषिकांत का कहना है कि कैंप अपने टाइमिंग को लेकर खासतौर पर बहुत महत्वपूर्ण था। वह स्पष्ट करते हैं, ‘‘महामारी का वक्त हम सबके लिए बहुत मुश्किल था। दो सालों तक बच्चे स्कूल नहीं जा सके, और इसकी वजह से पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ और बहुतों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इस कारण से बाल श्रम और तस्करी में काफी बढ़ोतरी हुई।’’ वह कहते हैं, ‘‘हॉकी खेलने वाली ये लड़कियां, जिन्हें मानव तस्करी और जेंडर आधारित हिंसा से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया गया है, अपने समुदायों में युवा लड़कियों के सशक्तिकरण में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।’’

प्रैट के अनुसार, ‘‘ईस्ट इंडिया हॉकी कार्यक्रम हमारे तमाम ऐसे संपर्कों और सहभागिताओं का चेहरा बन गया है जो एक दशक से लंबे समय से राज्य में तस्करी और जेंडर आधारित हिंसा के खिलाफ हमारे प्रयासों को जाहिर करता है।’’

मिडिलबरी कॉलेज में असिस्टेंट एथलेटिक डायरेक्टर कैथरीन डीलोरेंजो, का कहना है कि इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाली उनके कॉलेज की प्रतिभागी लड़कियां अब ‘‘2023 के अंत में ईस्ट इंडिया हॉकी प्रोजेक्ट के अगले संस्करण में’’ हिस्सा लेने के लिए झारखंड की फिर यात्रा पर जाने की तैयारी कर रही हैं।

(ये आलेख और फोटो स्पैन पत्रिका के फरवरी-2023 अंक से साभार लिया गया है। गणतंत्र भारत ने अपनी संपादकीय दृष्टि के अनुरूप सिर्फ शीर्षक में बदलाव किया है।)  

 

Print Friendly, PDF & Email
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments