Homeहमारी धऱतीकृषिउत्तराखंड को खुशहाल नहीं बर्बाद कर रहा है ये पौधा........

उत्तराखंड को खुशहाल नहीं बर्बाद कर रहा है ये पौधा……..

spot_img

नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : उत्तराखंड में सरकार भले ही किसी भी दल की क्यों न रही हो, उसने पहाड़ की मूलभूत समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं की। इसी कारण पहाड़ों से तेजी से पलायन हो रहा है।

उत्तराखंड को बने 23 साल होने के बावजूद यहां स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और रोजगार के साधनों की कमी बनी हुई है, जबकि यहां संसाधनों और जमीन की लूट-खसोट जमकर हो रही है। बेहाल पहाड़ की जिंदगी में अब सरकार और जंगली जानवरों के साथ ही कुछ पौधे भी भारी पड़ने लगे हैं।

इकोलॉजी, खेती और अन्य वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाने वाले पेड़-पौधों में अब चीड़ और लैंटाना के बाद कालाबासा का नाम भी जुड़ गया है। ये प्लांट खेती की जमीन पर तो तेजी कब्जा कर ही रहा है, साथ ही पहाड़ के जल स्रोतों के लिए भी बड़ा खतरा बनता जा रहा है। सरकार की ओर से इसके सफाये के लिए खास कोशिशें न किए जाने से आने वाले समय में मैक्सिकन डेविल के नाम से जाना जाने वाला ये पौधा भी पहाड़ के लिए बड़ी समस्या बन सकता है।

प्रमुख पर्यावरणविद् और लोक चेतना मंच के अध्यक्ष जोगेंद्र बिष्ट कहते हैं कि कालाबासा जिस तेजी से उत्तराखंड के अधिकांश हिस्सों में फैल रहा है, उससे वहां की सम्पूर्ण पारिस्थितिकी खतरे में पड़ गई है। ये तेजी से अन्य वनस्पतियों की जगह लेता और खेती पर कब्जा करता जा रहा है। जोगेंद्र के मुताबिक, इसका सबसे अधिक असर हमारी नदियों और जल स्रोतों पर पड़ने वाला है। मुख्य रूप से जंगलों से निकलने वाली छोटी-छोटी जल धाराएं कालाबासा का शिकार होने वाली हैं, क्योंकि ये पानी बहुत सोखता है। इसका सीधा असर नदियों में पानी की मात्रा पर पड़ेगा। नदियों में पानी कम होने से इंसानों, पशु-पक्षियों और खेती पर असर पड़ना तय है। पानी कम होने का असर पहाड़ों ही नहीं, मैदानी इलाकों पर भी पड़ेगा।

जोगेंद्र कहते हैं कि कालाबासा पहाड़ में जिस तेजी से फैल रहा है, उससे वन्य जीवों के प्राकृतिक प्रवास भी धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे हैं और वे आबादी की ओर आ रहे हैं। कालाबासा का पौधा औसतन पांच फीट तक बड़ा होता है। इसका एक पौधा 10 हजार से भी अधिक बीज तैयार कर सकता है, जो हवा और पानी के साथ फैलते जाते हैं।

ये मूल रूप से मैक्सिको में पाई जाने वाली प्रजाति है। 1950 में इसके फैलाव के कारण वहां लोगों को खेती-बाड़ी छोड़नी पड़ी थी और इसे खाने से घोड़े मरने लगे थे। इसी कारण इसे मैक्सिकन डेविल भी कहा जाने लगा। भारत में इसका फैलाव म्यांमार की ओर से उत्तर पूर्वी राज्यों से शुरू हुआ। अब लगभग सभी राज्यों में ये खरपतवार दिखाई देने लगी है। उत्तराखंड के मामले में इसका फैलाव अधिक खतरनाक इसलिए है, क्योंकि यहां 80 प्रतिशत भूमि अकृषित है और पलायन के कारण कृषि भूमि भी लोग छोड़ रहे हैं। इससे कालाबासा को फैलाव के लिए खुला निमंत्रण मिल रहा है। जंगलों में भी ये आसानी से उग रहा है। जिन क्षेत्रों में नमी रहती है वहां इसका फैलाव और अधिक हो रहा है। इससे उत्तराखंड की जैव विविधता को बड़ा खतरा पैदा हो गया है। जोगेंद्र बताते हैं कि इसके खेतों में पहुंचने पर मिट्टी में पोषक तत्व- नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटेशियम कम हो जाते हैं। खेती की जमीन को इससे बड़ा खतरा है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments