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जब मोदी की आक्रामक और ठोस दलीलों ने समां ही बदल दिया….

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : स्कॉटलैंड का शहर ग्लास्गो। जलवायु परिवर्तन के विषय पर शिखर सम्मेलन का आयोजन। दुनिया के करीब सवा सौ नेता एक साझा मंच पर। सवाल भविष्य की दुनिया के वातावरण का था तो माहौल भी जिम्मेदारी के साथ जवाबदेही का था।

भारत को लेकर कई आशंकाएं थीं। कई कड़वे सवाल थे जिनका उसे जवाब देना था। नेट जीरो के लक्ष्य पर उसकी सोच और रणनीति क्या होगी, कैसे वो दुनिया के दूसरे देशों के समकक्ष खुद को साबित कर पाएगा। ऐसे कई सवाल थे। इन्हीं सवालों और आशंकाओं के बीच भारत के लिए मंच पर अपनी बात रखने का मौका आ गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोर्चा संभाला। आंकड़ों और तथ्यों पर आधारित उनकी दलीलों ने बहुत मजबूती के साथ भारत के पक्ष को रखा। जो सवाल भारत से पूछे जाने थे नरेंद्र मोदी ने उन सवालों को पूरी दुनिया के सवाल बना दिया।

मोदी के भाषण में भविष्य के प्रति चिंता तो थी ही साथ ही एक दृष्टि और एक सोच भी नजर आई। वातावरण में परिवर्तन के मसले को उन्होंने लोगों की जीवनशैली से जोड़ कर भावी विश्व के लिए अनुशासन के मह्त्व को सामने रखा।

मोदी ने किसी भी मोर्चे पर भारत को कमजोर नहीं पड़ने दिया। उन्होंने कहा कि हम भले ही दुनिया के 17 फीसदी हों लेकिन वातावरण में कार्बन का उत्सर्जन हम 5 प्रतिशत ही करते हैं। अमेरिका और रूस तो दहाई में ये  काम करते हैं। दुनिया देखे कि परेशानी किसकी वजह से ज्यादा है। मोदी ने भारत के लिए कठोर लक्ष्य निर्धारित करते हुए दुनिया के उन तमाम विकासशील देशों की चिंताओं को भी आवाज देने की कोशिश जो अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों पर ही निर्भर हैं।

मोदी ने भारत के लिए लंबे और छोटे लक्ष्यों की घोषणा करके ये जतलाने की कोशिश की कि इस समस्या को चरणबद्ध तरीके से ही दूर किया जा सकता है। भारत आज भी ऊर्जा उत्पादन के लिए 70 फीसदी कोयले जैसे पारंपरिक ईंधन पर निर्भर करता है। ऐसी स्थिति में 2030 तक भारत की कुल ऊर्जा खपत का 50 फीसदी रिन्यूएबल एनर्जी के संसाधनों से पूरा करने के लक्ष्य की घोषणा करना एक साहसिक और महत्वाकांक्षी  कदम कहा जा सकता है।

मोदी ने इस मौके पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े पांच खास बिंदुओं का जिक्र करते हुए उसे पंचामृत का नाम दिया। इसमें 2030 और 2070 के लिए भारत के लक्ष्यो  का उल्लेख किया गया। महत्वपूर्ण बात ये रही कि नरेंद्र मोदी ने 2030 तक भारत की कुल ऊर्जा खपत का 50 फीसदी हिस्सा उर्जा के नवीकृत संसाधनों से करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को इसका हिस्सा बनाया। 2070 में नेट जीरो का लक्ष्य इस पंचामृत का अंतिम संकल्प था।

विकसित देशों पर करारा प्रहार  

आमतौर पर विश्व मंचों पर भारत की दलीलें बहुत संयत होती है लेकिन ग्लास्गो में ऐसा नहीं था। विकसित देशों को कठघरे में खड़ा हुए मोदी बेहद आक्रामक थे। प्रधानमंत्री ने खुद अपने देश के लिए लक्ष्य निर्धारित किए तो दुनिया के विकसित देशों को आइना दिखाने से भी वे नहीं चूके। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के सवाल पर विकासशील देशों को जिम्मेदार ठहराना गलत है। उन्होंने याद दिलाया कि इस बारे में विकसित देशों ने प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर की मदद का आश्वासन दिया था जिसे 2020 से शुरू होना था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ऐसे मामलों में विकसित देशों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।

फोटो सौजन्य़- सोशल मीडिया

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