वाराणसी ( गणतंत्र भारत के लिए पार्थसारथि ): बाहुबाली विधायक मुख्तार अंसारी को पंजाब के रोपड़ जेल से उत्तर प्रदेश के बांदा जेल लाया गया है। अंसारी को पंजाब से वापस यूपी लाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक जाकर लड़ाई लड़ी जब जाकर उसे वापस यूपी ला पाने में सफलता मिली। कहा जा रहा है कि अंसारी रोपड़ जेल में ठाटबाट के साथ अपना वक्त गुजार रहा था और पंजाब सरकार से उसे संरक्षण मिला हुआ था।
मुख्तार अंसारी इन दिनों लगातार सुर्खियों में बने रहे। मीडिया ने जमकर उन्हें कवरेज दिया। पूर्वांचल के मऊ से लगातार पांचवीं बार विधायक चुने गए मुख़्तार अंसारी की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। साल 2017 में जमा किए गए उनके अपने चुनावी शपथपत्र के अनुसार उन पर फ़िलहाल देश की अलग-अलग अदालतों में हत्या, हत्या के प्रयास, दंगे भड़काने, आपराधिक साज़िश रचने, आपराधिक धमकियां देने, सम्पत्ति हड़पने के लिए धोखाधड़ी करने, सरकारी काम में बाधा डालने से लेकर जानबूझकर चोट पहुंचाने तक के 16 केस हैं। इनमें बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का मामला भी शामिल है।
मुख्तार अंसारी ने पहली बार चुनाव साल 1996 में बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा। उसके बाद वे 2002, 2007, 2012 और 2017 में मऊ से चुनाव लड़े और जीते। 1996 और 2002 के अलावा मुख्तार अंसारी ने 2007 का चुनाव भी बीएसपी के टिकट पर लड़ा। बीएसपी सुप्रीमों माय़ावती ने 2010 में उन्हें अपराधी बताते हुए पार्टी से निकाल दिया। बाद में उन्होंने खुद का राजनीतिक दल कौमी एकता दल गठित किया लेकिन 2017 में उन्होंने उसका बीएससपी में विलय कर दिया। दिलचस्प तथ्य ये है कि मुख्तार अंसारी ने पिछले तीन चुनाव जेल में रहते हुए लड़े और जीते।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
मुख्तार अंसारी भले ही आज माफिया डॉन माने जाते हों लेकिन उनका ताल्लुक बहुत ही प्रतिष्ठित परिवार से है। मुख़्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी देश की आज़ादी के संघर्ष में गांधी जी का साथ देने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं और 1926-27 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। मुख़्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाए रखने के लिए शहादत देने वाले वीरों में जाना जाता है। उन्हें महावीर चक्र से नवाज़ा गया था। मुख्तार के पिता सुभानउल्लाह अंसारी एक साफ़-सुथरी छवि रखने वाले कम्युनिस्ट बैकग्राउंड से आने वाले नेता थे। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी रिश्ते में मुख़्तार अंसारी के चाचा लगते हैं। मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी भी साल 2004 में गाजीपुर से सांसद और पांच बार मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। मुख्तार अंसारी के दूसरे भाई सिबकातुल्ला अंसारी भी दो बार विधायक रह चुके चुके हैं। मुख्तार अंसारी के दो बेटे हैं, अब्बास और उमर। अब्बास शॉटगन शूटिंग के खिलाड़ी हैं जबकि उमर विदेश में पढाई कर रहे हैं। अब्बास तो राजनीति में बीएसपी के टिकट पर हाथ आजमा चुके हैं लेकिन वे चुनाव हार गए थे जबकि उमर ने 2017 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता के लिए प्रचार का जिम्मा संभाला था।
मुख्तार की पहचान, एक माफिया डॉन
गाजीपुर तीन चीजों के लिए जाना जाता है। अपराध, अफीम और अफसर। यहां अपराधियों का बोलबाल रहता है। दोआबा की उपजाऊ जमीन पर जमकर अफीम की खेती होती है और भारी तादाद में जिले से बच्चे आईएएस, आईपीएस अफसर बनते हैं। जिले में उद्योग धंधे बहुत कम हैं। ढेरों विरोधाभास की जमीन है गाजीपुर। इसी जमीन पर 1980 और 90 के दशक में मुख्तार अंसारी और पूर्वांचल के माफिया डॉन बृजेश सिंह के बीच गैंगवार चला। जातीय समीकरण के हिसाब से देखें तो गाजीपुर में भूमिहारों का बोलबाला है। यहां करीब एक लाख भूमिहार वोटर हैं। मुस्लिम आबादी तो गाजीपुर में सिर्फ 10 प्रतिशत है। ऐसें में मुख्तार अंसारी को अगर दूसरी जातियों या धर्मों के लोग समर्थन ना देते तो उसका चुनाव जीतना नामुकिन था। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हरीश मिश्र बताते हैं कि, ऐसा नहीं है कि मुख्तार अंसारी का दबदबा सिर्फ गाजीपुर तक सीमित है बल्कि उसका प्रभाव पूर्वांचल के कई जिलों बनारस, मऊ, जौनपुर बलिया और आजमगढ तक फैला हुआ है और कई विधानसभा सीटों पर उसका जबरदस्त प्रभाव देखा गया है।
मुख्तार अंसारी की कहानी एक पारिवारिक विरासत की प्रतिष्ठा के पराभव की गाथा है जिसके कई अध्याय अभी भी लिखे जाने शेष हैं।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया