Homeइन फोकसअन्यअखाड़ा बदला है, दंगल नहीं छोड़ा.. ‘ मैं मुलायम सिंह यादव ’

अखाड़ा बदला है, दंगल नहीं छोड़ा.. ‘ मैं मुलायम सिंह यादव ’

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लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र ):  गांव के रहने वाले साधारण पृष्ठभूमि के एक लड़के को पिता सुधर सिंह पहलवान बनाना चाहते थे। इस लड़के ने अपने पिता की इस इच्छा को पूरा करने के लिए जोर आजमाइश भी शुरू कर दी थी। मैनपुरी में हुई एक कुश्ती प्रतियोगिता में इस लड़के ने जब अपने से दोगुने कद-काठी के पहलवान को धोबी पछाड़ दांव से मैदान में चित कर दिया तो तमाम लोग भौंचक रह गए। इसी दौरान स्थानीय नेता नाथूराम ने इस लड़के के तेवरों को भांप लिया। उसके बाद वे उस लड़के के दबंग अंदाज को देख कर नाथूराम उन्हें पहलवानी के अखाड़े से निकाल कर सियासी अखाड़े में ले आए और उन्हें उस दौर के देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक राम मनोहर लोहिया से मिलवाया।  उन्होंने इस लड़के को करहल के एक स्कूल में अध्यापक की नौकरी दिलवाने में भी मदद की लेकिन उनका मुख्य ध्यान उसे राजनीति में लाने पर ही लगा रहा। धीरे-धीरे संघर्षों और आंदोलनों में तपकर इटावा जिले के छोटे से गांव सैफई का ये लड़का देश के दिग्गज राजनेताओं में शुमार हो गया। यहां जिक्र हो रहा है समाजवादी पुरोधा मुलायम सिंह यादव का। 

मुलायम की बायोपिक पर सियासी अटकलें

मुलायम सिंह यादव के करीबी आज भी कहते हैं कि जब कभी कहीं भी और कभी भी उनका जिक्र हो तो अंदाज लगा लेना चाहिए कि कुछ असामान्य होने वाला है। इन दिनों उनकी चर्चा राजनैतिक कारणों से नहीं बल्कि उनकी आने वाली बायोपिक  मैं मुलायम सिंह यादव को लेकर हो रही है। उनके जीवन पर बनी यह फिल्म पर्दे पर 29  जनवरी से रिलीज हो गई है। इतना ही नहीं इस फिल्म को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी लाने की तैयारी है। अब विधानसभा चुनाव से पहले और पंचायत चुनाव की सरगर्मी के वक्त इस फिल्म की रिलीज के सियासी मायने भी तलाशे जाने शुरू हो गए हैं।

वैसे, मुलायम सिंह जैसा बनना और मिलना असंभव है पर इस फिल्म में मुलायम सिंह का किरदार अमित सेठी ने निभाया है। वे कहते हैं कि मुलायम सिंह का किरदार निभाना एक चुनौती थी क्योंकि उनकी छवि के बराबर खुद को स्थापित करना बेहद मुश्किल काम है। वैसे सवाल ये है कि ऐन किसान आंदोलन के बीच और पंचायत चुनाव से थोड़ा पहले नेताजी पर बनी इस बायोपिक का रिलीज होना एक सामान्य घटना है या इसके पीछे सोझी- समझी सियासी रणनीति है?  कहीं ये बायोपिक महज नारेबाजी कर आगे बढ़ने का मंसूबा सजोए कार्यकर्ताओं के हौंसले और जज्बे को संघर्षों के तपिश में तपाकर निखारने का प्रयोग तो नहीं है ? 

इस संवाददाता ने मुलायम सिंह यादव को बहुत करीब से देखा और जाना है। नेताजी को नजदीक से जानने वाले लोगों का कहना है कि मुलायम सिंह यादव से नेता जी बनने का सफर संघर्षों की तपिश से ही गुजरा है। कार्यकर्ताओं को जोड़ना और उन्हें व्यवस्था से जूझने के लिए तैयार करना आसान काम नहीं था पर मुलायम सिंह ने गांव-गांव तक समाजवादी पार्टी का ढांचा खड़ा कर इस मुश्किल काम को बखूबी अंजाम दे दिया। समाजवादी पार्टी में अब वक्त अखिलेश यादव का है। जानकार कहते हैं कि मौजूदा वक्त में न तो समाजवादी पार्टी में कार्यकर्ताओं की कमी है और न उनमें जोश का अभाव है। जरूरत है उन्हें पुराने खांटी समाजवादी ढांचे में ढालने की। नेताजी को इसमें महारत हासिल थी पर उम्र के दबाव के चलते अब वो बहुत सक्रिय भूमिका नहीं निभा सकते ऐसे में उनकी बायोपिक कार्यकर्ताओँ की नई पीढ़ी के लिए आइना बन सकती है।

वैसे कहा तो ये भी जा रहा है कि बदली हुई सियासी परिस्थितियों और सोशल मीडिया के इस दौर में उनकी ये बायोपिक पंचायत चुनाव में समाजवादी कार्यकर्ताओं के लिए ‘ एनर्जी बूस्टर ’  जैसा काम कर सकती है।  किसान, शोषित और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोग कभी समाजवादी आंदोलन की ताकत रहे थे। पार्टी से जुड़े पुराने कार्यकर्ता कहते हैं कि नेताजी जब तक सक्रिय भूमिका में रहे ये वर्ग बड़ी मजबूती से उनके साथ खड़ा रहा। उम्मीद की जा रही है कि जब नेता जी की ये बायोपिक गांव और चौपाल तक देखी जाएगी तो निश्चित रुप से इस वर्ग से लोग फिर उसी दमखम से पार्टी के साथ खड़े हो जाएंगे जैसे पहले खड़े हुआ करते थे। 

हाल ही में कोलकाता में आयोजित लिफ्ट इंडिया अवॉर्ड में ‘मैं मुलायम सिंह यादव ’ फिल्म को बेस्ट बायोपिक का अवॉर्ड मिला है। इसके अलावा भी फिल्म को कई कैटेगरी के अवॉर्ड मिल चुके हैं। शिवपाल के किरदार में मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह चक्रवर्ती नजर आएंगे। अभिनेता प्रकाश बलबेटो इस बायोपिक में प्रख्यात समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया बने हैं। एमएस फिल्म्स एंड प्रॉडक्शन के बैनर तले बनी इस बायोपिक में मुलायम के साथ चौधरी  चरण सिंह भी नजर आएंगे। 

फिल्म के संबंध में प्रोड्यूसर मीना सेठी मंडल ने बताया कि फिल्म में मुलायम सिंह यादव के एक साधारण नेता से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक की यात्रा दिखाई जाएगी। फिल्म बनाने से पहले उन्होंने मुलायम सिंह यादव के अलावा अखिलेश यादव से भी मुलाकात की थी। बाद में जब फिल्म का टीजर तैयार हुआ, तो उसे भी नेताजी को दिखाया गया था। वे उसे देख कर बेहद खुश हुए थे। वे बताती हैं कि वे बंगाल से हैं और चाहती थीं कि बंगाल में ट्रेलर रिलीज हो।

आखिर मुलायम सिंह यादव पर ही बायोपिक बनाने की उन्होंने क्यों सोची? इस पर वे कहती हैं कि एक बार नेट पर सर्च के दौरान उन्होंने मुलायम सिंह यादव के बारे में पढ़ा और बेहद प्रभावित हुईं। इसके बाद उन्होंने स्क्रिप्ट राइटर रशीद इकबाल से इस संबंध में शोध करने को कहा। शोध कार्य में करीब तीन महीने लगे। हालांकि, शूटिंग में दो महीने ही लगे। शूटिंग उत्तर प्रदेश के अलावा मुंबई, पुणे, चंडीगढ़ में हुई है। फिल्म पूरी तरह सच्ची घटनाओं पर आधारित है।फिल्म का बजट करीब 7.5  करोड़ रुपए का है और इसे डॉन सिनेमा की ओर से समूचे विश्व में रिलीज किया जा रहा है।

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